100 रुपए के नए नोट में छपी ‘रानी की वाव’ की कुछ रोचक बातें
100 रुपए के नए नोट के पिछले हिस्से पर गुजरात के ऐतिहासिक ‘रानी की वाव’ की तस्वीर छपी है.
शौभिक पालित
सैर सपाटा
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100 रुपए के नए नोट के पिछले हिस्से पर गुजरात के ऐतिहासिक ‘रानी की वाव’ की तस्वीर छपी है.
फोटो: altered by Quint Hindi
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रिजर्व बैंक ने हाल ही में 100 रुपए के नए नोट का डिजाइन जारी किया है. हल्के बैंगनी रंग के इस नोट के पिछले हिस्से पर छपे गुजरात के ऐतिहासिक 'रानी की वाव' की तस्वीर इसे और ज्यादा आकर्षक बनाती है. इस खूबसूरत धरोहर को यूनेस्को ने साल 2014 में 'वर्ल्ड हेरिटेज साइट', यानी विश्व विरासत की गौरवशाली लिस्ट में शामिल किया. इस धरोहर के बारे में ऐसी कई दिलचस्प बातें हैं, जो इसे अपने आप में प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना बनाती हैं.
तो आइए आपको बताते हैं 'रानी की वाव' से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक तथ्य, जिसे जानकर आप कहेंगे - Wow !
गुजरात के पाटन जिले में मौजूद रानी की वाव को रानी की बावड़ी भी कहा जाता है.11वीं शताब्दी (सन 1063) में सोलंकी वंश के राजा भीमदेव-प्रथम की याद में उनकी पत्नी, रानी उदयमती ने इस बावड़ी को बनवाया था. पाटन सोलंकी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी.
ये सरस्वती नदी के तट पर बना चौड़े आकार का एक विशाल सीढ़ीनुमा कुआं है. सात मंजिली इस बावड़ी के चारों ओर बेहद खूबसूरत कलाकृतियों से बनावट की गई है. इसमें दाखिल होने पर ऐसा महसूस होता है, मानो आप किसी भूमिगत भव्य मंदिर में दाखिल हो रहे हैं.
पाटन सोलंकी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी.(फोटो: गुजरात टूरिज्म)
सैकड़ों सालों तक सरस्वती नदी में आने वाली बाढ़ की वजह से ये वाव धीरे-धीरे कीचड़, रेत और मिट्टी के नीचे दबती चली गई. 80 के दशक के आखिरी सालों में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस जगह की खुदाई करनी शुरू की. खुदाई के बाद ये जगह पूरी तरह से आधुनिक दुनिया के सामने आई. वाव की मूर्तियां, शिल्पकारी और नक्काशी बेहद अच्छी स्थिति में पाए गए.
पीने के पानी का प्रबंध और पानी को इकट्ठा करने की प्रणाली इस वाव को बनवाने के पीछे की प्रमुख वजह थी. स्थानीय लोककथाओं के मुताबिक, इसे बनवाने के पीछे दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि रानी उदयमती जरूरतमंद लोगों को पानी पिलाकर पुण्य कमाना चाहती थीं.
भूमिगत जल संसाधन और संग्रह प्रणाली के लिए बावड़ियों का निर्माण भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही हैं. इस तरह के सीढ़ीदार कुएं का निर्माण यहां ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से किया जाता रहा है. कन्नड़ में बावड़ियों को ‘कल्याणी’ या पुष्करणी, मराठी में ‘बारव’, उत्तर भारत में ‘बावली’ और गुजराती में ‘वाव’ कहते हैं.
खुदाई के बाद वाव की मूर्तियां, शिल्पकारी और नक्काशी बेहद अच्छी स्थिति में पाए गए.(फोटो: गुजरात टूरिज्म)
यह बावड़ी 64 मीटर लम्बी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है. सात मंजिला इस बावड़ी को मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली में बेहद खूबसूरती से बनाया गया है. इसका चौथा तल सबसे गहरा है, जो एक 9.5 मीटर लंबे, 9.4 मीटर चौड़े और 23 मीटर गहरे एक टैंक तक जाता है.
रानी की वाव में 500 से ज्यादा बड़ी मूर्तियां और एक हजार से ज्यादा छोटी मूर्तियां पत्थरों पर उकेरी गई हैं. यहां के दीवारों और स्तंभों की शिल्पकारी और नक्काशी देखते ही बनती है.
बावड़ी में हिंदू देवी-देवताओं की खूबसूरत मूर्तियां उकेरी गई हैं(फोटो: गुजरात टूरिज्म)
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बावड़ी के डिजाइन की थीम हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के 'दशावतार' पर आधारित है. विष्णु के दस अवतारों की कलाकृतियां यहां देखने को मिलती हैं. इनके चारों ओर साधुओं और अप्सराओं की मूर्तियां भी हैं. इसके अलावा ब्रह्मा, दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश, पार्वती, शिव, कुबेर, भैरव, सूर्य समेत कई देवी-देवताओं की कलाकृति भी यहां देखने को मिलती हैं.
यहां भारतीय स्त्री के परंपरागत सोलह श्रृंगार को भी मूर्तियों के जरिए दिखाया गया है. बावड़ी में प्रत्येक स्तर पर स्तंभों से बना हुआ गलियारा है, जो वहां की दोनों तरफ की दीवारों को जोड़ता है. इस गलियारे में खड़े होकर आप रानी के वाव की सीढ़ियों की खूबसूरती को देख सकते हैं.
सात मंजिला इस बावड़ी को मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली में बनाया गया है.(फोटो: गुजरात टूरिज्म)
रानी की वाव में सबसे आखिरी स्तर पर एक गहरा कुआं है, जिसमें गहराई तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं. कुएं में अंदर तक जाने पर इसके तल में शेषनाग शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु की मूर्ति देखने को मिलती है.