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Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Lifestyle Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019काका हाथरसी: जिनकी फुलझड़ियां भी दूर तक मार करती हैं

काका हाथरसी: जिनकी फुलझड़ियां भी दूर तक मार करती हैं

यूपी के हाथरस में पैदा हुए प्रभुलाल गर्ग ‘काका हाथरसी’ नाम से फेमस हुए.

अमरेश सौरभ
लाइफस्टाइल
Updated:
यूपी के हाथरस में पैदा हुए प्रभुलाल गर्ग साहित्‍य जगत में ‘काका हाथरसी’ नाम से फेमस हुए
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यूपी के हाथरस में पैदा हुए प्रभुलाल गर्ग साहित्‍य जगत में ‘काका हाथरसी’ नाम से फेमस हुए
(फोटो: हर्ष साहनी/द क्‍व‍िंट)

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हास्‍य कवि काका हाथरसी का नाम जेहन में आने पर किसी के भी होठों पर बरबस मुस्‍कान तैर जाए, कविताओं की लाइनें याद कर कहकहे फूट पड़ें. यूपी के हाथरस में पैदा हुए प्रभुलाल गर्ग साहित्‍य जगत में 'काका हाथरसी' नाम से फेमस हुए.

काका के जीवन में 18 सितंबर की तारीख बेहद अहम रही. 18 सितंबर 1906 को उनका जन्‍म हुआ था. 18 सितंबर को ही साल 1995 में वे हंसते-हंसाते दुनिया से चले गए. इस खास मौके पर क्‍व‍िंट हिंदी काका को श्रद्धांजलि‍ दे रहा है.

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काका की कविता है या कारतूस?

जब बेहद नपे-तुले शब्‍दों में कटाक्ष के जरिए कोई बहुत बड़ी बात कहनी हो, वो भी हास्‍यरस की कविता की चाशनी में डुबोकर, तो इसमें काका का शायद ही कोई जोड़ हो. काका की हास्‍य-व्‍यंग्‍य की अनोखी शैली वाली रचनाओं पर एक नजर:

  • काका की फुलझड़ियां
  • काका के व्यंग्य बाण
  • काका के प्रहसन
  • लूटनीति मंथन करि
  • खिलखिलाहट
  • काका तरंग
  • यार सप्तक
  • काका के कारतूस

कवियों के बीच 'कार्टूनिस्‍ट' थे काका

जरा सोचिए, एक कार्टूनिस्‍ट क्‍या करता है? एक कार्टूनिस्‍ट केवल चंद आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचकर सबको हंसाता तो है, लेकिन उसका असली मकसद समाज में फैली तमाम तरह की बुराइयों और असंगति-विसंगति की ओर सबका ध्‍यान खींचना होता है.

इस नजरिए से काका हाथरसी को कवियों के बीच एक मंजा हुआ ‘कार्टूनिस्‍ट’ मान सकते हैं. उनकी छोटी-छोटी रचनाएं लोगों को लोट-पोट तो करती ही हैं, साथ-साथ समाज और राजनीति के ‘घोटालों’ का भी पर्दाफाश करती हैं.

इन दिनों देश-दुनिया में भारत का मिशन चंद्रयान-2 खूब चर्चा में है. काका हाथरसी ने चांद की ओर इंसान के बढ़ते कदम पर जिस तरह चुटकी ली, वो आज भी आपको हंसने-मुस्‍कुराने और थोड़ा ठहरकर सोचने को मजबूर कर देगा.

चंद्रयात्रा और नेता का धंधा शीर्षक वाली उनकी रचना की चंद लाइनें देखिए:

प्रथम बार जब चांद पर पहुंचे दो इंसान।

कंकड़ पत्थर देखकर लौट आए श्रीमान॥

लौट आए श्रीमान, खबर यह जिस दिन आई।

सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई॥

पोल खुली चन्दा की, परिचित हुआ जमाना।

कोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलाना॥

वित्तमंत्री से मिले, काका कवि अनजान।

प्रश्न किया क्या चांद पर रहते हैं इंसान॥

रहते हैं इंसान, मारकर एक ठहाका।

कहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो काका॥

अगर वहां मानव रहते, हम चुप रह जाते।

अब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आते॥

आप भी इस पॉडकास्‍ट में काका हाथरसी की कुछ गुदगुदाती कविताओं को सुनिए और उनका आनंद लीजिए. इस मौके पर काका को शत-शत नमन!

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Published: 18 Sep 2017,07:56 AM IST

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