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इंटेलिजेंस की नाकामी, कानून का 'उल्लंघन'- हल्द्वानी हिंसा का कारण क्या है?

Haldwani Violence: घटना की टाइमलाइन जल्दबाजी में लिए गए फैसले और पूर्ण प्रशासनिक विफलता को दर्शाती है.

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<div class="paragraphs"><p>8 फरवरी को, नगर निगम द्वारा बनभूलपुरा इलाके में एक मस्जिद और एक मदरसे को ध्वस्त करने के बाद उत्तराखंड के हलद्वानी में घातक हिंसा हुई</p></div>
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8 फरवरी को, नगर निगम द्वारा बनभूलपुरा इलाके में एक मस्जिद और एक मदरसे को ध्वस्त करने के बाद उत्तराखंड के हलद्वानी में घातक हिंसा हुई

(फोटो: PTI)

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Haldwani Violence: "मंदिर भी उसी का है, मस्जिद भी उसी का है. बस इतनी गुजारिश है, मसमर न करना (न गिराना)." शनिवार, 3 फरवरी को उत्तराखंड के हलद्वानी में जन प्रतिनिधियों और जिला प्रशासन के बीच एक बैठक के दौरान मुकीम कासमी के मुंह से यही शब्द निकले.

यह अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत बनभूलपुरा में एक मदरसा और एक मस्जिद को ध्वस्त करने की वजह से शहर में हुई जबरदस्त हिंसा से पांच दिन पहले की बात है.

बैठक में हल्द्वानी के नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय और सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह सहित कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए.

स्थानीय इमाम और उत्तराखंड में जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के सदस्य कासमी ने क्विंट हिंदी को बताया, "हमने उन्हें कहा कि यह एक संवेदनशील मामला है. कई तकनीकी बातें भी सूचीबद्ध की गईं, जहां यह दावा किया गया कि मस्जिद और मदरसा अतिक्रमित भूमि पर नहीं बनाए गए थे. लेकिन सबसे बढ़कर, हमने कहा कि जमीन पर कानूनी कब्जा या फ्री होल्ड के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हैं, प्रशासन को हमें कुछ समय देना चाहिए."

इस बैठक के पांच दिन बाद ही हलद्वानी जल रहा था.

बुधवार, 14 फरवरी तक, हिंसा में कम से कम छह लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी थी, 60 गंभीर रूप से घायल हैं, और 300 से अधिक परिवार कथित तौर पर सुरक्षित इलाकों में चले गए हैं.

पुलिस के अनुसार, कई एफआईआर दर्ज की गई हैं, 30 लोग हिरासत में हैं और अन्य आरोपियों के लिए तलाशी अभियान जारी है.

नाम न छापने की शर्त पर बनभूलपुरा के रहने वाले एक शख्स, जो अधिकारियों के साथ वार्ता बैठकों का हिस्सा थे, ने सवाल उठाया, "यह सब टाला जा सकता था. मामला 6 फरवरी को अदालत में ले जाया गया था, इसके दस्तावेज हैं कि जिस जमीन पर ध्वस्त मस्जिद खड़ी थी वह 2016 मालिन बस्ती अधिनियम के तहत एक अधिसूचित कॉलोनी का हिस्सा था, और प्रशासन ने 4 फरवरी को स्थानीय मीडिया के जरिए प्रचारित किया कि तोड़फोड़ की प्रक्रिया को 14 फरवरी को होने वाली अगली अदालती सुनवाई तक रोक दिया गया है. फिर उन्होंने अचानक इसे ऐसा क्यों किया?"

क्विंट हिंदी ने कई एफआईआर की कॉपी देखी है, साथ ही प्रत्यक्षदर्शियों से बात की और हिंसा की समय-सीमा का पता लगाने के लिए खुफिया रिपोर्ट, स्वामित्व दस्तावेज और समुदाय के नेताओं और अधिकारियों के बीच बातचीत की बैठकों के वीडियो देखे हैं.

यह रिपोर्ट इस बात को स्थापित करने का कोशिश करती है कि कैसे हलद्वानी पुलिस, जिला प्रशासन और नगर निगम न सिर्फ हिंसा की संभावना को रोकने में ही विफल रहे, बल्कि इसके परिणामों से निपटने के लिए भी तैयार नहीं थे. यह अदालती आदेशों और स्वामित्व के मुद्दों पर भी गौर करता है जिन्हें अधिकारियों ने अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान कथित तौर पर नजरअंदाज कर दिया था.

