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'बिना कोच के, हम जैवलिन थ्रो सीखने के लिए नीरज चोपड़ा के वीडियो देखते हैं'

गाजियाबाद में बिना कोच के जैवलिन थ्रो सीखने वाले एथलीट्स की कहानी

रोहित खिडकिवाल
My रिपोर्ट
Published:
<div class="paragraphs"><p>जेवलिन थ्रो नीरज चोपड़ा</p></div>
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जेवलिन थ्रो नीरज चोपड़ा

फोटो- क्विंट हिंदी

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जब नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) ने 7 अगस्त 2021 को टोक्यो 2020 ओलंपिक में जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था, तो वो मेरे जीवन का सबसे बड़ा दिन था. उनके इस कारनामे की वजह से न केवल भारत को प्रसिद्धि और सम्मान दिलाया, बल्कि इसने खेल को एक नया जीवन भी दिया.

मैं लगभग तीन वर्षों से मधुनगर में अपने दोस्त के साथ भाला फेंक (जैवलिन) खेल का अभ्यास कर रहा हूं. यहां पर बहुत से लोग खेल के बारे में नहीं जानते थे. वास्तव में, वे सोचते थे कि भाला एक छड़ी है.

नीरज सर के पदक जीतने के बाद, खेल का महत्व बढ़ गया है. अब लोग जानने लगे हैं कि भाला क्या है. पहले सभी इसे डंडा या छड़ी कहते थे. जब से नीरज सर ने भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता है, इस खेल को एक नई पहचान मिली है. हमें खेल खेलने के लिए एक अलग तरह का सम्मान भी मिलता है.
मधु नगर, जेवलिन थ्रोवर

पिछले कुछ महीनों में, कई नए एथलीटों ने हमारे गाजियाबाद के महामाया स्पोर्ट्स स्टेडियम में खेल खेलना शुरू कर दिया है, क्योंकि उनके परिवारों ने उनको सपोर्ट मिलना शुरू हो गया है.

पहले मैं अपने गांव में भाला फेंकने का अभ्यास करता था. मैं हमेशा से खेल खेलना चाहता था, लेकिन हर कोई चाहता था कि मैं पढ़ाई करूं. पहले मैं बांस की डंडी फेंकता था. मेरे परिवार ने कहा कि खेल में हासिल करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. जब उन्होंने नीरज भाई को ओलिंपिक में मेडल जीतते देखा तो, उन्होंने मुझे खेलने की इजाजत दे दी. मुझे यहां ट्रेनिंग में शामिल हुए एक सप्ताह हो गया है.
प्रिंस कुमार, जेवलिन थ्रोवर
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उन्होंने बताया कि महामाया स्पोर्ट्स स्टेडियम में हमें प्रशिक्षित करने के लिए कोई कोच नहीं है. इसलिए, हमारे लिए खेल की कला में महारत हासिल करना बहुत मुश्किल होती है.

एक कोच के बिना, खेल अधूरा है. हम एक-दूसरे को देखते हैं, लेकिन हम बारीकियों को नहीं जानते हैं और इस तरह गलतियां करते हैं. जब हम अपने वीडियो की YouTube पर मौजूद वीडियो से तुलना करते हैं, तो हमें बहुत सारी गलतियां मिलती हैं. हमें अभी तक अपने खेल में सुधार करने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है. जैसा कि हम जेएलएन स्टेडियम (JLN Stadium, New Delhi) में अपने सीनियर्स से कुछ सीख रहे हैं, और नीरज सर के वीडियो देखकर, हमें विभिन्न टेक्निक्स सीखने को मिलती हैं. हम इन चीजों को यूट्यूब पर देखते हैं और इन्हें दोहराने की कोशिश करते हैं, लेकिन हम इन्हें ठीक से सीख नहीं पाते हैं.
मधु नगर, जेवलिन थ्रोवर

हमने कई बार स्टेडियम में अधिकारियों से कोच के लिए अनुरोध किया है, लेकिन हमें अभी भी एक भी कोच नहीं मिला है.

हमारे स्टेडियम में प्रशिक्षकों की नियुक्ति उत्तर प्रदेश खेल विभाग के माध्यम से की जाती है. हमने एथलेटिक्स में कोचों की अपनी मांग भेज दी है. हम उन्हें जल्द ही प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं.
पूनम विश्नोई, खेल अधिकारी, महामाया स्पोर्ट्स स्टेडियम

तब तक हम YouTube की मदद से अपने दम पर अभ्यास और प्रशिक्षण जारी रखेंगे. हमें उम्मीद है कि जल्द ही एक कोच मिल जाएगा और हम नीरज सर के कारनामे को दोहराएंगे.

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