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सैनिकों, आपके मजबूत जज्बे के आगे ये कलम कुछ लिखने के काबिल नहीं

आपको अपने सैनिक को ‘संदेश’ भेजने का मौका मिले, जिसने देश के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी, तो आप उनसे क्या कहेंगे?

रोहित ओझा
My रिपोर्ट
Published:
आपको अपने सैनिक को ‘संदेश’ भेजने का मौका मिले, जिसने देश के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी, तो आप उनसे क्या कहेंगे?
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आपको अपने सैनिक को ‘संदेश’ भेजने का मौका मिले, जिसने देश के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी, तो आप उनसे क्या कहेंगे?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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प्रिय सैनिकों,

दिल्ली के 8 डिग्री सेल्‍स‍ियस के तापमान में जब मैं कंबल ओढ़े बैठा था, तभी अचानक मेज पर पड़े अखबार के कोने में छपी एक खबर पर नजर ठहर गई. खबर ये थी कि माइनस 35 से चालीस डिग्री सेल्‍स‍ियस के बीच हमारे सैनिक हमारी सुरक्षा के लिए सीमा पर तैनात हैं. माइनस सुनकर ही पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई. सैनिकों, तुम्हारे इस जज्बे के समक्ष पूरा देश नतमस्तक है.

एक सैनिक का जीवन कितना कठिन होता है, इसका अंदाजा तो नहीं है मुझे. पर मेरे दफ्तर के कामों से हजार गुना मुश्किल तो होता ही होगा. दिन-रात अपने घर-परिवार की फिक्र किए बगैर तुम मोर्चे पर जमे रहते हो. खबरों के पेशे में हूं. हर दिन तुम्हारे पराक्रम की खबरें सुनता हूं. देश के लिए तुम्हारे बलिदान की वीर गाथाएं शरीर के रोंगटे खड़े कर देती हैं.

सैनिकों, आप जैसे न जाने कितने सैनिक आज सीमा पर हमारी सुरक्षा के लिए तैनात होंगे, जिनके बच्चे का कल जन्मदिन रहा होगा, कोई कुछ दिन पहले ही पिता बना होगा. लेकिन तुम अपनी सारी भावनाओं और खुशियों को हमारे लिए कुर्बान कर सीना ताने दुश्मनों को मौत के घाट उतार रहे हो. ताकि 125 करोड़ लोग अपना गणतंत्र दिवस शान से मनाएं.

इस देश की सेना में शामिल होने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते हुए बड़े करीब से मैंने अपने एक दोस्त को देखा है, जिसका दिन सुबह के तीन बजे शुरू हो जाया करता था. जिस वक्त देश लगभग बेसुध नींद में सो रहा होता. सुबह की दौड़ से शुरू हुआ उसके दिन-रात सेना भर्ती की परीक्षाओं के सवालों को हल करते हुए समाप्त होते थे.

बरसों मेहनत की उसने सेना में जाने के लिए और आज बड़े गर्व से कहता हूं. वो आज भारतीय सेना का एक जांबाज सिपाही है. कई-कई हप्ते उससे बात नहीं हो पाती है. सीमा पर तैनात रहता है, जहां फोन का नेटवर्क काम नहीं करता. हमारी सुरक्षा भार अपने कंधे पर लिए मेरे दोस्त प्रिंस के जैसे कई और बहादुर सिपाही हैं, जो अपनी जान हथेली पर रख रात-दिन इस देश की सुरक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहते हैं.

सैनिकों, हमें मालूम है कि तुम्हारे रहते इस देश में कोई अप्रिय स्थिति पैदा नहीं हो सकती. अगर हुई भी, तो तुम इस देश को और हमें अपने शरीर को ढाल बनाकर बचा लोगे.  सैनिकों क्या लिखूं तुम्हारे सम्मान में, मेरी कलम तुम्हारे मजबूत जज्बे के सामने कुछ भी लिखने के काबिल नहीं है. बस हर भारतीय की तरह इतना ही कहना चाहता हूं. सैनिकों! इस देश के एक नागरिक की ओर से तुम्हारे फौलादी हौसलों को सलाम.

तुम्हरा एक मित्र

  रोहित ओझा

'संदेश To A Soldier' क्या है?

आप एक सैनिक से क्या कहेंगे, जिसने अपनी छुट्टियों, जन्मदिन, सालगिरह, अपने बच्चे के जन्म और ऐसे कई मौकों को गंवा दिया, सिर्फ इसलिए ताकि वो अपनी ड्यूटी निभा सके?

अगर आपको अपने सैनिक को 'संदेश' भेजने का मौका मिले, जिसने देश के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी, तो आप उनसे क्या कहेंगे?

इस गणतंत्र दिवस द क्विंट आपसे, देश के नागरिकों से गुजारिश करता है कि भारत के जांबाज हीरो- सैनिक के नाम अपना संदेश लिखकर या रिकॉर्ड करके भेजिए. क्विंट अपनी वेबसाइट पर एक इंटरैक्टिव ऐप के जरिए इन सभी संदेशों को एक ही जगह पर दिखाएगा.

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'संदेश To A Soldier' की जरूरत क्यों?


भारतीय गणतंत्र और देश में जिस सुरक्षित माहौल में हम जीते हैं, उसका जश्न मनाने के लिए क्विंट सैनिकों की प्रतिबद्धता और बहादुरी को सेल्यूट करना चाहता है. अपनी जिम्मेदारी को नि:स्वार्थ तौर पर निभाने, महीनों तक अपने परिवार से दूर रहने, अपने बच्चे का स्कूल में पहला दिन मिस करने, या अपने बूढ़े माता-पिता की मदद करने को उनके आस-पास मौजूद न होने के लिए क्विंट उन्हें सेल्यूट करना चाहता है.

'संदेश To A Soldier' के जरिए क्विंट भारतीय नागरिकों को उन सैनिकों से जोड़ना चाहता है, जिन्हें वे कभी नहीं जानते होंगे. ये खामोशी से उनका आभार जताने का एक तरीका, उनकी तारीफ का एक टोकन और देशभक्ति भरी एक कवायद है.

जय हिन्द!

'संदेश To A Soldier' कैसे भेजें?

ये बहुत आसान है. बस एक चिट्ठी लिखें या अपना संदेश रिकॉर्ड करें और इसे myreport@thequint.com पर ईमेल करें या  9999008335 पर वॉट्सऐप कर

(सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों/आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, इससे क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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