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महान सूफी संत बुल्ले शाह फरमाते हैं- अगर इंसान में जज्बा यानि जुनून हो तो नृत्य भी इबादत बन जाता है. सच्चे मन और पूरी लगन से किए गए नृत्य से भी ईश्वर को खुश किया जा सकता है. यह बात उस्ताद नुसरत फतेह अली खान पर भी सटीक बैठती है, जिन्होंने अपनी गायकी से सूफी संगीत को एक नई पहचान दी, जिनकी सूफी गायकी का लोहा पूरब से लेकर पश्चिम तक माना जाता है.
नुसरत का जन्म 13 अक्टूबर 1948 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में हुआ था. संगीत से नुसरत फतेह अली के खानदान का 600 साल पुराना नाता रहा है. संगीत नुसरत की नसों में बहता था. लेकिन नुसरत को प्रसिद्धि विरासत में मिली, यह कहना गलत होगा. संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए नुसरत को कड़ी साधना करनी पड़ी. नुसरत ने सफल होने के लिए मेहनत के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं चुना. यही वजह है कि आज भी नुसरत फतेह अली का नाम सूफी गायकी में बडे़ अदब से लिया जाता है.
20 वीं शताब्दी में सूफी संगीत को लोकप्रिय बनाने में सबसे अहम योगदान नुसरत का ही है. या यूं कहें कि रूहानी संगीत का जिक्र सूफी संगीत के बिना अधूरा है और सूफी संगीत उस्ताद नुसरत फतेह अली खान के बिना अधूरा है.
चार भाई बहिनों में नुसरत सबसे छोटे थे. गायकी से पहले वे तबला नवाज थे. बाद में उनका रूझान गायकी की तरफ हुआ. नुसरत के पिता फतेह अली खान भी एक सफल गायक थे. उनकी गायकी में पिता की छाप थी, नुसरत इस बात को कुबूल करते समय गर्व महसूस करते थे. नुसरत के संगीत का सफर 1965 से शुरू हुआ. उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा से सूफी संगीत में कई रंग भरे.
नुसरत की गायकी के दीवाने पूरी दुनिया में हैं. सूफी संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए नुसरत ने पूरी दुनिया में लाइव शो किए. ये सभी शो बेहद हिट रहे. उनकी संगीत मंडली में ज्यादा लोग और तामझाम नहीं होता था. 10-12 लोगों की उनकी टीम 10 हजार से लेकर एक लाख तक की भीड़ पर अपना असर छोड़ने के लिए पर्याप्त थी.
नुसरत फतेह अली का मिजाज सूफियना था. जो वे गाते थे उसकी झलक उनके जीवन और व्यक्तित्व में भी मिलती थी. वे बेहद गंभीर और खुले दिमाग के प्रगतिशील विचारों के शख्स थे. सफलता के चरम पर पहुंचने के बाद भी नुसरत ने जिंदगी भर सादगी को अपनाए रखा. आज के कलाकारों के लिए वे किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं.
पिता के निधन से नुसरत को बड़ा दुख पहुंचा. उनके सामने कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो गईं. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें? परेशानियों से घिरे नुसरत फतेह अली खान को एक रात सपना आया की वे एक मजार पर गा रहे हैं और उनके पिता साथ हैं, इस सपने की चर्चा नुसरत ने अपने एक परिचित से की.
परिचित ने सपने का मतलब समझाया और बताया कि सपने में जिस मजार का जिक्र कर रहे हैं, वो मजार ख्वाजा अजमेर शरीफ की दरगाह है. इसके बाद वे भारत आए और पवित्र दरगाह पर गायकी पेश की. इसके बाद वे कई बार यहां जियारत करने आए.
दुनियाभर में कव्वाली को लोकप्रिय और आम इंसान की जुबान पर पहुंचाने का श्रेय नुसरत फतेह अली खान को ही जाता है. लेकिन सफलता पाने के लिए नुसरत को कड़ी मेहनत से गुजरना पड़ा. शुरूआत में नुसरत ने पाकिस्तान के गांवों में धूल और गर्मी के बीच लोगों को कव्वाली सुनाईं. संषर्घ के दिनों में वे कभी हताश नहीं हुए उन्होंने हौसला बनाए रखा और पूरी लगन से अपने काम में जुटे रहे. इस मेहनत ने उन्हें ये सिखा दिया की सफल होने का रास्ता आसान नहीं होता. हिम्मत, जुनून और कुछ करने की चाहत ने उन्हें बुलंदी तक पहुंचा दिया.
हजरत अमीर खुसरो के बाद कव्वाली में सबसे ज्यादा प्रयोग नुसरत ने ही किए. अमीर खुसरो ने कव्वाली को सुर बक्शे तो नुसरत ने कव्वाली में राग रागनियां भर दी. कव्वाली में शास्त्रीय संगीत का सफल प्रयोग का श्रेय नुसरत को ही जाता है. इतना ही नहीं कव्वाली में वाद्य यंत्रों के प्रयोग को बढ़ावा दिया. तबले के साथ लय की जुगलबंदी भी नुसरत ने ही शुरू की. नुसरत की सरगम बेहद लोकप्रिय हुईं.
लयकारी और मिजाजी गायकी को भी नुसरत ने नया रंग दिया. नुसरत ने बॉलीवुड और हॉलीवुड की फिल्मों में भी संगीत दिया. इनका संगीत आज भी सराहा जाता है. बेंडिट क्वीन, धड़कन, कारतूस, और प्यार हो गया, कच्चे धागे में संगीत दिया, जो बहुद पसंद किया गया.
नुसरत की प्रतिभा का लोहा दुनिया के नामचीन संगीतकार भी मानते थे. उनके प्रशंसकों में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर जापान के सम्राट तक शामिल हैं. उन्होनें विश्व के कई महान संगीतकारों के साथ भी काम किया. हॉलीवुड के संगीतकार पीटर गेब्रीअल के साथ भी काम किया. खुले विचारों के नुसरत ने संगीत को कभी सरहद और वंदिशों में नहीं बांधा. उनका कहना था कि अच्छे संगीत की कोई जुबान नहीं होती. पश्चिमी संगीत जब पूरी दुनिया में छा रहा था तब नुसरत ने अमेरिका और ब्रिटेन के लोगों को सूफी संगीत का दीवाना बना दिया.
नुसरत ने समकालीन संगीतकारों को भी प्रोत्साहित किया. उनके साथ काम किया और वैश्विक संगीत की नींव रखी.
युवा पीढ़ी में कव्वाली को लोकप्रिय नुसरत ने ही बनाया. नुसरत ने कई नए राग इजाद किए. उनका मानना था कि अच्छा कलाकार मेहनत से बनता है.
एक बार नुसरत जापान गए. जापान के सम्राट ने खुद उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की. वे उनकी गायकी से बेहद प्रभावित थे. नुसरत ने अपने गायन की शुरूआत हजरत अमीर खुसरो की गजल से की.
मशहूर शोमैन राजकपूर ने सबसे पहले उन्हें भारत बुलाया था. गुर्दे खराब हो जाने से 16 अगस्त 1996 को इस महान कलाकार का इंतकाल हो गया, लेकिन उस्ताद नुसरत फतेह अली खान की आवाज आज भी फिजाओं में गूंज रही है.
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