Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Crime Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गुरुग्राम में नाबालिग का जिस्म कुचला था,रूह नहीं, झारखंड की धूप-पलाश देख खिल उठी

गुरुग्राम में नाबालिग का जिस्म कुचला था,रूह नहीं, झारखंड की धूप-पलाश देख खिल उठी

Gurugram: गुरुग्राम में जुल्म का शिकार हुई नाबालिग जिस ट्रेन से झारखंड लौटी, द क्विंट ने भी उसमें सफर किया.

आशना भूटानी
क्राइम
Published:
<div class="paragraphs"><p>गुरुग्राम से रेस्क्यू कराये जाने के हफ्तों बाद नाबालिग लड़कियां अपने घर झारखंड लौट आई हैं.</p></div>
i

गुरुग्राम से रेस्क्यू कराये जाने के हफ्तों बाद नाबालिग लड़कियां अपने घर झारखंड लौट आई हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

(यह झारखंड से बड़े शहरों में नाबालिगों की तस्करी पर द क्विंट की श्रृंखला की कड़ी है. कृपया क्विंट मेंबर बनकर हमारा समर्थन करें और महत्वपूर्ण स्टोरी को सामने लाने में हमारी मदद करें.)

रविवार, 19 फरवरी को झारखंड के सिमडेगा में बस ने जैसे ही घना जंगल पार किया 17 साल की लड़की के चेहरे पर चमक आ जाती है. वह कहती है, “ये देखो, ये पलाश का पेड़ है”, सुर्ख फूलों ने दुपहरी का आसमान सजा रखा है और उसे यकीन दिला रहे हैं कि अब वह घर– अपने घर– के करीब पहुंच गई है.

इस किशोरी के लिए यह सफर बहुत लंबा रहा. 7 फरवरी को हरियाणा के गुरुग्राम में उसके मालिक के घर से जब रेस्क्यू किया गया तो उसके बदन पर जलने, कटने और खरोंच के निशान थे. पुलिस ने मालिक पति-पत्नी को गिरफ्तार कर लिया और नाबालिग को गुरुग्राम के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 12 दिन तक उसका इलाज चला.

शनिवार 18 फरवरी को वह अपनी मां, झारखंड पुलिस की क्राइम ब्रांच की मानव तस्करी रोधी यूनिट (AHTU) के तीन पुलिस अधिकारियों और NGO शक्ति वाहिनी की एक सदस्य के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से रांची जाने वाली ट्रेन में सवार हुई.

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से रांची जाने वाली ट्रेन की प्रतीकात्मक तस्वीर

(फोटो: द क्विंट)

लेकिन ट्रेन में वह रेस्क्यू की गई अकेली नहीं है. चार और लड़कियां– किशोरियां– जो दिल्ली-एनसीआर के घरों में डोमेस्टिक हेल्प के तौर पर काम करती थीं, उसके साथ सफर कर रही हैं. उसी की तरह उन्हें भी पुलिस और NGO ने रेस्क्यू किया है और अब उन्हें झारखंड के सिमडेगा जिले में उनके गांवों को वापस भेजा जा रहा है.

दिल्ली-एनसीआर में कुछ महीनों का तकलीफों से भरा वक्त गुजारने के बाद अपने घर झारखंड लौटती नाबालिगों के साथ द क्विंट भी गया. ये उनकी दास्तान है.

मैं भूल चुकी थी कि मेरा गांव कैसा दिखता है:’ रेस्क्यू कराई गई नाबालिग

शनिवार दोपहर दिल्ली रेलवे स्टेशन पर नाबालिग अपनी मां से लिपटी हुई है. ट्रेन शाम 4.10 बजे स्टेशन से रवाना हुई.

द क्विंट की 10 फरवरी को गुरुग्राम के अस्पताल में नाबालिग से मुलाकात के बाद, पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कान दिख रही है.

वह उन ड्राइंग बुक्स को जो उसे एक NGO ने दी हैं, पूरे सफर के दौरान पकड़े रही और खुद से अलग नहीं किया.

रविवार सुबह करीब 9 बजे ट्रेन रांची पहुंची और लड़कियां सिमडेगा जाने वाली बस में सवार हो गईं. बस की खिड़की से बाहर देखते हुए नाबालिग लड़की कहती है, “मैं भूल चुकी थी कि मेरा गांव कैसा दिखता है. यहां घर छोटे और सादे हैं... शहर में सिर्फ बड़े घर और ऊंची बिल्डिंग हैं.”

कुछ जख्म ठीक हो गए हैं, मगर उसके माथे और दाहिने कान पर अब भी बैंडेज लगी हुई है.

रेस्क्यू की गई नाबालिग बस से रांची से सिमडेगा जाती हुई.

(इलस्ट्रेशन: Deeksha Malhotra/The Quint)

शहर ने उसे बेइंतेहा दर्द दिया है. पांच महीने तक उसने गुरुग्राम में दंपत्ति के घर में काम किया, और आरोप है कि उसे “चम्मच, फोर्क, गर्म बर्तनों से मारा गया” और “फोन पर किसी से बात करने की इजाजत नहीं थी.”

रविवार की दोपहर जब बस उसके गांव के करीब पहुंची, नाबालिग बताती है, “मैंने अपने कपड़े उस घर (गुरुग्राम) में ही छोड़ दिए और उन्हें लेने वापस नहीं गई.”

अपने गांव लौटते हुए खटारा बस की सवारी में उसकी बच्चों जैसी मासूमियत फिर से लौट आई. उसने अपना सिर खिड़की से बाहर निकाल लिया है, और हवा उसके बालों को उड़ा रही है. वह कहती है, “मुझे हवा, धूप, जंगल, पलाश के पेड़… बहुत याद आए.”

