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जावेद अख्तर: नफरत के जख्मों पर मोहब्बत का मरहम लगाने वाला शायर

जावेद साहब मोहब्बत करने वाले इंसानों के शायर हैं यानी मोहब्बत और इंसानियत के शायर हैं.

हाशिम रज़ा जलालपुरी
My रिपोर्ट
Updated:
नफरत करने वालों ने हुकूमत की होगी मगर शायरी तो मोहब्बत करने वालों ने की है - जावेद अख्तर
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नफरत करने वालों ने हुकूमत की होगी मगर शायरी तो मोहब्बत करने वालों ने की है - जावेद अख्तर
(फोटो:Twitter)

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<b>यह क्यों बाकी रहे आतिश जनों, यह भी जला डालो, कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा नहीं लगता</b>

नफरत करने वालों ने हुकूमत की होगी मगर शायरी तो मोहब्बत करने वालों ने की है - जावेद अख्तर

2005 में लखनऊ चौक स्टेडियम के मुशायरे में जावेद अख्तर को पहली बार लाइव सुनने का इत्तिफाक हुआ. जहां तक मुझे याद आता है कि जावेद अख्तर ने कई नज्में और गजलें सुनाईं मगर उनके चाहने वालों की फरमाइशें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

मेरे लिए यह सब किसी खूबसूरत ख्वाब की तरह था क्योंकि मैं उस वक्त इल्म से फिल्म तक शोहरत रखने वाले शायर जावेद अख्तर को सुन भी रहा था और देख भी.

जावेद साहब की दिल फरेब आवाज, पुर कशिश लहजा, दिलकश अंदाज और खूबसूरत शायरी सुनने वालों के दिल और दिमाग में रंग और खुशबू की तरह घर कर रही थी.

मैं जावेद साहब की शायरी का लुत्फ भी उठा रहा था और हैरान भी था कि कैसे कोई इंसान इतने सादा, आम और आसान लफ्जों में इतनी मुश्किल और पेचीदा बातें कह लेता है. शायद इसी को लफ्जों की जादूगरी कहते हैं और लफ्जों के जादूगर को जावेद अख्तर.

17 जनवरी को जावेद अख्तर का जन्मदिन है. जावेद अख्तर ने 17 जनवरी 1945 को जांनिसार अख्तर और सफिया अख्तर के घर खैराबाद सीतापुर उत्तर प्रदेश में आंख खोली.

वालिद जांनिसार अख्तर ने अपनी नज्म के मिसरे लम्हा-लम्हा किसी जादू का फसाना होगा पर जावेद अख्तर का नाम जादू रखा. बाद में यह नाम बदल कर जावेद कर दिया गया जो कि जादू के नजदीक था.

जावेद अख्तर की परवरिश और तरबियत एक इल्मी और अदबी घराने में हुई. परदादा अल्लामा फजले हक खैराबादी (जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में बगावत का फतवा दिया और काला पानी की सजा हुई), दादा मुज्तर खैराबादी (लेनिन अवॉर्ड से सम्मानित शायर), वालिद जांनिसार अख्तर (मशहूर शायर और नगमा निगार), वालिदा सफिया अख्तर (जेरे-लब की राइटर) तो मामूं उर्दू शायरी के कीट्स मजाज लखनवी थे.

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ऐसे घराने में जिसके कई सितारे अदब और शायरी के आसमान पर पहले से ही पूरी आबो-ताब के साथ जलवागर हों, अपनी अलग शिनाख्त और पहचान कायम करना कितना मुश्किल काम होता है. लेकिन जावेद अख्तर ने अपनी इल्मी और अदबी सलाहियत और काबिलियत की बिना पर इस मुश्किल काम को भी आसान कर दिखाया. अक्सर ऐसा होता है कि नए चिराग पुराने चिरागों की तेज रोशनी के असर में आकर अपनी चमक खो देते हैं और उनके बुजुर्ग ही उनके परिचय का सबब बन जाते हैं.

