advertisement
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आजम खान की 87वें मामले में मिली जमानत के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि आजम खान ने सत्ता के नशे में मदहोश होकर अपने पद का दुरुपयोग किया था. कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि आजम अपने सपनों को पूरा करने के लिए जौहर यूनिवर्सिटी के नाम पर कारोबारी की तरह काम करते रहे. इस मामले में कई जगह ठगने जैसा काम किया गया है.
आजम खान को लेकर कोर्ट ने आगे कहा कि केवल वस्तु ही पवित्र नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसके साधन भी सही और पारदर्शी होने चाहिए. यूनिवर्सिटी का निर्माण एक अच्छा काम, लेकिन उसे तैयार करने में उपयोग किए गए साधन व कदम सही नहीं.
कोर्ट ने कहा कि शक्ति मनुष्य को भ्रष्ट करती है और अगर पूर्ण शक्ति मिल जाए तो उसे पूरी तरह से भ्रष्ट कर देती है. पूर्ण शक्ति मिलने पर आदमी भगवान को भी नहीं छोड़ता. आमतौर पर ऐसा होता है कि जो लोग सत्ता में होते हैं, उनके मन में अक्सर लोगों का हित नहीं होता. वह मुख्य रूप से स्वयं के लाभों पर केंद्रित होते हैं और खुद की मदद करने के लिए अपनी स्थिति और शक्ति का दुरुपयोग करते हैं.
कोर्ट ने आगे कहा कि आजम खान ने यूनिवर्सिटी की स्थापना और संचालन के लिए अवैध और गलत तरीकों का इस्तेमाल किया और किसी भी हद तक चले गए. उन्होंने यूनिवर्सिटी को अपनी जागीर समझा और इसी नाते स्थाई कुलाधिपति बन गए. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना व्यापार कतई नहीं हो सकता, क्योंकि इसका पहला लक्ष्य कर्तव्य ज्ञान सिखाना होता है. ऐसा लगता है कि आजम यूनिवर्सिटी की स्थापना के भेष में व्यापार कर रहे थे और गलत तरीके से एक खाली जमीन को हथियाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया.
अदालत ने अपने फैसले में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संदेशों का उदाहरण दिया. कोर्ट ने कहा कि उच्च लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधन की पवित्रता बेहद जरूरी होती है. धर्म की आड़ में अवैध तरीके से जमीन हड़पना कतई ठीक नहीं है. कोर्ट ने अपने फैसले में महान विचारक और दार्शनिक सैनिका के कथन का भी उदाहरण दिया. कोर्ट ने कहा कि धर्म को आम लोग सत्य- बुद्धिमान लोग असत्य और शासक उपयोगी मानते हैं. आजम ने सत्ता और पद के नशे में मदहोश होकर अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया.
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जमानत किसी भी बंदी का अधिकार है और जेल अपवाद होती है. आजम खान को उनकी 72 साल की उम्र और खराब स्वास्थ्य की वजह से अंतरिम जमानत दी जा रही है. अदालत ने तकरीबन ढाई साल से जेल में बंद रहने के मानवीय आधार पर जमानत देने की बात कही है. अदालत ने जमानत के लिए पासपोर्ट जमा करने को भी कहा. इसके साथ ही नियमित रूप से संबंधित कोर्ट या थाने में खुद पेश होकर या वकील के जरिए उपस्थिति दर्ज कराने को भी कहा है. हाई कोर्ट ने निचली अदालत को इस केस का ट्रायल एक साल में पूरा करने के निर्देश भी दिए हैं.
बता दें, आजम की जमानत अर्जी पर मंगलवार शाम को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था. ये फैसला जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की बेंच ने सुनाया था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)