रेस्क्यू कराई गई नाबालिग के गांव की फोटो

(फोटो: क्विंट हिंदी)

कुछ ही देर में बस सिमडेगा के सर्किट हाउस पर पहुंच जाती है, जहां लड़कियां दोपहर का खाना खाती हैं और जिला बाल संरक्षण अधिकारी (DCPO), वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, और शक्ति वाहिनी के सदस्यों से उनकी मुलाकात होती है.

नाबालिग फिलहाल एक अस्पताल में रहेगी जहां उसके जख्मों का इलाज चलेगा. दूसरी लड़कियों को एक प्रोटेक्शन सेंटर भेज दिया जाएगा जहां उनके परिवारों को सौंपने से पहले कुछ दिनों के लिए रखा जाएगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

‘दिल्ली में मैंने जो काम किया, उसके लिए कभी एक रुपया नहीं मिला': रेस्क्यू की गई एक दूसरी नाबालिग ने बताया

शनिवार दोपहर जब पांच लड़कियां दिल्ली में ट्रेन में सवार हुईं तो वे एक-दूसरे के लिए अजनबी थीं, लेकिन जल्द ही पता चल गया कि उनके बीच दिल्ली-झारखंड ट्रेन के सफर के अलावा और भी बहुत कुछ साझा है.

इन सभी लड़कियों को पिछले कुछ सालों में घरों में काम कराने के लिए झारखंड से दिल्ली लाया गया था. उस सफर ने रातों-रात उनकी जिंदगी को बदल दिया.

ट्रेन में खाने के दौरान जल्द पांचों लड़कियां दोस्त बन गईं और घर वापसी के बारे में अपना उत्साह साझा कर रही थी. बस जब उनके जिले में पहुंची तो बाहर देखते हुए एक 16 वर्षीय लड़की ने कहा,

“मैं सालों बाद वापस आई हूं.” जैसे-जैसे हम घर के करीब पहुंच रहे हैं यादें साफ होती जा रही हैं... “दिल्ली में जहां मैं काम करती थी, वहां बहुत ज्यादा काम कराया जाता था, मगर कोई लगाव नहीं होता था.”

उसने तीन महीने तक दिल्ली के जनकपुरी में एक घर में डोमेस्टिक हेल्प के तौर पर काम किया. “मेरे साथ बुरा बर्ताव नहीं होता था, लेकिन परायापन महसूस होता था.” उसने बताया वह पिछले साल नवंबर में भाग गई और पास के पुलिस स्टेशन गई. “वहां से मुझे शेल्टर होम ले जाया गया.”

रांची से सिमडेगा जा रही बस में रेस्क्यू कराई गई एक और लड़की.

(इलस्ट्रेशन: Deeksha Malhotra/The Quint)

जब वह छठी कक्षा में थी तो उसने स्कूल छोड़ दिया था और अब फिर से स्कूल जाना चाहती है– “लेकिन गांव से दूर.”

इस बीच, 2017 में तस्करी की गई एक और 16 वर्षीय लड़की बताती है कि उसे याद नहीं कि उसे कौन दिल्ली लाया था. वह बताती है, “मैंने नोएडा, पीतमपुरा और अशोक विहार में घरों में काम किया, लेकिन मुझे कभी एक रुपया नहीं मिला. मेरे मालिक हमेशा कहते थे कि वे एजेंटों को पेमेंट कर रहे हैं, लेकिन एजेंटों से मुझे कभी एक रुपया नहीं मिला.”

वह 2021 में भाग गई और एक ऑटो लिया– किसी भी जगह जाने के लिए. “मैंने ऑटो वाले से कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं क्योंकि मैं घर से भागी हूं. वह मुझे एक NGO में ले गया. वहां भैया और दीदी ने मेरी पूरी बात सुनी और मुझे NGO में ही रहने के लिए कहा. लड़की पुरानी घटनाओं को याद करते हुए बताती है, “मेरा मामला अब अदालत में है.”

‘फिर से घर का खाना खाकर अच्छा लगा’, रेस्क्यू की गई नाबालिग बोली

पांचों लड़कियां आदिवासी समुदाय से आती हैं. उनमें से एक रोटिया जनजाति की है, दो संथाल हैं, और गुरुग्राम से बचाई गई नाबालिग गोंड जनजाति से है.

पूरे सफर के दौरान गुरुग्राम वाली नाबालिग उम्मीद के साथ खिड़की से बाहर देखती रही. उसके कान पर लिपटी पट्टी ढीली हो गई थी और बस के सफर के दौरान पूरे रास्ते वह उसे पकड़े रही

उसकी मां उसे लगातार निहार रही है और थोड़ी-थोड़ी देर में मुस्कुरा उठती है, उनके बीच केवल चंद लफ्जों का आदान-प्रदान हुआ. मां कहती है, “यह अब मेरे साथ रहेगी. हम इसे फिर काम पर नहीं भेजेंगे.”

रेस्क्यू की गई नाबालिग का घर

(फोटो: क्विंट हिंदी)

सर्किट हाउस में अफसरों ने लड़कियों से पूछा कि क्या उनका फिर वापस जाने का इरादा है, इस पर सभी ने ना कहा. उन्होंने गुरुग्राम वाली नाबालिग की मां को सलाह दी कि अगर कोई उन्हें मामले को रफा-दफा करने के लिए पैसे की पेशकश करता है तो “बहकावे में मत आना.”

अब प्रशासन बच्चियों को स्कूल में दाखिला दिलाने की कोशिश कर रहा है. सर्किट हाउस में लड़कियों ने दाल, चावल और सब्जी का भरपेट खाना खाया. रोटी और दाल के छोटे कौर खाती हुई गुरुग्राम की नाबालिग कहती है, “फिर से घर का खाना बहुत अच्छा लग रहा है.”

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT