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काबुल से हावड़ा: तालिबान से बचकर भागे एक परिवार की आपबीती

अफगानिस्तान से भारत आने वाले एक अफगान नागरिक की दर्द भरी दास्तान

क्विंट हिंदी
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<div class="paragraphs"><p>मोहम्मद खान का परिवार फ्लाइट में अफगानिस्तान से बचकर भारत आया</p></div>
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मोहम्मद खान का परिवार फ्लाइट में अफगानिस्तान से बचकर भारत आया

(फोटो: क्विंट हिंदी) 

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इस दिन, ठीक एक महीने पहले, काबुल (Kabul) पर तालिबान (Taliban) का कब्जा हुआ, जिससे अफगानिस्तान में लाखों लोग अपने भविष्य के बारे में अनिश्चित थे. दुनिया भर के विभिन्न देशों में शरण लेने के लिए हजारों नागरिक अफगानिस्तान से भाग गए.

मोहम्मद खान का परिवार तालिबान के शासन से बचकर भारत आने वाले कई अफगानों में से एक था.

सोशल मीडिया के माध्यम से हमें पता चला कि मोहम्मद खान कोलकाता में हैं, इसलिए हम उनसे और उनके परिवार से मिलने गए. हमने उनसे ये समझने की कोशिश की, कि अपनी मातृभूमि को छोड़ना कितना मुश्किल था, और अपने परिवार को तालिबान शासन से सफलतापूर्वक बाहर निकालने में उन्हें कितनी राहत मिली.

जब हम उनके घर पहुंचे तो खान और उनके परिवार ने विनम्रता से हमारा अभिवादन किया और फिर खान ने काबुल से हावड़ा तक अपनी कहानी सुनाना शुरू किया.

कैसे सब कुछ शुरू हुआ

“15 अगस्त की शाम के 4 बजे थे, मैं सो रहा था और मेरी बेटी घर से बाहर गई थी. जब वह लौटी तो उसने कहा, 'तालिबान आ गया है.' मैं जल्दी से अपना फोन खोला और मैंने सोशल मीडिया पर खबरें पढ़ीं कि तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया है.”
मोहम्मद खान, अफगान शरणार्थी

खान ने तुरंत मदद के लिए काबुल में भारतीय दूतावास में अपने दोस्त से संपर्क किया. उनके दोस्त ने एक वाहन की व्यवस्था की, जिससे वह दूतावास तक पहुंच सके. अगले ही दिन दूतावास ने उन्हें वीजा जारी किया और खान अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ भारत के लिए निकलने में सफल रहे.

बातचीत में अफगान शरणार्थी मोहम्मद खान काबुल हवाई अड्डे के दृश्यों का वर्णन करते हैं.

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“हजारों लोग हवाई अड्डे पर बैठे थे. हर कोई देश से बाहर जाने के लिए फ्लाइट का इंतजार कर रहा था. कुछ दुबई की फ्लाइट में रुके थे, जबकि कुछ अमेरिका के लिए फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे. हजारों लोग थे. भारत के लिए मेरी फ्लाइट में बहुत सारे लोग आए और बहुतों को सीट नहीं मिली और उन्हें फ्लाइट में खड़ा होना पड़ा.”
मोहम्मद खान, अफगान शरणार्थी

दिल्ली में उतरने के बाद, खान अपने चाचा के सुझाव पर अपनी बेटियों के साथ हावड़ा चले गए

(फोटो- द क्विंट)

जब हम खान से बात कर रहे थे, तब हमें उनकी दो बेटियों, आठ साल की मलाली और नौ साल की पश्ताना के साथ खेलने का भी मौका मिला. स्पष्ट कारणों से उन दोनों को हिंदी या बंगाली बोलना नहीं आता था. दोनों काबुल के एक स्कूल में पढ़ रहे थे, लेकिन अब हावड़ा में खान ने उनके लिए स्थानीय भाषा सिखाने के लिए एक शिक्षक नियुक्त किया है.

हावड़ा में मोहम्मद खान अपनी बेटी, मलाली और पश्ताना के साथ

(फोटो- द क्विंट)

तालिबानियों से पहले काबुल में रहने जैसा क्या था?

उनके फोन पर तस्वीरों को स्क्रॉल करते हुए हमने कई तस्वीरें देखीं जिनमें काबुल के इस जीवन का वर्णन किया गया है. वो कपड़ा विक्रेता थे.

तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने से पहले काबुल में अपने दिनों को याद करते हुए, खान कहते हैं, "काबुल में बिताए गए दिन खूबसूरत थे. वहां मेरा घर था. कुछ ही दिनों में काबुल नरक में बदल गया. मुझे दुख होता है जब काबुल के मेरे दोस्त फोन करते हैं. काबुल अब बर्बाद हो गया है."

अपने कमरे में अफगानिस्तान के झंडे की ओर देखते हुए खान कहते हैं:

"मैंने सब कुछ खो दिया, काबुल में मेरा अधिकांश सामान नष्ट हो गया. मैं इसे (झंडे की ओर इशारा करते हुए) काबुल से लाने में कामयाब रहा. यह मुझे मेरे मुल्क की याद दिलाता है."

भारत सरकार से एक अपील

खान के माता-पिता, भाई और परिवार के विस्तारित सदस्य अभी भी अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं और वह भारतीय अधिकारियों के माध्यम से उन्हें भी निकालने की कोशिश कर रहे हैं.

“मैं भारत सरकार से अनुरोध कर रहा हूं. भारत ने हर बार अफगानिस्तान का समर्थन किया है. इस बार भी कृपया वहां के लोगों की मदद करें, क्योंकि वे बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं. लोग खतरे में हैं और उन्हें मारा जा रहा है."
मोहम्मद खान, अफगान शरणार्थी

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