स्थानीय लोगों का आरोप, 'मालिन बस्ती अधिनियम (2016) का उल्लंघन कर तोड़फोड़ की गई'

हलद्वानी में विवाद के केंद्र में ध्वस्त हो चुकी मरियम मस्जिद और बनभूलपुरा में घनी आबादी वाले मुस्लिम इलाके मलिक का बगीचा में जमीन के एक भूखंड पर बना अब्दुल रज्जाक जकारिया मदरसा है.

हलद्वानी के नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने क्विंट हिंदी को बताया कि मस्जिद और मदरसा नजूल भूमि पर बने थे. उपाध्याय ने कहा, "हमने जमीन पर कब्जा करने वाले अब्दुल मलिक को 30 जनवरी को विध्वंस का नोटिस जारी किया था."

नजूल भूमि मुख्य रूप से सरकार के स्वामित्व में है और लोगों को कुछ वर्षों से लेकर कुछ दशकों तक की निश्चित अवधि के लिए पट्टे पर आवंटित की जाती है.

हालांकि, कई स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि जिस इलाके में मस्जिद और मदरसा स्थित थे, उसे उत्तराखंड विधानसभा द्वारा पारित मालिन बस्ती अधिनियम 2016 के तहत 'कैटेगरी ए' मालिन बस्ती (स्लम) के रूप में अधिसूचित किया गया था.

इस अधिनियम का मकसद पूरे उत्तराखंड में अनधिकृत कॉलोनियों के झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की स्थितियों को विनियमित करना और उनमें सुधार करना था.

इस अधिनियम के तहत 'कैटेगरी ए' में रहने वाले लोगों को तत्काल मालिकाना हक दिया जाना था. 'कैटेगरी बी' में शामिल लोगों को यह सुनिश्चित करने के बाद मालिकाना अधिकार दिया जा सकता है कि क्षेत्र भौगोलिक और पर्यावरणीय रूप से रहने लायाक हैं और स्वास्थ्य संबंधी कोई खतरा नहीं है, जबकि 'कैटेगरी सी' में वे मलिन बस्तियां हैं जहां लोगों को अलग-अलग कारणों से मालिकाना अधिकार नहीं दिया जा सकता है.

21 दिसंबर 2016 को उत्तराखंड शहरी विकास विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, जिस इलाके में उक्त प्लॉट आता है उसे 'कैटेगरी ए' मलिन बस्ती के रूप में वर्गीकृत किया गया था.

इस नोटिफिकेशन की कॉपी क्विंट हिंदी ने देखी है.

इस मामले की जानकारी रखने वाले एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा,

"अगर प्लॉट कैटेगरी ए मलिन बस्ती में है, तो उचित पुनर्वास के बिना मस्जिद और मदरसे को कैसे तोड़ा जा सकता है?"

(क्विंट हिंदी ने इस मामले में स्पष्टीकरण के लिए हलद्वानी नगर निगम से संपर्क किया है. जवाब मिलने पर स्टोरी अपडेट की जाएगी.)

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अदालती मामलों, आदेशों और सुनवाई की टाइमलाइन

नगर निगम की ओर से सबसे पहले 30 जनवरी को मस्जिद और मदरसे को तोड़ने का नोटिस जारी किया गया था.

अगले दिन, नागरिक समाज के सदस्यों, उलेमा और स्थानीय इमामों सहित नागरिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने नैनीताल के जिला मजिस्ट्रेट, वंदना सिंह को एक ज्ञापन सौंपा.

3 फरवरी को, समुदाय के नेताओं और जिला प्रशासन के बीच एक बैठक हुई (अगले भाग में इन दो बैठकों के बारे में अधिक जानकारी है).

4 फरवरी को, जब सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह ने एक मीडिया व्हाट्सएप ग्रुप में पत्रकारों को सूचित किया कि चूंकि जमीन को फ्री होल्ड करने का मामला पहले से ही उत्तराखंड हाई कोर्ट में लंबित है, इसलिए फैसला आने तक तोड़फोड़ की कार्रवाई रोक दी गई है, इसके बाद जिला प्रशासन ने मलिक का बगीचा में मस्जिद और मदरसे को सील कर दिया.

हिंदी में लिखे गए मैसेज में लिखा था, "सभी संबंधित को सूचित किया जाता है कि नगर निगम हल्द्वानी द्वारा दिनांक 4.2.2024 को बनभूलपुरा क्षेत्र में राजकीय भूमि पर निर्मित दो भवनों के ध्वस्तकरण की कार्रवाई प्रसतावित है. माननीय हाईकोर्ट, उत्तराखंड नैनीताल के आदेशों के क्रम में प्रत्यावेदन का निस्तारण किया जाना है. उक्त के निस्तारण की कार्रवाई पूर्ण होने तक ध्वस्तीकरण की कार्रवाई रोकने के निर्देश नगर आयुक्त, नगर निगम हलद्वानी को दिए गए हैं. सिटी मजिस्ट्रेट हल्द्वानी.''

