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AFSPA के खिलाफ मणिपुर में 16 साल तक सत्याग्रह करने वाली इरोम शर्मिला की कहानी

नगालैंड, मणिपुर और असम के कुछ क्षेत्रों से AFSPA हटाया गया,अरुणाचल में बढ़ाया गया, कश्मीर में कोई बदलाव नहीं

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने गुरुवार, 31 मार्च को बताया कि केंद्र सरकार ने नागालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों को नियंत्रित करने का फैसला किया है. AFSPA यानी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट. सरकार इस कानून को देश के उन हिस्सों में लागू करती है, जो 'अशांत' होते हैं.

अशांत यानी वो इलाके जहां आतंकवाद या उग्रवाद जैसे हालात बने हों. अरुणांचल प्रदेश के कुछ इलाकों में अफ्स्पा को बढ़ाया भी गया है. कश्मीर में AFSPA में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

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बात जब AFSPA की आती है तो एक नाम लिए बिना इसका जिक्र अधूरा सा ही लगता है. यह नाम है इरोम शर्मिला (Irom Sharmila) का. इरोम शर्मीला मणिपुर (Manipur) से आती हैं. आइए आपको उनकी कहानी बताते हैं.

इरोम शर्मिला की कहानी

नवंबर 2000 में इरोम शर्मिला ने अपना अंतिम भोजन किया, अपनी मां के पैर छुए और घर छोड़ दिया, इम्फाल के बाहरी इलाके में मालोम बाजार के लिए एक बस ली और एक सत्याग्रह पर बैठ गई जो नागरिक अधिकारों के आंदोलन के इतिहास में दर्ज हो गया.

उन्होंने सरकार द्वारा विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (AFSPA) को निरस्त करने तक भूख हड़ताल पर रहने की कसम खाई. उस दिन, असम राइफल्स के सैनिकों ने मालोम में 10 आम नागरिकों को मार गिराया था. शर्मिला का अटूट विरोध उसी पल शुरू हो गया था.

साल 2000 से 2016 तक वह AFSPA के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठी रहीं. सरकारें आती जाती रहीं और उन्हें नजरअंदाज करती रहीं. बेहद भावुक होकर उन्होंने अपना 16 साल का सत्याग्रह तोड़ा और बदलाव के लिए राजनीती में आने का फैसला किया.

इरोम शर्मीला पूरी तरह से AFSPA हटवाने में कामयाब नहीं हो पाई लेकिन इरोम शर्मिला ने वास्तव में AFSPA और मानवाधिकारों पर आम लोगों के नैरेटिव को बदल दिया और अपने असंभव दृढ़ विश्वास के माध्यम से, वह AFSPA को इस हद तक अवैध बनाने में सफल रहीं कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को सार्वजनिक रूप से यह कहना पड़ा कि अधिनियम को और अधिक मानवीय होने की आवश्यकता है और शायद यहां तक ​​कि इसे बदला जा सकता है.

अपना सत्याग्रह तोड़ते वक्त इरोम शर्मिला ने कहा था कि वह अधिनियम के खिलाफ लड़ने के लिए राजनीति का इस्तेमाल करना चाहती हैं और शादी भी करना चाहती हैं. उनकी आकांक्षा और मणिपुर के 2017 के चुनाव को देखते हुए, उम्मीद है कि उनके बलिदान को राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक अन्य रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

साल 2017 में थौबल में 2017 के मुख्यमंत्री और कांग्रेस उम्मीदवार ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहीं इरोम शर्मिला चुनाव हार गईं. 16 साल तक मानव अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली इरोम शर्मिला को कुल 90 वोट मिले. इस हार से इरोम शर्मिला का हौसला नहीं टूटा और उन्होंने इसे कबूल किया.

नॉर्थ-ईस्ट के इलाकों से केंद्र सरकार के AFSPA हटाने के फैसले पर जब उनसे सवाल पूछा गया तब उन्होंने कहा, "मेरे जैसे कार्यकर्ता के लिए यह वास्तव में एक अच्छा पल है. मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि संसद में मुख्य भूमि के राजनेता कुछ अलग करने को तैयार हैं. एक पुराने और औपनिवेशिक कानून को निरस्त करने का निर्णय मुझे लोकतंत्र का वास्तविक संकेत लगता है.

उन्होंने आगे कहा कि, यह एक नई शुरुआत है और दशकों से चली आ रही लड़ाई का नतीजा है. पहला कदम उठाया गया है, और मैं चाहती हूं कि अफस्पा को पूरे उत्तर-पूर्व से स्थायी रूप से समाप्त कर दिया जाए. पीड़ितों, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है और जो इस कानून के कारण व्यक्तिगत रूप से पीड़ित हैं, उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए."

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