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मैं अपने एक दोस्त से 5 साल बाद मिल रहा था ,मैं काफी भावुक और एक्साइटेड था.
हमारी मुलाकात खामोशी के दौर में पहुंच गई और बातचीत के लिए शब्द नोटिफिकेशन की तरह कभी कभार ही निकल रहे थे. जी हां एक मुलाकात जिसे हमने Skype पर कई बार की माथापच्ची के बाद तय किया था ,उसे सोशल मीडिया की मौजूदगी ने खत्म कर दिया था.
अपनी टाइम लाइन पर दुनिया को दिखाने के लिए, साथ गुजरे वक्त की यादगार खूबसूरत सी तस्वीर लेने के बाद हम अपने अपने रास्ते चल दिए. क्या आप इस कहानी से इत्तेफाक रखते हैं!
तो आप भी सोशल मीडिया की लत के गिरफ्त में जा रहे हैं. इन 5 संकेतों पर गौर करें.
सोशल मीडिया की एक खास बात है. कि आपको ऐसा यकीन होने लगता है ,कि सही जिंदगी तो आपके आसपास के दूसरे लोग ही जी रहे हैं. खुशियों की सेल्फीज, हॉलीडे की तस्वीरें, रेस्टोरेंट चेक-इन, हर दम मौज मस्ती. सोशल मीडिया के यही पैरामीटर्स है, जिनपर आप अपनी जिंदगी का आकलन करने लगते हैं. हमारे पोस्ट और पिक्चर्स पर चंद लाइक मिलने पर हमारा उत्साह सातवें आसमान पर पहुंच जाता है ,और ना मिलने पर डिप्रेस्ड हो जाते हैं.
2014 की साइकोलॉजिकल रिपोर्ट मैं छपी एक स्टडी के मुताबिक डिसेबिलिटी एंड ट्रॉमा मैं सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों के दिमाग की जांच से पता चला कि ये लोग नोटिफिकेशंस को इतनी जल्दी रिस्पांड करते हैं, जितना कि शायद ट्रैफिक सिग्नल को भी नहीं करते. यह है सोशल मीडिया का हम पर प्रभाव अगली बार नोटिफिकेशन देखने के लिए जब अपना फोन उठाएं गौर तो कीजिएगा कि कही आप टाइमलाइन बेवजह नीचे स्क्रॉल तो नहीं कर रहे हैं.
यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट. जब छूट जाने का डर कंट्रोल से बाहर हो जाए. अगर दोस्तों के ग्रुप को चेकिंग करने में पिछड़ जाएं और आपको चिड़चिड़ाहट होने लगे तो सोशल मीडिया पर आप कितना वक्त दे रहे हैं इस पर ध्यान देने की खास जरूरत है.
पार्टी ट्रैक या और किसी पीछे छूट जाने का डर आप का भला करने की बजाय बुरा ही करेगा. कई बार कुछ बातों से अंजान होना आपके शारीरिक और मानसिक सुख के लिए बहुत बढ़िया होता है. आप हर समय हर जगह मौजूद नहीं रह सकते ,इससे आप कम हैपनिंग नहीं हो जाते. रात को घबराहट में फोन चेक करने के लिए उठना भी बंद करें.
क्या इंस्टा आपका safe heaven यानी महफूज ठिकाना, और iPhone आप का BAE बिफोर एनीथिंग एल्स यानी हर चीज से पहले हैं. वह दिन अब ढल चुके हैं जब दोस्तों से मिलकर अच्छी खबर शेयर करने की इच्छा होती थी. अब तो बस ऑनलाइन पर स्टेटस अपलोड कर दिया जाता है. अब वर्चुअल चीजों ने जगह ले ली है. और करीबी दूर जाकर ,ऑनलाइन दुनिया की अंधेरी गहराइयों में खो गई है.
हम यह नहीं कह रहे सोशल मीडिया की सारी एक्टिविटी परेशानी का सबब है . मगर अगर आपके मैन्यू कार्ड को पूरा पढ़ने से पहले ही आपका फोन निकल आता है या ,टेबल पर खाना परोसे जाते ही आप इंस्टाग्राम पर अपडेट कर देते है,तो आपको रुककर सोचने की जरूरत है. कुछ लोग खुद को फोन से इतना जुड़ा हुआ पाते हैं कि जागने के बाद और सोने से पहले यही वे चीज है, जिसे वह पकड़े रहते हैं.
यह केवल कही सुनी बातें नहीं है, यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग कि स्कूल ऑफ मेडिसिन की हालिया स्टडी के मुताबिक जितना ज्यादा वक्त नौजवान सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं वह उतना ही डिप्रेशन यह उदासी की तरफ बढ़ते जा रहे हैं.
अगर आपको लोगों से मिलने जुलने में असहज या अटपटा लगता है, लेकिन आप सोशल मीडिया पर खूद को मिलनसार बता रहे हैं, तो आप परेशानियों को न्योता दे रहे हैं.
यह बात समझ लीजिए दोहरी जिंदगी जीना आसान काम नहीं है , बल्कि ज्यादा डिमांडिंग भी है. अगर आप वेब पर मौजूद अपने तमाम दोस्तों के सामने खुद पर मुखौटा लगाकर विचारों से सहमत होने का ढोंग करेंगे, तो इससे आपकी मन की शांति तो भंग होना स्वाभाविक है.
समाधान: आपको सोशल मीडिया त्यागने की जरूरत नहीं है पर कंट्रोल करना बहुत जरूरी है
आप प्यार गुस्सा एक्साइटमेंट क्या महसूस कर रहे हैं इसे दुनिया को जानने की कोई जरूरत नहीं है. खुद को जरा आराम दें. आप इस वक्त कहां हैं यह सोशल मीडिया को अपडेट कर बताना भला क्यों जरूरी है. रेस्टोरेंट, लू, हर जगह से सेल्फी लेकर ताबड़तोड़ Facebook पर पोस्ट कर देना भी अच्छा नहीं है.
हर बर्थडे, पार्टी या शादी सेलिब्रेशन का सोशल मीडिया पर दिखाया जाना भी कहां तक जायज है. तारीफों का पीछा करना बंद करें और स्वाभाविक सच्ची जिंदगी का मजा लें. जीने के लिए खूबसूरत जिंदगी और खोजने के लिए बेहतरीन दुनिया है. बस इसी की तलाश मे निकल चलिये और हां सब को बताने की जरूरत कतई नहीं है.
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