मगर जावेद अख्तर ने इसके बरअक्स कभी भी कहीं भी अपने बुजुर्गों के नाम की नुमाइश नहीं की बल्कि अपनी शख्सियत की लौ को इतना तेज किया कि वो अपने बुजुर्गों के परिचय का सबब बन गए.

जावेद अख्तर की शायरी जिन्दगी के हर मुकाम पर इंसानियत की अलमबरदारी करती है(फोटो: क्विंट हिंदी)

घर के माहौल के जेरे असर जावेद अख्तर ने बचपन में ही उर्दू और दीगर जबानों का साहित्य पढ़ना शुरू कर दिया. जिस उम्र में बच्चे खेलकूद में दिलचस्पी रखते हैं उस उम्र में जावेद अख्तर को हजारों शेर जबानी याद थे. स्कूलों और कॉलेजों की डिबेट और बैतबाजी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे. उर्दू और दूसरी जबानों के शायरों के दीवान पढ़ लेने के बावजूद भी जावेद अख्तर ने अपनी शायरी के सफर का आगाज देर से किया.

जावेद अख्तर की दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, पहली किताब- तरकश, दूसरी किताब- लावा. पहली किताब का दीबाचा कुर्रतुलऐन हैदर ने और दूसरी किताब का दीबाचा गोपी चंद नारंग ने लिखा, दोनों ही जावेद अख्तर के शायराना शऊर से बेहद प्रभावित नजर आते हैं.

स्कूलों और कॉलेजों की डिबेट और बैतबाजी में सबसे आगे रहते थे जावेद अख्तर(फोटो: क्विंट हिंदी)

सिवाए मोहब्बत और इंसानियत के कोई भी फलसफा तमाम जिन्दगी नहीं निभाया जा सकता. मोहब्बत में जीत की तमन्ना और हार का इमकान नहीं होता, क्योंकि मोहब्बत कोई जंग का मैदान नहीं है.

फतह की चाह नहीं हार का इम्कान नहीं

यह मोहब्बत है कोई जंग का मैदान नहीं - हाशिम रजा जलालपुरी

गालिब ने कहा था कि आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना यानी आदमी का इंसान होना ऐक दुश्वार अमल है, जिसके लिए बड़ी रियाजत दरकार होती है. किसी भी शायर के लिए इंसान होना उतना ही जरूरी है जितना की रात और अंधेरों के वजूद को मिटाने के लिए सूरज का निकलना.

जावेद अख्तर की शायरी जिन्दगी के हर मुकाम पर इंसानियत की अलमबरदारी करती हुई नजर आती है. यही वजह है की जावेद साहब मोहब्बत करने वाले इंसानों के शायर हैं यानी मोहब्बत और इंसानियत के शायर हैं.
जावेद अख्तर ने अभी तक दो किताबें लिखी हैं, तरकश और लावा.(फोटो: क्विंट हिंदी)
नफरत के बीच एक मोहब्बत की तरह है जावेद अख्तर की शायरी(फोटो: क्विंट हिंदी)

आज जब हमारे मुल्क में नफरतअंगेज तकरीरों के जरिए डर और दहशत का माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है. इंसानों को इंसानों से दूर किया जा रहा है. हमारी गंगा जमुनी तहजीब के माथे पर मुसलसल जख्म लगाया जा रहा है. चारों तरफ नफरत के बीज बोए जा रहे हैं, जिसका नतीजा मोहब्बत और इंसानियत के लिए अल्लाह जाने क्या खबर लेकर आए. इन हालात में कोई जिंदा जमीर और दर्द मंद इंसान खामोश नहीं रह सकता.

जावेद अख्तर को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए पदम श्री (1999), पदम भूषण (2007), साहित्य अकादमी अवार्ड (2013) और ना जाने कितने अवार्ड्स से नवाजा गया है और उनका इल्मी और अदबी सफर मुसलसल जारी है, हम उनकी लंबी उम्र के लिए दुआ करते हैं, ताकि उनकी शायरी के जरिए मोहब्बत और इंसानियत का पैगाम आम होता रहे.

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Published: 17 Jan 2019,10:42 AM IST

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