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"तुम कौन हो? यहां क्या कर रही हो? यहां फोटो खींचना मना है. ऊपर से ऑर्डर है, मोबाइल अंदर रखो" . पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (PMCH) की जब मैं तस्वीरें ले रही थी और वीडियो बना रही थी तो एक सिक्योरिटी गार्ड ने चिल्लाते हुए मुझे रोका.
PMCH की लगातार बदत्तर होती हालत किसी से छिपी नहीं हैं. मीडिया को अंदर आने की इजाजत नहीं है. अस्पताल के बाहर बैंक की तुलना में ज्यादा सिक्योरिटी गार्ड तैनात हैं. यहां तक कि, अस्पताल की बदहाली को उजागर करने और फोटो लेने वाले मीडियाकर्मियों को सिक्योरिटी गार्ड ने मारा पीटा. सिक्योरिटी गार्ड ने मेरा फोन भी मुझसे छीन लिया और जो कुछ तस्वीरें मैंने ली थी उसको भी डिलीट कर दिया.
"मरीजों को मरने के लिए यहां छोड़ दिया जाता है. कोई हमारी बात नहीं सुनता, हम किससे शिकायत करें, हम कहां जाएं?" मैंने देखा कि परिवार के लोग मरीज को एक कपड़े के टुकड़े में लपेटे हुए हैं. वे शायद उसे दूसरे वार्ड में स्थानांतरित करने जा रहे थे. मरीज को देखने -संभालने वाला कोई नहीं था. डॉक्टरों के आने का पता नहीं चलता, मैंने एक मरीज के एक रिश्तेदार को चिल्लाते हुए सुना, "डॉक्टर को बुलाओ, मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो रही है".
इलाज के लिए इंतजार कर रहे मरीजों को कॉरिडोर में रखा जाता है. ऐसे में अक्सर उनकी स्थिति बिगड़ जाती है. और अगर किस्मत ज्यादा खराब रही तो डॉक्टर जब तक जांच के लिए आते हैं उससे पहले ही रोगी की मृत्यु हो जाती है. मैंने परिवार के एक सदस्य से पूछा कि वे इलाज से कितने संतुष्ट हैं. उन्होंने कहा, "साहब लोग (सीनियर डॉक्टर) तो छठ मना रहे हैं अब तक, सिर्फ जूनियर डॉक्टर लोग आते हैं, वो भी कभी कभी". न तो सीनियर डॉक्टर मिलते और ना ही दवाओं की पर्याप्त व्यवस्था है. परिवार के कुछ सदस्यों ने तो डॉक्टरों की तरफ से बदतमीजी की शिकायत भी की.
55 साल के प्रेम यादव ने मुझसे बात की. उन्होंने मुझे बताया, "मैं पटना से हूं, मेरे पिता को दिल का दौरा पड़ा था और हम उन्हें इलाज के लिए PMCH ले आए. कोई डॉक्टर नहीं था, और हमें इंतजार करने के लिए कहा गया. करीब सात घंटे तक इंतजार करने के बाद एक नर्स मेरे पिता को देखने गई. डॉक्टर के आने का इंतजार करते-करते मेरे पिता की मौत हो गई. "
यादव की आंखों से आंसू आ जाता है..वो रोते-बिलखते कहते हैं, "यहां मरीजों को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है और नर्सें भी चाहती हैं कि ये हो जाए ताकि बेड खाली मिले. यहां जान ले ली जाती है, अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से मेरे पिता की मौत हो गई.
एक दूसरे मरीज के घरवाले जमील अख्तर से मैंने बात की, जो किडनी की दिक्कत को ठीक कराने यहां आए हैं. उन्होंने हमें बताया, हम गरीब लोग हैं, हम शिकायत भी नहीं कर सकते." उन्होंने कहा कि यहां आने के बाद मरीज की हालत और बिगड़ गई. यहां कोई सुविधा नहीं है.
पोस्टमॉर्टम वार्ड के बाहर जगह-जगह कचरा फैला हुआ था. अस्पताल ही जानलेवा बीमारियों का अड्डा है. यहां गंदगी के बीच इलाज कराना लोगों की मजबूरी बन गई है. सड़ते कचरे के ढेर से उठ रही दुर्गंध लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रही है और इससे मरीजों के संक्रमित होने का खतरा बना हुआ है.
पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल पटना, बिहार में सबसे पुराने और सबसे बड़े सरकारी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में से एक है. कम आय वर्ग वाले लोग यहां पूरे देश से इलाज के लिए आते हैं. कई रिपोर्ट्स में अस्पताल में लापरवाही की पोल खुली है. 7 सितंबर को देर रात बिहार के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव ने PMCH का औचक निरीक्षण किया.
निरीक्षण के बाद तेजस्वी यादव ने संवाददाताओं से बात की. उन्होंने बताया कि,
लेकिन अब दो महीने से ज्यादा गुजर गए हैं और अभी तक हालात में सुधार नहीं हुआ है. टाटा वार्ड में स्थिति और भी खराब हो गई है. मौजूदा हालात को देखकर ऐसा नहीं लगता कि खामियों को दूर कर लिया गया है. PMCHकी हालत कब तक सुधरेगी और मरीजों को कब तक इंतजार करना पड़ेगा, इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है. PMCH का खुद इलाज कभी हो पाएगा या नहीं, ये भी पता नहीं.
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