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भोपाल की प्रस्तावित बाइपास सड़क कैसे 'झीलों के शहर' के लिए खतरा बन सकती है? | Photos

Bhopal: 'सबसे स्वच्छ शहर' के पर्यावरण पर क्या 'पश्चिमी भोपाल बाईपास रोड' घातक साबित होगी?

नवीन जैन
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<div class="paragraphs"><p>मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम ने मणिदीप से इंदौर को जोड़ने वाली 42 किमी पश्चिमी भोपाल बायपास सड़क के निर्माण का प्रस्ताव दिया है.</p></div>
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मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम ने मणिदीप से इंदौर को जोड़ने वाली 42 किमी पश्चिमी भोपाल बायपास सड़क के निर्माण का प्रस्ताव दिया है.

Photo: क्विंट 

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जीवों के विकास की जो भी कहानियां अब तक सामने आई हैं उनको देखते हुए हम साफ तौर पर कह सकते हैं की इस धरती पर केवल इंसानों का हक नहीं है बल्कि हर जीव का बराबर अधिकार है. ये जानने के बाद भी कि दुनिया के इकोसिस्टम के लिए सभी प्रजातियों के अस्तित्व की कितनी जरूरत है.

भोपाल (Bhopal) का भोज वेटलैंड (Bhoj Wetland) का इलाका इकोसिस्टम की नजरिए से काफी अहम है. यहां मध्यप्रदेश सरकार और भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित 'पश्चिमी भोपाल बाइपास रोड' का निर्माण कैसे इस जगह को खतरे में डाल सकता है तस्वीरों के जरिए समझिए.

भारत 1971 के रामसर कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्ता है. यह समझौता वेटलैंड (नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड कहते हैं) के संरक्षण को बढ़ावा देता है. इस समझौते को जलपक्षी आवास के लिए जरूरी माना जाता है. ईरान के रामसर शहर में साल 1971 में इस समझौते की नींव रखी गई. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ऊपरी और निचली झील को घेरने वाली भोज वेटलैंड को 2002 में रामसर साइट का दर्जा मिला. भारत सरकार और मध्यप्रदेश सरकार ने 'पश्चिमी भोपाल बाइपास रोड' के निर्माण को मंजूरी दे दी है. यह ऊपरी झील के महत्वपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र को काट देगी, जिससे वनस्पतियों और जीव जंतुओं के लिए मुश्किल हालात पैदा हो सकते हैं. (तस्वीर ऊपरी झील की है)

Photo: नवीन जैन

भोज वेटलैंड में भोपाल की दो महत्वपूर्ण झीलें शामिल हैं. भोज ताल कही जाने वाले ऊपरी झील और निचली झील शहर की जलापूर्ति के लिए काफी जरूरी हैं. इसके साथ ही साथ जलीय जीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए भी काफी अहम स्थान रखती हैं. ऊपरी झील भारत की सबसे पुरानी मानव निर्मित झील है. इसे 11वीं सदी में राजा भोज ने अपने शहर को सूखे से बचाने के लिए कोलांस नदी पर एक मिट्टी का बांध बनवाया था. वहीं निचली झील का अधिकांश हिस्सा ऊपरी झील से रिसाव की वजह से है. शहर के बीच में स्थित होने के बाद भी भोज वेटलैंड एक बेहतर पर्यावरणीय परिवेश बनाता है. निचली झील का निर्माण लगभग 200 साल पहले किया गया था. (तस्वीर निचली झील की है)

Photo: नवीन जैन

वेटलैंड्स को बायोलॉजिकल सुपर-मार्केट कहा जाता है. दोनों झीलें जैव विविधता का विकास करती हैं. खास तौर से मैक्रोफाइट्स, फाइटोप्लांकटन, ज़ोप्लांकटन, प्राकृतिक और मछलियों की दुर्लभ प्रजातियां और प्रवासी पक्षियों, कीड़े, सरीसृप और उभयचर यहां पनपते हैं. 1995 में जापान सरकार की वित्तीय सहायता से शुरू की गई एक प्रबंधन कार्य योजना को लागू करने के बाद से इस क्षेत्र में कई पक्षियों की प्रजातियां ऐसी देखी गई हैं जो शायद पहले कभी कहीं देखी गई थीं.  

