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यूपी के प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद (Atique Ahmed) और उसके भाई अशरफ (Ashraf) की 15 अप्रैल देर रात गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसके साथ ही, अतीक के आंतक का भी अंत हो गया, जिस माफिया का कभी प्रयागराज में सिक्का चलता था, उसकी कॉल्विन हॉस्पिटल में मौत हो गयी.
अतीक और अशरफ को जानने वाले अच्छी तरफ से वाकिफ हैं कि जितनी उन दोनों की उम्र नहीं थी , उससे अधिक उनके ऊपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. आतंक के इस रसूखदार का लंबा सियासी रिश्ता भी था.
अतीक अहमद के पिता हाजी फिरोज तांगा चलाते थे. अतीक खुद अनपढ़ था, लेकिन इतना महत्वाकांक्षी था कि पैसों की खातिर जुर्म की दुनिया में कदम रखने के बाद, वह कुछ ही दिनों के भीतर अपराध जगत का बेताज बादशाह बन गया. उसने अपने अलावा छोटे भाई अशरफ और बाद में, बेटों की भी क्राइम की दुनिया में एंट्री करायी. इसके बाद, वो भी अतीक की तरह अपराधी बन गए.
अतीक अहमद के पिता हाजी फिरोज भी आपराधिक प्रवृत्ति के थे. पिता के नक्शे कदम पर चलने की वजह से अतीक के खिलाफ साल 1983 में पहली बार FIR दर्ज हुई थी. उस वक्त उसकी उम्र महज 18 साल थी. कुछ ही सालों में अतीक के गुनाहों की तूती बोलने लगी, तो वह जिले की लॉ एंड ऑर्डर के लिए खतरा बनने लगा.
अतीक ने अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए राजनीति को कवच के तौर पर इस्तेमाल किया और अपराध व राजनीति के दम पर अरबों का साम्राज्य खड़ा कर लिया. साल 1989 में हुए यूपी के विधानसभा चुनावों में इलाहाबाद पश्चिम सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बन गया.
हालांकि, 1989 के चुनाव में तत्कालीन पार्षद और अतीक जैसा ही आपराधिक छवि का चांद बाबा भी मैदान में उतरा था. लेकिन अतीक को यह बात नागवार गुजरी थी. उसने वोटिंग के बाद नतीजे आने से पहले ही बाबा को प्रयागराज के रोशन बाग इलाके में कथित तौर पर अपने गुर्गों के साथ मिलकर गोली और बमों से मौत के घाट उतार दिया था.
अतीक ने इलाहाबाद पश्चिम सीट से 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 में लगातार जीत हासिल की. पहला दो चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता. तीसरे चुनाव में भी वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही मैदान में उतरा था, लेकिन SP-BSP गठबंधन ने उसे अपना समर्थन दिया और उसके खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया. 1996 में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया था.
वहीं, 2002 में अतीक अहमद ने डा. सोनेलाल पटेल की पार्टी 'अपना दल' के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी. इसके बाद, अपना दल ने उसे यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था. हालांकि, साल 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान अतीक ने एक बार फिर समाजवादी पार्टी में वापसी की और फूलपुर से चुनाव लड़कर पहली बार सांसद बना. इसके बाद से, अतीक अहमद ने जो भी चुनाव लड़ा, उसे जीत नहीं नसीब हुई.
25 जनवरी 2005 को इलाहाबाद पश्चिम सीट से BSP विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई थी. हत्या का आरोप अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ समेत कुल 9 लोगों पर लगा. इस घटना के बाद अतीक और उसके परिवार के बुरे दिन शुरू हो गये.
2007 में यूपी में सत्ता परिवर्तन होने के बाद मायावती मुख्यमंत्री बनी तो, उस दौरान अतीक और अशरफ को जेल जाना पड़ा. हालांकि, 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार आने के बाद, अतीक को थोड़ी राहत मिली, लेकिन वो उतनी काफी नहीं थी, जिससे वो चैन से रह पाये.
राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक के गले की ऐसी फांस बनी, जिससे वह अंतिम समय तक नहीं उबर सका.
अतीक अहमद हत्या-जानलेवा हमले, डकैती और अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम देता रहा. सियासत में स्थापित होने के बाद उसने संगठित अपराधों पर ज्यादा फोकस किया और आपराधिक घटनाओं के बजाय अपना साम्राज्य मजबूत करने में लग गया.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, करीब एक दर्जन राज्यों में अतीक का कारोबार फैला हुआ है. उसकी नामी और बेनामी सम्पत्तियां हैं. रंगदारी-वसूली और गुंडा टैक्स से भी उसने अरबों रुपये कमाए हैं.
साल 1995 में लखनऊ के चर्चित स्टेट गेस्ट हाउस कांड में भी अतीक अहमद का नाम सामने आया था. अतीक के खिलाफ 90 फीसदी से ज्यादा केस नेता बनने के बाद दर्ज हुए हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अतीक अहमद इंटर स्टेट गैंग का संचालक था. उसके गैंग का नंबर आईएस -227 है. उसके गैंग में 121 एक्टिव मेंबर हैं. गैंग के पास असलहों का जखीरा है.
अतीक के खिलाफ अब तक करीब 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. इनमें मायावती सरकार में एक ही दिन में दर्ज किये गए सौ से ज्यादा वह मुकदमे भी शामिल हैं, जिन्हे हाईकोर्ट के आदेश पर बाद में स्पंज कर दिया गया था. उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की संख्या अब बढ़कर 101 हो गई है. बड़ी संख्या में उसके मुकदमे वापस लिए जा चुके हैं, जबकि सबूतों और गवाहों के अभाव में तमाम मुकदमों में वह बरी हो चुका है. मौजूदा समय में भी उसके खिलाफ 58 केस एक्टिव हैं. इनमें से 50 के करीब मुक़दमे कोर्ट में पेंडिंग हैं, जबकि बाकी मामलों में अभी जांच पूरी नहीं हो सकी है.
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