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(ये स्टोरी क्विंट हिंदी पर पहली बार 23 सितंबर 2017 को पब्लिश हुई थी. दिनकर के जन्मतिथि पर हम इसे फिर से अपने पाठकों के लिए पेश कर रहे हैं.)
‘दिनकर’, कुमार विश्वास के दिल के बेहद करीब हैं. विश्वास ने ‘महाकवि' जैसे मंच के लिए भी सबसे पहले जिस कवि को चुना, वो ‘दिनकर’ ही थे. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी के उन रचनाकारों में से हैं, जिनकी कलम से अंगारे भी फूटे और प्रेम की धारा भी बही. एक ही व्यक्ति 'उर्वशी' भी रचता है और उसी रचनाकार को देश के हालात पर गुस्सा आता है, तो 'परशुराम की प्रतीक्षा' सामने आती है. क्विंट हिंदी के लिए विश्वास ने याद किए ‘दिनकर’ के किस्से और पढ़ीं उनकी कुछ चुनिंदा कविताएं.
23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय में किसान परिवार में जन्मे रामधारी सिंह. 2 बरस की छोटी सी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया. 15 साल में मैट्रिक किया. अपने प्रांत में हिंदी में सबसे ज्यादा नंबर लाने पर भूदेव स्वर्ण पदक पुरस्कार मिला. 1932 तक पटना कॉलेज के छात्र रहे. इतिहास से बीए ऑनर्स किया.
पहले स्कूल टीचर बने. फिर 1942 तक सब-रजिस्ट्रार. 1947 में बिहार सरकार के जनसंपर्क विभाग में डिप्टी डायरेक्टर बने. पोस्ट ग्रेजुएशन किए बिना ही अपनी प्रतिभा के बूते कॉलेज में लेक्चरर नियुक्त हुए. 12 साल तक राज्यसभा सदस्य रहे. फिर भागलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति बने. इसके बाद केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय में हिंदी सलाहकार के तौर पर काम किया.
‘दिनकर’ ने छात्र रहते हुए स्वाधीनता संघर्ष को बहुत करीब से देखा. तब राष्ट्रवाद, आजादी, समाजवाद, साम्यवाद जैसी चीजें हवा में बहुतायत में घुली हुई थीं. जाहिर है कि इनके लेखन पर इन चीजों का असर पड़ना ही था.
प्रोड्यूसर: प्रबुद्ध जैन
कैमरा: अभिषेक रंजन
एडिटर: मो. इब्राहिम
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