छठ पूजा या सूर्यषष्ठी व्रत में महिलाएं ग्रुप में गीत गाती नजर आती हैं. इन गीतों में सूर्य देवता और छठ मैया, दोनों से प्रार्थना की जाती है कि वे हर तरह से भक्तों का कल्याण करें.
छठ के ये लोकगीत कई क्षेत्रीय भाषाओं या बोलियों में होते हैं. इनमें ज्यादातर भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका आदि में होते हैं, जो बिहार-झारखंड और पूर्वांचल में खूब बोली जाती हैं.
छठ के इन गीतों का मतलब क्या है?
छठ के किसी गीत में व्रत करने वाला ये कहता है कि पैसे और साधन की कमी के बावजूद वह छठ जरूर करेगा. किसी गीत में तोते को आगाह किया जा रहा है कि वह केले और दूसरे पके फलों पर चोंच मारकर उसे जूठा न करे, क्योंकि यही फल सूर्यदेव को चढ़ाया जाना है.
किसी गीत में सूर्य देवता से प्रार्थना की जा रही है कि वे कम से कम छठ के दिन तो उगने में देर न करें. किसी में ये कहा गया है कि अगर पूजा में कोई भूल-चूक रह गई हो, तो देवता-देवी उन्हें माफ कर दें.
आगे आप छठ के उन गीतों को सुन सकते हैं, जो काफी लोकप्रिय हैं. छठ के दौरान घर-घर महिलाएं इसे भक्ति भाव में डूबकर गाती हैं.
केलवा के पात पर उगेलन सूरजमल
पटना के घाट पर
मारबो रे सुगवा धनुष से
आजू के दिनवां हो दीनानाथ, हे लागत एती देर
छठी मइया के दिहल ललनवां
पटना के घाटे अरघ देहब
दउरा मथवा पे उठाईं ए पिंटू के पापा
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