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'भारत में जम्मू-कश्मीर का एकीकरण निर्विवाद': Article 370 पर SC में सुनवाई शुरू

11 जुलाई को पीठ ने मामले से संबंधित पक्षकारों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने की समय सीमा 27 जुलाई तय की थी.

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<div class="paragraphs"><p>सुप्रीम कोर्ट  </p></div>
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सुप्रीम कोर्ट

(फोटो:PTI)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार, 2 अगस्त से जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 (Article 370) को रद्द करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है. ये सुनवाई जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) को राज्य का विशेष दर्जा वापस लेने के लगभग चार साल बाद शुरू हुई है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ रोजाना सुनवाई करेगी.

कोर्ट में क्या चल रहा?

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण "निर्विवाद है, निर्विवाद था और हमेशा निर्विवाद रहेगा."

जम्‍मू-कश्‍मीर को प्राप्‍त विशेष राज्‍य का दर्जा हटाने और इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख में बांटने के 2019 के राष्‍ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सिब्बल ने कहा, "शुरू करने से पहले मैं एक बयान देना चाहता हूं. हम स्पष्ट हैं कि भारत में जम्मू-कश्मीर का एकीकरण निर्विवाद है, निर्विवाद था और हमेशा निर्विवाद रहेगा."

उन्‍होंने सुनवाई के दौरान कहा, “जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का हिस्सा बना रहेगा. इस पर किसी ने विवाद नहीं किया, किसी ने कभी इस पर विवाद नहीं किया. जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ की एक इकाई है."

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कार्यवाही को "ऐतिहासिक" बताया और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने वाले जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की वैधता पर सवाल उठाया.

उन्‍होंने कहा, “यह कई मायनों में एक ऐतिहासिक क्षण है. यह अदालत इस बात का विश्लेषण करेगी कि 6 अगस्त, 2019 को इतिहास को क्यों खारिज कर दिया गया और क्या संसद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप थी? क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा को इस तरह से चुप कराया जा सकता है?''

उन्होंने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को केंद्र सरकार के "आदेश" के माध्यम से सरकार के प्रतिनिधि स्वरूप से वंचित नहीं किया जा सकता है जो "हमारे संविधान के साथ असंगत" है.

उन्होंने कहा, "यह ऐतिहासिक है क्योंकि इस अदालत को इस मामले की सुनवाई में पांच साल लग गए और 5 साल तक जम्मू-कश्मीर राज्य में कोई प्रतिनिधि सरकार नहीं रही."

सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर में आपातकाल लगाने पर सवाल उठाया और कहा कि संविधान पीठ को संविधान के अनुच्छेद 356 की व्याख्या करनी होगी, जो "लोकतंत्र को बहाल करना" चाहता है और उस अनुच्छेद के माध्यम से "लोकतंत्र (जम्मू-कश्मीर में) को कैसे नष्ट कर दिया गया है."

बेंच में कौन-कौन शामिल?

इससे पहले 11 जुलाई को पीठ ने मामले से संबंधित पक्षकारों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने की समय सीमा 27 जुलाई तय की थी. बता दें कि इस मामले में सुनवाई हर दिन की जाएगी. केवल सोमवार और शुक्रवार को सुनवाई नहीं होगी क्योंकि इस दिन अन्य मामलों पर कोर्ट सुनवाई करेगा.

आर्टिकल 370 को रद्द करने के खिलाफ याचिका दायर करने वालों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल दलीलें रखेंगे. सुनवाई करने वाली पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, आर्टिकल 370 को निरस्त करने की 5 अगस्त, 2019 की अधिसूचना के बाद केंद्र के हलफनामे का पांच-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किए जाने वाले संवैधानिक मुद्दे पर कोई असर नहीं पड़ेगा. 5 अगस्त, 2019 को केंद्र ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया था और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था. 

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