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मार्च के महीने में श्रीनगर के डल झील (Dal Lake) में तैरते मशहूर मार्केट में मेरा जाना हुआ. यह दूसरी लहर आने के ठीक पहले की बात है, जब कोरोना मामलों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही थी. वहां जाने के बाद मेरी आंखों के सामने वो दृश्य था जो मैंने इसके पहले कभी नहीं देखा था. पक्षियों का चहचहाना, ताजी हवा, पानी में नावों का ग्रुप और सब्जी विक्रेताओं का शोर, इससे बाजार बेहद सुंदर और आकर्षक लग रहा था. वहां के विक्रेता बहुत ही अच्छे थे, उन्होंने मेरे साथ बहुत ही दयालु व्यवहार किया.
बीच-बीच में वो हल्की आवाज में पुकारते थे, ताजी-ताजी सब्जियां यहां हैं. सभी तरह की स्थानीय सब्जियों के साथ नावें लाइन से खड़ी थी, जिनसे एक प्राकृतिक सुंदरता झलक रही थी. डल झील का वो नजारा देखने लायक था. मैं उनकी किसी प्रकार से मदद नहीं कर सकता था लेकिन आश्चर्य में था कि कोरोना महामारी के बीच कैस ये लोग बाजार को संभालने में कामयाब रहे हैं.
लॉकडाउन उनके अस्तित्व के लिए नई चुनौतियां लेकर आया लेकिन बाजार साल भर चलता रहा.
कई सब्जी विक्रेताओं के लिए बाजार उनके परिवार की परम्परा है. वहीं कुछ लोग यह भी करते हैं कि यह बाजार 700 साल पुराना है.
हालांकि, अब आस-पास के क्षेत्रों में जल निकासी की समस्या होने से झील में प्रदूषक पदार्थ जाते रहते हैं, जिससे पानी दूषित हो चुका है. इस समस्या से व्यापारियों की चिंता और बढ़ गई है. फिलहाल अभी की स्थिति यही है.
यह बाजार सुबह करीब 5 बजे खुलता है, जब शहर के अधिकतर लोग सो रहे होते हैं. यह एक या दो घंटे से अधिक समय तक खुला रहता है. डल झील के आसपास रहने वाले लोग सब्जियों, फूलों आदि को बेचने के लिए कंकची मोहल्ले के एक स्थान के आसपास अपनी नावों की कतार लगाते हैं. सदियों से यह बाजार इस प्रथा को अपनाती रही है.
वे इन सब्जियों की सप्लाई पूरे श्रीनगर के साथ अनंतनाग और गांदरबल जैसे कुछ जिलों के आसपास तक करते हैं.
पहले इस बाजार में केवल नावों के माध्यम से ही पहुंच हो पाती थी, लेकिन अब स्थानीय प्रयासों के बाद छोटे-छोटे पुलों का निर्माण कराया गया है. एक स्थानीय निवासी नासिर अहमद का कहना है कि स्थानीय लोगों के अलावा कश्मीर सरकार ने बाजार को विकसित करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.
बाजार में आए हुए एक दक्ष पर्यटक ने मुझे बताया कि यहां पर वो पहली बार आए हैं. उन्होंने कहा कि पूरे भारत में मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा.
एक ओर कई लोगों के लिए एक पर्यटन स्थल है तो दूसरी ओर यह सैकड़ों लोगों की आजीविका का स्रोत है. श्रीनगर के इस रत्न पर सरकार क्यों ध्यान नहीं देती है.
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