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यूपी की राजधानी लखनऊ का मलिहाबाद (Malihabad) क्षेत्र अपने दशहरी आमों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन पिछले तीन सालों से यहां आम का उत्पादन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है. इसे लेकर किसानों का कहना है कि बदलते मौसम के कारण आमों पर छिड़की जाने वाली कीटनाशक दवाइयां बेअसर हो रही हैं. वहीं, कृषि एक्सपर्ट का कहना है कि मौसम असंतुलित होने के कारण ऐसा हो रहा है.
मलिहाबाद क्षेत्र के बागों में आम इस बार न के बराबर हैं. जो थोड़ा बहुत है भी उन्हें कीट चट कर जा रहे हैं. लगभग 70 से 80 फीसदी आम की फसल बर्बाद हो चुकी है. इससे पहले कोरोना की मार झेल रहे किसान इस बार मौसम की मार झेल रहे हैं. मलिहाबाद के आम किसान लगातार तीसरे साल नुकसान उठा रहे हैं. इससे पहले के सालों में कोरोना की मार थी वहीं इस बार मौसम और कीट से किसान परेशान हैं.
राम कुमार यादव (55) पहले आम की बागवानी किया करते थे लेकिन अब वो चाय का ठेला लगाते हैं. वो बताते हैं कि ‘पहले मैं भी आम की खेती किया करता था लेकिन पिछले कुछ सालों में नुकसान बहुत हो गया. जिस वजह से मुझे आम की खेती छोड़नी पड़ी.
राम कुमार यादव कहते हैं-''अपनी बाग में आठ बार छिड़काव करा चुका हूं. इसके बाद भी कीटों का प्रकोप कम नहीं हो रहा है. समझ नहीं आ रहा कि इस बार कीटों पर दवाइयां काम क्यों नहीं कर रहीं. दवा दुकान वाले कहते हैं कि गर्मी की वजह से कीटनाशक काम नहीं कर रहे. मुझे लगता है, बाजार में नकली कीटनाशक आ गए हैं.
आम दिखाते हुए तुलसीराम यादव (45) निराश हो जाते हैं. बताते है कि ‘ये आम पहले 30 से 40 रुपए किलो में बिकता था, वह अब 10 से 15 रुपए में बिक रहा. आमदनी इतनी भी नहीं होगी कि इसके भरोसे घर का खर्च चल जाए. पहले इतनी कमाई होती थी कि सालभर बैठकर खाते थे.'
दुर्गा प्रसाद (40) बताते हैं कि ‘इस बार भी आम की फसल अच्छी नहीं हुई. अब हिम्मत टूट रही है. लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र में दुर्गा प्रसाद के कई आम के बाग हैं. पिछले तीन साल से नुकसान हो रहा है. इस बार मार्च में खूब मंजर और फल आए थे, लेकिन ना जाने क्या हुआ सब खत्म हो गए. जिन बागों में आम बचे हैं, उन्हें कीटों से बचाने के लिए डेढ़ लाख का कीटनाशक छिड़क चुका हैं, लेकिन लगता नहीं कि लागत भी निकल पाएगी. कीटों ने सब खराब कर रखा है.’
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और कृषि विशेषज्ञ सुधीर पवार बताते हैं कि मार्च में जब गर्मी बढ़ी तो इन कीटों के लिए वह बेस्ट मौसम बन गया. ऐसा नहीं कि ये कीट पहले नहीं होते थे. लेकिन तब उनके साथ कुछ अच्छे कीट भी होते थे. जो फलों की रक्षा करते थे और नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेते थे. साथ ही कीट-पतंगों में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, वो अपने आप को मौसम के अनुकूल जल्दी ढाल लेते हैं. इस वजह से उनपर कीटनाशक बेअसर हो रहे हैं.
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