Photo: नवीन जैन

ये झीलें एक अहम शहरी वेटलैंड बनाती हैं, जो कई काम करती हैं, जैसे पीने, सिंचाई और मछली पकड़ने के लिए आवश्यक जल संसाधन प्रदान करना और शहर के निवासियों के लिए पिकनिक स्पॉट. भोज वेटलैंड की महत्वपूर्ण जैव विविधता पक्षियों, जलीय जीवन और पौधों की अलग-अलग प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाती है. (फोटो में वेटलैंड के आसपास का वन क्षेत्र है)

Photo: नवीन जैन

ऊपरी झील (अपर लेक) का जलक्षेत्र अधिकतर ग्रामीण इलाके में पड़ता है, जिसके पूर्वी और उत्तरपूर्वी किनारों की ओर शहरी भोपाल की घनी बस्तियां हैं. यही वजह है कि अपर लेक की वनस्पतियों और जीवों को इतने लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सका. इन वनस्पतियों और जीवों की वजह से इसे 2002 में 'रामसर साइट' के रूप में नामित किया गया. रामसर साइट्स अपने पारिस्थितिक महत्व के लिए पहचानी जाती हैं, जो दुर्लभ, लुप्तप्राय और प्रवासी प्रजातियों सहित पौधों और जानवरों की अलग-अलग प्रजातियों का संरक्षण करती हैं. वे जल विज्ञान प्रक्रियाओं, बाढ़ नियंत्रण, जल शुद्धिकरण और जलवायु विनियमन (रेगुलेशन) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. रामसर कन्वेंशन वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी सुरक्षा और प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए ऐसी जगहों के संरक्षण को प्रोत्साहन देता हैं. हाल ही में साल 2023 में भोपाल को रामसर कन्वेंशन के तहत 'वेटलैंड सिटी एक्रीडेशन' के लिए भारत सरकार द्वारा भी नामांकित किया गया था.

तस्वीर में: ग्राम बोरखेड़ी.

Photo: नवीन जैन

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ऊपरी झील (भोज वेटलैंड) के इतने लंबे समय तक संरक्षित रहने का एक अहम कारण इसका ग्रामीण जलग्रहण क्षेत्र है, जो सदियों से अछूता रहा है. खास तौर से अपर लेक एक बड़े पैमाने पर ग्रामीण इलाकों के जलक्षेत्र में फैला हुआ है. इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र का लगभग 80% हिस्सा इसमें शामिल है. ये मध्य प्रदेश का जिला भोपाल और सीहोर में फैला हुआ है. इस बड़े जलग्रहण क्षेत्र में बड़े स्तर पर जलीय जीव और वनस्पतियां संरक्षित हैं. पर्यावरण के बदलते परिदृश्य को देखते हुए ये एक संवेदनशील इलाका है. लंबे समय से अपर लेक को संरक्षित करने के प्रयासों में इस ग्रामीण जलग्रहण क्षेत्र की अखंडता को बनाए रखना भी शामिल है. 

तस्वीर- कैचमेंट एरिया, गांव बोरखेड़ी

Photo: नवीन जैन

सरकार द्वारा प्रस्तावित बाइपास रोड का एडिशनल सेगमेंट गैर-जरूरी है. इस बाईपास के बनने से अपर लेक का कैचमेंट एरिया खतरे में पड़ सकता है. इसके अलावा ग्रामीण जल जीवन पर संकट आ सकता है. ये योजना जिस क्षेत्र के लिए है उसमें ऊपरी झील का जलग्रहण क्षेत्र भी शामिल है.सीहोर में होने वाली बारिश का पानी इस झील तक आता है यही इसका प्राथमिक जल स्त्रोत है.

तस्वीर में: नरेला गांव, जिससे प्रस्तावित बाईपास सड़क भी गुजरेगी 

Photo: नवीन जैन

इस क्षेत्र के पर्यावरणीय महत्व के बाद भी 'पश्चिमी भोपाल बाइपास रोड' के प्रस्तावित निर्माण के कारण कोलांस नदी के आसपास का महत्वपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र बुरी तरह खतरे में पड़ सकता है. लगभग 40.9 किलोमीटर लंबी इस सड़क को भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार, दोनों द्वारा स्वीकृत किया गया है. इस सड़क को रायसेन के औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप से इंदौर तक बनाया जा रहा है ताकि यातायात में सुविधा हो. ये प्रस्तावित सड़क का सीधे ऊपर चर्चा किए गए जलग्रहण क्षेत्र से होकर गुजरती है और इसके भीतर आने वाले 12 गांवों को प्रभावित करता है. अगर ये सड़क बनती है तो जैविक संतुलन के इस क्षेत्र का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है. गौरतलब है कि भोपाल के विकास मास्टर प्लान में न होने के बावजूद इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है.

Photo: नवीन जैन

ऐसी परिस्थितियों में भोपाल के जिम्मेदार नागरिक के तौर पर इस बाइपास रोड के 12 KM के अतिरिक्त हिस्से को (जो भोज वेटलैंड को बुरी तरह प्रभावित करेगा ) तत्काल रद्द करने की मांग करने की जरूरत है. इस रोड का बनना पर्यावरण की नजरिए से वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण की दृष्टि से बहुत चिंताजनक है. सड़क का ये गैर-जरूरी निर्माण रोकना पर्यावरण के लिए जरूरी है.

Photo: नवीन जैन

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