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हाल ही में गाजियाबाद और नोएडा जैसे शहरों में डॉग बाइट्स की कई घटनाएं सामने आई हैं. इन घटनाओं के बाद रेसीडेंसियल सोसाटियों में पालतू कुत्तों को रखने के संबंध में विवाद शुरू हो गया है.
गाजियाबाद के राज नगर एक्सटेंशन में एक छोटे लड़के को पालतू कुत्ते द्वारा काटे जाने के एक हालिया वीडियो जमकर वायरल हुआ. वहीं एक अन्य घटना में, सेक्टर 56 में एक 10 वर्षीय लड़के को कुत्ते ने काट लिया जिसके बाद नोएडा पुलिस ने एक लैब्राडोर के मालिक को गिरफ्तार किया था.
लेकिन क्या ये प्रतिबंध और जुर्माना लीगल हैं?
इसके अलावा कुत्ता खरीदते समय हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
इन मुद्दों पर स्पष्ट जानकारी प्राप्त करने के लिए क्विंट ने शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी में एक फोर्थ इयर लीगल एसोसिएट एशानी दास और पशु चिकित्सक डॉ. एम अरेश कुमार से बात की.
क्या रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों द्वारा पालतू कुत्तों और उनके मालिकों पर प्रतिबंध या जुर्माना लगाना गैरकानूनी है?
एशानी दास बताते हैं कि "भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की 2015 की गाइडलान्स के अनुसार, पालतू जानवरों के मालिकों को इस बात के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है कि वे अपने कुत्तों का मुंह बंद रखने के लिए उसमें जालीनुमा कवर लगाए. वहीं पेट्स ओनर्स को लिफ्ट जैसी कुछ सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है."
गाइडलाइन्स नंबर एक के अनुसार "... चूंकि उनके (पेट् ओनर्स के) पालतू जानवर उपद्रव का कारण हैं इसलिए वे (पेट् ओनर्स) उचित और अनुचित, कानूनी और गैर-कानूनी दावों के बीच अंतर कर सकते हैं. लेकिन किसी भी तरह का दवाब उन्हें अपने पालतू जानवरों को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है."
2012 में केरल हाई कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले (एक केस जिसमें AWIB प्रतिवादियों में से एक था) में अदालत ने एक रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के उप-नियमों को रद्द कर दिया था. इस रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा रहवासियों को अपने व्यक्तिगत अपार्टमेंट में अपनी पसंद के पालतू जानवर रखने पर रोक लगा दी गई थी और अपने पालतू जानवरों को परिसर से हटाने के लिए ओनर्स को एक नोटिस जारी किया गया था.
कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा था कि "उप-कानून और एग्रीमेंट का कोई भी क्लॉज जो किसी व्यक्ति के मालिकाना हक वाली आवासीय यूनिट में अपनी पसंद के पालतू जानवर को रखने से रोकती है, उसे कानूनी तौर पर अवैध और अनफोर्सेबल (जिस पर अमल न किया जा सके) माना जाना चाहिए."
"इसलिए रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को अपने संबंधित परिसर में पालतू जानवरों को रखने या प्रवेश करने पर रोक लगाने वाले नोटिस बोर्ड और साइनपोस्ट लगाना बंद कर देना चाहिए."
हालांकि, दास ने भारतीय दंड संहिता की धारा 289 की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जिसमें यदि कोई पेट् ओनर अपने पालतू जानवर द्वारा जनित किसी संभावित खतरे के खिलाफ पर्याप्त उपाय करने में विफल रहता है तो इस धारा के अंतर्गत छह महीने तक कारावास, या एक हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है.
"इसके बावजूद भी AWIB की गाइडलाइन्स स्पष्ट तौर पर यह कहती हैं कि उचित और अनुचित प्रतिबंधों के बीच अंतर करने की आवश्यकता है."
जब कोई नया डॉग खरीदता है तो उसके लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन के बारे में क्या होता है?
