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झारखंड में देवघर के त्रिकूट रोपवे हादसे को लेकर सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर जिस रोपवे के भरोसे हर साल हजारों लोग सैकड़ों फीट की ऊंचाई पर लटकते हुए यात्रा करने का जाखिम उठाते हैं, उसमें गड़बड़ी कैसे आई. आखिर ये किसकी गलती है?
प्रत्यक्षदर्शी फालगुनी कुशवाहा ने बताया कि आरंभ में रोप वे सरकार चलाती थी, लेकिन बाद में इसकी जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी 'दामोदर रोप वे एंड इंफ्रा लिमिटेड' को मिल गई. आरंभ में सरकारी कर्मचारी के अलावा लोकल स्टाफ काम करते थे. बाद में कंपनी ने सभी को हटा दिया. कंपनी ने नए कर्मचारियों को बाहर से लाकर बहाल किया. नए कर्मचारियों को इस काम का अनुभव नहीं था. इधर कोरोना काल में रोप-वे बंद रहा और कंपनी ने इन दो वर्षों से मेंटेनेंस नहीं कराया था, हादसे की मुख्य वजह यही बताई जा रही है. मार्च में ही रोप-वे का इस्तेमाल दोबारा शुरू हुआ था.
सूत्रों के अनुसार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 2009 में धरातल पर उतरी राज्य में पर्यटन विभाग की योजनाओं को पूरा करने के लिए 240 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. योजनाओं को झारखंड पर्यटन विकास निगम और भारतीय पर्यटन विकास निगम को मिलकर पूरा करना था. त्रिकूट पर्वत पर रोप वे लगाने की परियोजना भी इसी का एक हिस्सा थी. तत्कालीन प्रधान सचिव ने विभाग को निर्देश दिया था कि योजनाओं की राशि के इस्तेमाल में अनियमितता की शिकायतों की जांच कराई जानी चाहिए। विभाग ने इसका रिमाइंडर भी जारी किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
स्थानीय बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा, "देवघर में रोप-वे का संचालन कर रही एजेंसी का झारखंड सरकार से ऐग्रीमेंट 2019 में समाप्त हो गया था. तीन वर्षों से ये रोप-वे बिना ऐग्रीमेंट के कैसे चल रहा है. इसके कस्टोडियन देवघर उपायुक्त हैं तो उनको जवाब देना चाहिए कि उनके इलाके में तीन वर्षों से रोप-वे अवैध तरीके से कैसे चल रहा है.''
जब क्विंट ने राहुल सिन्हा से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है. हालांकि उन्होंने ये जरूर कहा कि हर पांच साल में एग्रीमेंट रिन्यू होता है लेकिन इस बार कोविड के कारण रिन्यू नहीं हो पाया था.
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