इसके बाद एक नोटिस जारी किया गया और उसी दिन शाम को मदरसा और मस्जिद को सील कर दिया गया.

6 फरवरी को, अब्दुल मलिक का परिवार - जिसके पास उस जमीन का एक प्लॉट था जिस पर मस्जिद और मदरसा का निर्माण किया गया था- ने उत्तराखंड हाई कोर्ट का रुख किया और आरोप लगाया कि जमीन 1937 में पट्टे पर दी गई थी और 1994 में उन्हें बेच दी गई थी.

मलिक के वकील अहरार बेग ने क्विंट हिंदी को बताया कि पट्टे को नवीनीकृत करने की याचिका 2007 से जिला प्रशासन के समक्ष लंबित है.

अदालत ने इस मामले पर 8 फरवरी को सुनवाई की और 14 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

हालांकि, नगर निगम ने 8 फरवरी को ही तोड़फोड़ की कार्रवाई आगे बढ़ा दी. इस कार्रवाई के बाद इलाके में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई.

जबकि नगर आयुक्त उपाध्याय ने दावा किया कि कोई रोक का आदेश नहीं था, इसलिए अतिक्रमण हटाओ अभियान को अदालत से मंजूरी दी गई थी. बेग ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए आरोप लगाया कि उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था.

उन्होंने सवाल करते हुए पूछा, "मामला 14 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था. फिर वे 8 (फरवरी) को ही तोड़फोड़ कैसे शुरू कर सकते हैं?"

14 फरवरी को वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने अब्दुल मलिक की ओर से पेश होते हुए दलील दी कि विध्वंस के दौरान उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.

खुर्शीद ने दावा किया कि याचिकाकर्ता को नोटिस दिए जाने के चार दिन बाद विध्वंस किया गया, जबकि कानून की प्रक्रिया के अनुसार, उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए था.

जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की सिंगल जज की बेंच ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि उस जगह पर निर्माण कैसे किया जा सकता है जब संपत्ति सरकार द्वारा कृषि भूमि के रूप में पट्टे पर दी गई थी.

इस सवाल पर गौर किए बिना कि पट्टा वैध था या नहीं, अदालत ने सरकार से जवाबी हलफनामा मांगा.

अगली सुनवाई मई के दूसरे हफ्ते में होगी.

शांति वार्ता के दौरान चिंता जाहिर की गई थी

हिंसा की संभावना के बारे में पहली बार 31 जनवरी और 3 फरवरी को समुदाय के नेताओं और हलद्वानी प्रशासन के बीच हुई बैठकों के दौरान कई बार चिंताएं व्यक्त की गईं.

31 जनवरी को, जिला मजिस्ट्रेट से मिले नागरिकों के प्रतिनिधिमंडल ने डीएम को एक ज्ञापन सौंपते हुए जिक्र किया कि मामला कितना 'संवेदनशील' और 'गंभीर' था.

कई मुद्दों के अलावा, ज्ञापन में नगर आयुक्त पर "अपने पद और शक्ति का दुरुपयोग" करने का आरोप लगाया गया.

ज्ञापन में लिखा था:

"हम आपका ध्यान नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय द्वारा अपने पद और शक्ति के बार-बार दुरुपयोग की ओर आकर्षित करना चाहते हैं. उन्होंने बार-बार अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं और बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार किया है. हम यह भी बताना चाहते हैं कि यह मामला न केवल जमीन के फ्री होल्ड राइट्स से जुड़ा है, जो हाई कोर्ट में चल रहे विचाराधीन भूमि के अधिकार को बरकरार रखने का है, बल्कि यह 2016 के मालिन बस्ती अधिनियम के अनुसार 'कैटेगरी ए' मालिन बस्ती भी है. उत्तराखंड सरकार द्वारा पारित 2018 अध्यादेश ने इन प्लॉट के संबंध में फैसला 2024 तक स्थगित कर दिय था. स्थिति की संवेदनशीलता और गंभीरता को देखते हुए, हम आपसे उचित कार्रवाई करने और विध्वंस की कार्यवाही रोकने का अनुरोध करते हैं."