"हर राज्य का अपना लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन होता है. वहीं केनेल क्लब ऑफ इंडिया द्वारा केवल शुद्ध नस्ल के कुत्तों को पंजीकृत किया जाता है. आम तौर पर नगर निगम सभी पालतू कुत्तों को पंजीकृत करता है."
दिल्ली के मामले में दास आगे बताते हैं कि "दिल्ली नगर निगम अधिनियम की धारा 399 के अनुसार प्रत्येक कुत्ते के मालिक को अपने पालतू जानवरों का पंजीकरण कराना आवश्यक है."
"हर कोई पशु प्रेमी नहीं है. गेटेड समुदाय यानी चारों तरफ से बंद सोसाइटियों में रहने वाले अक्सर आवारा जानवरों की उपस्थिति की सराहना नहीं करते हैं. इसलिए सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे सार्वजनिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, कानून द्वारा सामूहिक लाभों के लिए उचित प्रतिबंधों की अनुमति दी गई है. उदाहरण के तौर पर दिल्ली नगर निगम अधिनियम के खंड चार और पांच में ऐसे उपाय निर्धारित किए गए हैं जैसे यदि किसी कुत्ते के आक्रामक होने की संभावना है, तो उसके मालिक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके कुत्ते का मुंह जालीदार कवर से बंद हो."
जब हम एक नया डॉग खरीदते हैं, तो हमें किन प्रमुख बातों का ध्यान रखना चाहिए?
डॉ अरेश कुमार विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि "डॉग को भोजन और पानी से बढ़कर चाहिए होता है. उस पर लगातार ध्यान देने की अवश्यकता होती है. इसलिए, जब हम कोई डॉग खरीद रहे होते हैं, तो हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए आखिर हम डॉग क्यों खरीद रहे हैं? क्या हम सिर्फ अपनी कंपनी के लिए, या खेल के लिए, या घर की रखवाली के लिए डॉग चाहते हैं?"
"इसके अलावा हमें घर में परिवार के सदस्यों के बारे में ध्यान में रखना होगा. घर में कितने बच्चे हैं? कितने बुजुर्ग हैं? बच्चे बड़े डॉग्स को संभाल नहीं सकते हैं. वहीं बुजुग लोग जर्मन शेफर्ड जैसी ब्रीड्स जिनमें काफी ताकत और ऊर्जा होती है उनको नहीं संभाल सकते हैं. डॉग्स को घर में सेटल करने पहले हमें उनके वैक्सीनेशन और डीवर्मिंग जैसी कई चीजों के बारे में भी आश्वस्त होने की जरूरत है."
"चाहे पालतू कुत्ता हो या आवारा, उसके काटने के तुरंत बाद चिकित्सीय ध्यान देने की जरूरत होती है. जिस जगह पर कुत्ते ने काटा हो उसे हमें जल्द से जल्द धोना चाहिए. तेज धार वाले नल के पानी से धो लें, घाव को धोने के लिए किसी भी एंटीसेप्टिक साबुन का उपयोग करें. इसके बाद खून को रोकने के लिए घाव वाली जगह के चारों ओर धीरे-धीरे कपड़ा लपेट दें. यह सब करने के बाद पीड़ित को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए."
"अगर किसी वैक्सीनेटेड डॉग ने काटा है तो पीड़ित व्यक्ति को कई वैक्सीन नहीं लगेंगी, हालांकि इस बारे में डॉक्टर से चर्चा करना ज्यादा बेहतर होगा. वहीं यदि डॉग बाइट गंभीर है यानी घाव गहरा होता है तो इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीन दी जाती है, यह एक प्रोटीन होता है जो बैक्टीरिया और वायरस की पहचान करता है और उन्हें निष्क्रिय करता है."
अंत में डॉ अरेश कुमार कहते हैं कि "कुत्ते के काटने पर टीकाकरण 0 दिन (जिस दिन काटा हो), तीसरे दिन, सातवें दिन, 14वें दिन और 28वें दिन किया जाता है. यदि घाव बड़ा होता है तो ऐसे में एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता होती है, वहीं कुछ मामलों में कभी-कभी पेनकिलर्स की भी जरूरत पड़ सकती है."
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