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ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का...आपने शायद ही ऐसी कोई बारात देखी होगी, जिसमें ये वाला गाना न बजा हो. यही है हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज म्यूजिक कंपोजर ओमकार प्रसाद नैयर के सम्मोहक संगीत और उनके ‘क्लासिक’ गानों का जादू, जो आज की पीढ़ी को भी थिरकने को मजबूर करता है.
आज जन्मदिन के दिन आइए जानते हैं ओपी नैयर से जुड़ी तीन दिलचस्प बातें, और साथ ही सुनते हैं उनके बनाए कुछ हर दिल अजीज गाने.
ओपी नैय्यर अपने दौर के सबसे महंगे संगीतकार थे. 1950 के दशक में एक फिल्म के लिए 1 लाख रुपये की फीस लेने वाले वे पहले संगीतकार थे. उस जमाने में ये बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. उनकी काबिलियत को देखते हुए ये कहना बिलकुल सही होगा कि वे इस फीस के हकदार थे. ये बात उन्हें और उनको पेमेंट देने वाले प्रोड्यूसर्स को बखूबी पता थी.
जिस लता मंगेशकर की आवाज का मुरीद हर संगीतप्रेमी है, और जिस लता मंगेशकर की आवाज बाकी दुनिया के लिए सबसे ज्यादा सुरीली थी, वो आवाज नैयर साहब को कभी न भायी. यही वजह है कि 73 फिल्मों में संगीत देने के बावजूद उन्होंने कभी लता जी से एक भी गाना नहीं गवाया. हालांकि यही वो कंपोजर थे, जिन्होंने आशा भोसले की आवाज की वेरिएशन का बखूबी इस्तेमाल करते हुए उन्हें सिंगिंग स्टार बनाया
पचास के दशक के दौरान आल इंडिया रेडियो ने नैयर के संगीत को ज्यादा मॉर्डन और पश्चिमी कल्चर से प्रेरित बताते हुए उनके गानों पर बैन लगा दिया था, और इनके गाने भारतीय रेडियो पर काफी लंबे समय तक नहीं बजाए गये. हालांकि इस बात से उन्हें रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा और वे अपनी ही धुन में एक से बढ़कर एक धुन बनाते रहे, जो सुपरहिट गानों में तब्दील होते रहे.
16 जनवरी 1926 को लाहौर में जन्मे ओ पी नैयर ने साल 1952 में फिल्म 'आसमान' से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की थी. लेकिन उनको अपने हुनर की असली पहचान मिली गुरुदत्त की फिल्मों से. इनमें 'आरपार', 'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'सीआईडी' और 'तुम सा नहीं देखा' जैसी फिल्में शामिल है.
ओपी नैयर के बारे में कहा जाता है कि बड़े जिद्दी और विद्रोही स्वभाव के आदमी थे. उनका ये स्वभाव उनके आखिरी वक्त तक उनके साथ रहा. 28 जनवरी 2007 को उन्होंने दुनिया से अलविदा कह दिया.
अब उनके बनाए सदाबहार और खूबसूरत गानों में से कुछ चुनिंदा गाने भी सुन लीजिए-
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