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प्रशासन की बेरुखी से उजड़ रहे उत्तरकाशी के ये गांव, नहीं हुआ विकास

गांव में पानी, बिजली, खेती और मिश्रित जंगल मौजूद हैं लेकिन ऊंची पहाड़ी पर बसे इन गांव में दशकों से सड़क नहीं पहुंची.

कपिल पंवार
My रिपोर्ट
Updated:
गांव में पर्याप्त पानी, बिजली, खेती और मिश्रित जंगल मौजूद हैं लेकिन ऊंची पहाड़ी पर बसे इन गांव में दशकों से सड़क नहीं पहुंची.
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गांव में पर्याप्त पानी, बिजली, खेती और मिश्रित जंगल मौजूद हैं लेकिन ऊंची पहाड़ी पर बसे इन गांव में दशकों से सड़क नहीं पहुंची.
(फोटो: Accessed by Quint)

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से महज 3-4 किमी की दूरी पर बसे जसपुर, सिल्याण, निराकोट गांव की आबादी लगभग एक हजार के आस-पास है, लेकिन इन गांव के ज्यादातर लोग अब जिले के नगरपालिका क्षेत्र तिलोथ गांव या मुख्य बाजार में किराए के कमरों मे रहने को मजबूर है.

गांव में पर्याप्त पानी, बिजली, खेती और मिश्रित जंगल मौजूद हैं लेकिन ऊंची पहाड़ी पर बसे इन गांव में दशकों से सड़क नहीं पहुंची. पथरीले उबड़-खाबड़ रास्तों से सफर करते करते ज्यादातर गांव वालों की उम्र बीत गई, लेकिन युवा पीढ़ी अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पलायन करने पर मजबूर हैं.

पलायन करने वाले 90 फीसदी लोग या तो दिहाड़ी-मजदूर हैं या छोटे-मोटे कारोबारी है. महज 7-8 हजार रुपये की आमदनी में ये लोग किराये के मकान में रहने को मजबूर हैं.

पलायन करना लोगों की मजबूरी है, कोई दूसरा उपाय नहीं है . बच्चों को यहां से लेन ले जाने में काफी दिक्कत होती है. अगर रोड होती तो वो यहीं से अपने बच्चों को पढ़ाते और काम करते.
मनोज राणा, ग्रामीण
पलायन करने वाले 90 फीसदी लोग या तो दिहाड़ी-मजदूर हैं या छोटे-मोटे कारोबारी है(फोटो: Accessed by Quint)

कभी इन गांवों से बाजार की लोकल सब्जी मण्डी में सब्जियां जाती थी लेकिन आज नई पीढ़ी यातायात संसाधनों के अभाव में खेती से विमुख हो रही है.

सबसे खास बात ये है कि ये तीनों गांव प्राकृतिक जलस्त्रोत से भरपूर है जहां सिचाई और पीने का पानी की कोई दिक्कत नहीं है लेकिन आवाजाही के लिए सड़क न होने के चलते लोग गांव छोड़ने को मजबूर हैं.

कभी इन गांवों से बाजार की लोकल सब्जी मण्डी में सब्जियां जाती थी लेकिन आज नई पीढ़ी यातायात संसाधनों के अभाव में खेती से विमुख हो रही है.(फोटो: Accessed by Quint)
हमारा गांव बहुत सुंदर है, अगर यहां सड़क होती तो यहां भी पर्यटक आते, और गांव वालों को यहीं पर रोजगार मिलता, उन्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं थी.
ग्रामीण 
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आजादी के 73 साल बाद भी गावों तक नहीं पहुंची पक्की सड़क

निराकोट गांव के हालत तो ये है कि यहां तक पहुंचने के लिए 3 किमी का रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता है.(फोटो: Accessed by Quint)

निराकोट गांव के हालत तो ये है कि यहां तक पहुंचने के लिए 3 किमी का रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता है. निराकोट और सिल्याण गांव के हालते इतने बुरे हैं कि आजादी के 73 साल बाद भी इन गावों तक पक्की सड़क नहीं पहुंच पाई हैं.

उत्तराखंड बनने से पहले से यहां के ग्रामीण सड़क की मांग कर रहे हैं. जिसे साल 2007 में स्वीकृत मिली लेकिन पिछले 13 साल से सड़क सरकारी फाइलों में ही दब कर रह गई. जब-जब लोगों ने सड़क के लिए आवाज उठाई तब तब पीडब्लयूडी विभाग ने एक नये सर्वे करके लोगों को आश्वासन के सिवाय कुछ नही दिया.

इन दिनों उत्तरांखड में कोरोना संक्रमण के कारण हजारों लोगों ने अपने गांव का रूख किया तो प्रवासी उत्तराखंडियों को पहाड़ में रोकने के लिए सरकार ने चिन्तन मंथन शुरू कर दिया. पलायन आयोग ने इसका आंकड़ा भी जुटा लिया और पलायन कर चुके लोगों से पलायन के कारण भी जानें लेकिन जो लोग छोटी-छोटी जरूरत के लिए पलायन करने के मुहाने पर खड़े हैं उनकी सुध सरकार और पलायन आयोग शायद तब लेगा जब सिल्याण ,जसपुर, निराकोट जैसे कई गांव उत्तराखंड में जनसंख्या शून्य होकर भूतिया गांव के आंकड़ों में तब्दील हो जायेगें.

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Published: 11 May 2020,07:16 PM IST

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