फिर, 3 फरवरी को नागरिकों के प्रतिनिधिमंडल और नगर निगम आयुक्त और सिटी मजिस्ट्रेट सहित जिला अधिकारियों के बीच एक बैठक में इसी तरह की चिंताएं उठाई गईं.

नगर आयुक्त ने बैठक में कहा, "हमारे रिकॉर्ड में, वह पूरा क्षेत्र नजूल भूमि (सरकार के स्वामित्व वाली) है. मुझे परवाह नहीं है कि संबंधित भूमि के भूखंड पर मस्जिद या मंदिर बना हुआ है. अगर यह सरकार का है और लाभ के लिए प्राइवेट प्लेयर के जरिए उस पर अतिक्रमण किया जा रहा है, तो ऐसी गतिविधियों को रोकना मेरा कर्तव्य है."

इंटेलिजेंस चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया गया

क्विंट हिंदी को पता चला है कि 31 जनवरी से 3 फरवरी के बीच, उत्तराखंड की स्थानीय खुफिया इकाई (LIU) और राज्य खुफिया इकाई (SIU) ने कथित तौर पर राज्य पुलिस अधिकारियों के साथ कम से कम पांच प्रमुख सुरक्षा इनपुट साझा किए थे. इन इनपुटों में विध्वंस के मद्देनजर संभावित हिंसा और कानून व्यवस्था की स्थिति की चेतावनी दी गई थी.

कथित तौर पर नोट (क्विंट हिंदी द्वारा देखा गया) अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी)-कानून और व्यवस्था, पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) (कुमाऊं रेंज), और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के सहायक के साथ-साथ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी)-नैनीताल, और पुलिस अधीक्षक (एसपी)-हल्द्वानी के साथ शेयर किया गया था.

पहले इनपुट में कहा गया है कि मुस्लिम समूहों द्वारा धार्मिक स्थलों को निशाना बनाने का दावा करने के मद्देनजर, हिंदू समूहों द्वारा प्रतिशोध की संभावना है.

दूसरे इनपुट में सुझाव दिया गया कि चूंकि बनभूलपुरा एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और ध्वस्त की जाने वाली संरचनाओं की प्रकृति धार्मिक है, इसलिए प्रशासन को अभियान चलाने से पहले समुदाय के नेताओं को विश्वास में लेना चाहिए.

तीसरे इनपुट में सुझाव दिया गया कि बड़ी भीड़ से बचने के लिए विध्वंस अभियान (डिमोलिशन ड्राइव) दिन के शुरुआती घंटों में चलाया जाना चाहिए, स्थिति का आकलन करने के लिए अभियान से पहले ड्रोन वीडियोग्राफी की जानी चाहिए, इंटरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, और धार्मिक पुस्तकों और प्रतीकों को मस्जिद और मदरसे के अंदर से सुरक्षित रूप से हटाया जाना चाहिए.

चौथे इनपुट में मुस्लिम समूहों द्वारा संभावित विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी गई, जबकि पांचवें इनपुट में कहा गया कि पुलिस बल को संभावित विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे महिलाओं और बच्चों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए.

हालांकि, 8 फरवरी को, जब नगर निगम के अधिकारी जिला पुलिस बल और अन्य सुरक्षाकर्मियों के साथ मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने पहुंचे, तो उन्हें स्थानीय लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ा. जिला मजिस्ट्रेट वंदना सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि "पूर्व नियोजित" हमले में, स्थानीय लोगों ने पुलिस अधिकारियों पर पेट्रोल बम फेंके और पथराव किया.

क्विंट हिंदी से बात करते हुए एसएसपी नैनीताल प्रह्लाद मीना ने खुफिया नोट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

हालांकि, इससे पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था कि पुलिस पर्याप्त रूप से तैयार थी, लेकिन हिंसा के कारण मलिक का बगीचा इलाके से बनभूलपुरा पुलिस स्टेशन की तरफ हिंसा फैलने की वजह से पुलिसकर्मी तितर-बितर हो गए थे.

यह भी ध्यान रखना उचित है कि खुफिया टीमों द्वारा सुबह जल्दी विध्वंस के सुझाव के उलट, अधिकारियों ने दोपहर 3 बजे विध्वंस अभियान शुरू किया.

इस स्टोरी में किए गए कई दावों के संबंध में क्विंट हिंदी ने सभी संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया है. जब भी हमें उनका जवाब मिलेगा, रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.

इस बीच, हिंसा के एक हफ्ते बाद भी तलाशी अभियान, शांति वार्ता और अदालती सुनवाई जारी है, बनभूलपुरा के निवासी सामान्य जीवन में लौटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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