advertisement
पूर्वोत्तर में लगे अफस्पा (AFSPA) को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला किया है. 1 अप्रैल से असम के 23 जिलों से अफस्पा हटा लिया गया. वहीं मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड को लेकर भी ऐसे फैसले किए गए. ऐसे में समझते हैं कि आखिर अफस्पा क्या है? इसे लेकर क्या विवाद है और सालों से लागू अफस्पा को सरकार ने क्यों और किन-किन क्षेत्रों से हटाया?
असम में 1990 से अशांत क्षेत्र अधिसूचना लागू है. अब 1 अप्रैल 2022 से असम के 23 जिलों को पूरी तरह और 1 जिले को आंशिक रूप से अफस्पा के प्रभाव से हटाया गया. मणिपुर के 6 जिलों के 15 पुलिस स्टेशन क्षेत्र को अशांत क्षेत्र अधिसूचना से बाहर किया गया. यानी इन जगहों से अफस्पा कानून हटाया गया.
अब अफस्पा के इतिहास में चलते हैं और समझते हैं कि सबसे पहले इसे पूर्वोत्तर में क्यों लगाना पड़ा?
अफस्पा (AFSPA) यानी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट. 11 सितंबर 1958 को संसद की मंजूरी के बाद अफस्पा बना. सबसे पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में लगाया गया. इसे अशांत क्षेत्रों में लागू किया जाता है. अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे, ये फैसला केंद्र सरकार करती है. अफस्पा (Armed Forces Special Powers Act) के तहत सुरक्षाबलों को स्पेशल पावर दी गई है, जिसके तहत वे बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं. कई मामलों में बल भी प्रयोग कर सकते हैं.
जब पूर्वोत्तर की बात करते हैं तो उसमें भारत के आठ राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैंड और सिक्किम आते हैं. सिक्किम को छोड़ दें तो बाकी एक साथ जुड़े राज्यों को सात बहनों (Seven Sisters) के नाम से भी जाना जाता है.
अब सवाल उठता है कि अफस्पा को सबसे पहले पूर्वोत्तर में ही क्यों लगाया गया? दरअसल, पूर्वोत्तर में अलगाववाद और हिंसा जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही थीं. 1950 के दशक में नागा नेशनल काउंसिल की स्थापना के साथ नागा नेशनलिस्ट मूवमेंट शुरू हुआ. इसका नेतृत्व अंगमी जपू फिजो ने किया था. उद्देश्य अगल संप्रभु नागा राज्य की स्थापना करना था.
मणिपुर में भी इसे 1958 में सेनापति, तामेंगलोंग और उखरुल के तीन नागा-बहुल जिलों में लगाया गया था, जहां नागा नेशनल काउंसिल (NNC एक्टिव थी. 1960 के दशक में चुराचांदपुर के कुकी-जोमी बहुल मणिपुर जिले में लगाया गया. जो मिजो विद्रोही आंदोलन के प्रभाव में था. फिर 1979 में राज्य के बाकी हिस्सों में लागू किया गया. जैसे-जैसे अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववादी और राष्ट्रवादी आंदोलन पनपने लगे वैसे-वैसे अफस्पा को लगाया जाने लगा.
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक पीआईएल में दावा किया गया कि 2000 और 2012 के बीच मणिपुर में कम से कम 1528 एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग हुई. इरोम शर्मिला जैसे कार्यकर्ताओं ने अफस्पा का विरोध किया. इस कानून के खिलाफ 16 साल की लंबी लड़ाई लड़ी. भूख हड़ताल पर रहीं.
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में 6 कथित फर्जी मुठभेड़ के मामलों की जांच के लिए पूर्व जज संतोष हेगड़े की अध्यक्षता में एक समिति गठित की. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और कर्नाटक के पूर्व डीजीपी अजय कुमार सिंह समिति के अन्य सदस्य थे. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पीड़ितों में से किसी का भी कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था.
अफस्पा असम, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, चंडीगढ़, और जम्मू-कश्मीर सहित कई हिस्सों में लगा था, लेकिन अमित शाह की घोषणा के बाद ये जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, इम्फाल के 7 क्षेत्रों को छोड़कर मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है. त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय से इसे पहले ही हटा लिया गया है.
शुरू में AFSPA अविभाजित असम की पहाड़ियों के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में लगाया गया था, जिन्हें अशांत क्षेत्र कहा गया. नागालैंड की पहाड़ियां उन क्षेत्रों में से थीं. बाद में पूर्वोत्तर के सभी सात राज्यों को AFSPA के तहत लाया गया. बाद में जम्मू-कश्मीर और पंजाब में भी लागू किया गया. 2008 में पंजाब अफस्पा को वापस लेने वाला पहला राज्य बना. पंजाब के अलावा 2015 में त्रिपुरा में और 2018 में मेघालय में अफस्पा को हटा लिया गया.
अफस्पा को सबसे पहले 1958 में लागू किया गया. अब 64 साल बाद इसे लेकर सरकार ने कई जगहों से हटाने जैसा बड़ा फैसला किया है. दरअसल, पिछले दो दशकों में पूर्वोत्तर के विभिन्न हिस्सों में उग्रवाद में कमी देखी गई. साल 2014 की तुलना में 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74% की कमी आई है. सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की मृत्यु में भी क्रमश: 60% और 84% की कमी आई है. पिछले कुछ सालों में लगभग 7000 उग्रवादियों ने सरेंडर किया है.
कई ग्रुप पहले से ही भारत सरकार के साथ बातचीत कर रहे थे. नागालैंड में सभी प्रमुख समूह- एनएससीएन (आई-एम) और नागा राष्ट्रीय राजनीतिक समूह (एनएनपीजी) सरकार के साथ समझौते के अंतिम स्टेज में हैं.
इन सबके अलावा नागालैंड के मोन जिले की घटना ने ट्रिगर प्वाइंट का काम किया. यहां के ओटिंग गांव में 4 दिसंबर 2021 को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 ग्रामीणों की मौत हो गई, जिसके बाद अफस्पा को हटाने के लिए एक बाद फिर से बहस तेज हो गई. नतीजा तीन महीने बाद सबके सामने है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)