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देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ये बात 2005 में जयपुर के करीब 600 स्कूली बच्चों साथ बातचीत के दौरान कहा था. जाहिर है उनके इस बात के अर्थ बहुत गहरे थे. क्योंकि वो रेतीली जमीन ही थी, जिस पर कलाम ने अपने तेज मस्तिष्क और मजबूत हौसलों के दम पर अपने जीवन के सबसे बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था.
भारत 1995 में परमाणु बम का परीक्षण करने की कोशिश नाकाम हो चुकी थी. अमेरिकी सैटेलाइट और खुफिया एजेंसी सीआईए ने भारत के इस अरमान पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. तब भारत को अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर अपने कदम वापस खींचने पड़े थे. 1996 में सरकार बदली अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार देश की गद्दी संभाली और परमाणु परीक्षण का राजनीतिक फैसला किया, लेकिन सरकार महज 13 दिन ही चल सकी.
19 मार्च 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. दोबारा सरकार बनी और सरकार बनने के करीब दो ही महीने बाद धमाका हुआ. धमाका ऐसा जबरदस्त कि पोखरण की रेतली जमीन कांप उठी, रेत का बवंडर धरती और आसमान के बीच फैल गया. तारीख थी 11 मई जब बुद्ध एक बार फिर से मुस्कुराए थे.
1998 में जब बाजपेयी दोबारा प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने तुरंत डीआरडीओ प्रमुख कलाम और परमाणु ऊर्जा के प्रमुख राजगोपाल चिदंबरम को हरी झंडी दे दी. कलाम ने अपनी टीम के साथ काम शुरू किया, जिसकी सबसे बड़ी चुनौती थी अमेरिकी सेटेलाइट से बच कर अपने मिशन को अंजाम देना, क्योंकि 1995 में सेटेलाइट ने किए कराए पर पानी फेर दिया था.
काम शुरू हुआ, मिशन का नाम रखा गया 'शक्ति' और मिशन में शामिल सभी लोगों को नए नाम दिए गए, जिससे कि उनकी असली पहचान सुरक्षित रहे और वो अपना काम गोपनीय तरीके से कर सकें. राजस्थान की देह झुलसा देने वाली गर्मी में महीनों तक काम चलता रहा, सेटेलाइट से बचने के लिए काम रात में भी किए जाते.
इस मिशन में शामिल सभी लोग फौजी की वर्दी में काम करते, ताकि किसी को कुछ भी शक न हो पाए. मिशन के प्रमुख कलाम का नाम बदलकर मेजर जनरल पृथ्वीराज रखा गया था.
पहचान छिपाने के लिए सभी वैज्ञानिक आर्मी के ट्रक से ही पोखरण पहुंचते, वहां छोटे से आर्मी बंकर में कई कंप्यूटर, कंट्रोल बोर्ड और तमाम सभी जरूरी सेटअप किया गया था. कलाम ने आर्मी की कंपनी की मदद से पांच गहरे कुएं खुदवाए थे. इनके नाम भी अजीब थे. इनमें से दो सौ मीटर गहरे थे, जिस कुएं में हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया, उसे व्हाइट हाउस का नाम दिया गया था, जबकि फिशन बम के कुएं को ताजमहल और पहले सबकिलोटन बम वाले कुएं को कुम्भकर्ण का नाम दिया गया.
ऑपरेशन शक्ति की शुरुआत सेब की पेटियां भारतीय वायुसेना के मालवाहन विमान एएन-32 में रखने के साथ हुई थी. एक मई को तड़के तीन बजे मुंबई के सांताक्रुज हवाई अड्डे से जैसलमेर तक का हवाई सफर और जैसलमेर से पोखरण तक सेना के ट्रकों में सेब की पेटियों के साथ इस यात्रा की कमान मेजर जनरल नटराज (आर. चिदम्बरम) और 'मामाजी' (अनिल काकोडकर) के पास थी, लेकिन जैसे ही ट्रकों का कारवां सेव की पेटियां लेकर खेतोलाई गांव में बनाए गए 'डीयर पार्क' (परीक्षण नियंत्रण कक्ष) के प्रार्थना हॉल तक पहुंचा, कमान मेजर जनरल पृथ्वीराज (कलाम) के हाथ आ गई.
दरअसल, लकड़ी के बक्सों में सेब नहीं, बल्कि भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में बनाए गए परमाणु बम थे, जिन्हें बड़ी गोपनीयता के साथ मुम्बई से पोखरण लाया गया था.
करीब एक घंटे पहले उस रेंज का मौसम विभाग का एक ऑफीसर जिसका नाम अदि मर्जबान था, बंकर में दाखिल हुआ और वो बैठे दो जर्नल्स को सैल्यूट किए बिना ही पास में रखी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया. उसने बताया कि अचानक से इस वक्त तेज हवा बहने लगी है, इसलिए जब तक हवा न रुके तब तक के लिए हमें परीक्षण रोकना होगा. परीक्षण को उस वक्त रोक दिया गया, फिर जब हवा थमी, तब जाकर करीब 3:45 बजे ट्रिगर दबा और फिर जोर का विस्फोट... बाकी सब इतिहास.
पोखरण 2 अभियान को जिस सतर्कता और अमेरिकी सेटेलाइट को चकमा देते हुए गुप्त तैयारी के बाद 11 मई 1998 को एक के बाद एक पांच विस्फोट किये गये, तो दुनिया की आंखे फटी रह गई और बुद्ध लगातार मुस्कराते रहे.
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का परमाणु कार्यक्रम से लगाव करीब 24 साल पहले से था. पोखरण 2 का सफल परीक्षण कर कलाम ने भारत को विश्व शक्ति के पटल पर खड़ा कर दिया और शायद इसी की गूंज थी, जो उन्हें राष्ट्रपति के पद तक खिंचे लिए चली गई.
पोखरण की तस्वीरों में आर्मी की वर्दी पहने और माथे पर हैट लगाए कलाम नजर आते हैं, जिनमें हैट में से उनके बिखरे सफेद बाल लटकते दिखते हैं. राष्ट्रपति बनने के बाद वो बच्चों के बीच खूब रहे. तमाम यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित करते, नए आइडिया के बारे में बातें करते. किताबें भी खूब लिखी.
जब राष्ट्रपति के पद से रिटायर हुए और नए घर में शिफ्ट होने लगे, तो उनसे पूछा गया कि आपको क्या-क्या सुविधाएं चाहिए, आप बता दें, उसके मुताबिक आपके घर को तैयार कर दिया जायेगा, तो उन्होंने कहा था कि बस बेहतरीन इंटरनेट का कनेक्शन और एक लैपटॉप मुहैया करा दिया जाए.
(ये आर्टिकल रोहित कुमार ओझा ने लिखा है. इस आर्टिकल में लिखे विचार उनके हैं. द क्विंट का उनके विचार से सहमत होना जरूरी नहीं है)
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Published: 27 Jul 2018,08:08 AM IST