राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने काव्य की रचना के साथ-साथ गद्य के जरिए भी साहित्य जगत की भरपूर सेवा की. उन्होंने देशवासियों की रगों में कविताओं के जरिए जोश तो भरा ही, साथ ही अनेक कालजयी निबंध लिखकर लोगों को जीवन जीने का सही तरीका भी सिखाया.
‘हिम्मत और जिंदगी’ दिनकर जी का एक ऐसा ही निबंध है, जिसमें उन्होंने बताया है कि जीवन में सुखों का आनंद लेने के लिए किन बुनियादी शर्तों को पूरा करना पड़ता है. वैसे तो इस निबंध की हर पंक्ति ही ‘सूक्ति’ जैसी है, पर आगे इसकी चुनी हुई कुछ बेहतरीन लाइनें दी जा रही हैं...
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जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं हैं, जो फूलों की छांह के नीचे खेलते और सोते हैं, बल्कि फूलों की छांह के नीचे अगर जीवन का कोई स्वाद छिपा है, तो वह भी उन्हीं के लिए है, जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं, जिनका कंठ सुखा हुआ, ओठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है.
पानी में जो अमृतवाला तत्व है, उसे वह जानता है, जो धूप में खून सुखा चुका है. वह नहीं, जो रेगिस्तान में कभी पड़ा ही नहीं है.
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जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं और उनके मजे बाद को लेते हैं, उन्हें स्वाद अधिक मिलता है. जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है.
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जीवन का भोग त्याग के साथ करो, यह केवल परमार्थ का ही उपदेश नहीं है, क्योंकि संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनंद प्राप्त होता है, वह निरा भोगी बनकर भोगने से नहीं मिल पाता.
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अगर रास्ता आगे ही आगे निकल रहा हो, तो फिर असली मजा तो पांव बढ़ाते जाने में ही है.
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साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं.
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झुंड में चलना और झुंड में चरना, यह भैंसे और भेंड़ का काम है. सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मग्न रहता है.
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जिंदगी से अंत में हम उतना ही पाते हैं, जितनी उसमें पूंजी लगाते हैं. यह पूंजी लगाना जिंदगी के संकटों का सामना करना है, उसके उस पन्ने को उलटकर पढ़ना है, जिसके सभी अक्षर फूलों से नहीं, कुछ अक्षर अंगारों से भी लिखे गए हैं.
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दुनिया में जितने भी मजे बिखेरे गए हैं, उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है. वह चीज भी तुम्हारी हो सकती है, जिसे तुम अपनी जांच के परे मानकर लौटे जा रहे हो.
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कामना का अंचल छोटा मत करो, जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबाकर निचोड़ो, रस की निर्झरी तुम्हारे बहाए भी बह सकती है.
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टॉपिक: कविता रामधारी सिंह दिनकर
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