advertisement
उज्जैन रेप मामले (Ujjain Rape Case) में सर्वाइवर की मदद नहीं करने और पुलिस को घटना की सूचना नहीं देने वालों को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है. NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने कहा है कि जिन लोगों ने सर्वाइवर की मदद नहीं की है, उनके खिलाफ POCSO एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है. बता दें कि 15 वर्षीय अर्धनग्न नाबालिग लहूलुहान हालत में घर-घर जाकर मदद की भीख मांग रही थी, लेकिन कई लोगों ने उसकी मदद नहीं की थी.
उज्जैन के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, जयंत सिंह राठौड़ ने कहा कि कम से कम एक ऐसे व्यक्ति की पहचान की गई है - एक ऑटो रिक्शा चालक जिसने "जानबूझकर पुलिस को सूचित नहीं किया".
ऑटो रिक्शा चालक की पहचान राकेश मालवीय के रूप में हुई है. पुलिस ने कहा कि वह सर्वाइवर को अपनी गाड़ी में ले गया था- उन्हें सीट पर खून के धब्बे मिले - लेकिन पुलिस को उसकी हालत के बारे में नहीं बताया. ऑटो चालक को साक्ष्य छुपाने के आरोप में धारा 27 का आरोपी बनाया गया है.
अब सवाल है कि क्या इसी तरह जिन अन्य लोगों ने सर्वाइवर की मदद करने से इनकार कर दिया, उन्हें भी पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा? क्या पुलिस उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगी जिन्होंने सर्वाइवर को लहूलुहान और अर्धनग्न हालत में देखा और नजरअंदाज कर दिया?
क्विंट हिंदी से बातचीत में दिल्ली हाई कोर्ट के वकील हर्षित आनंद ने कहा, "पुलिस मामले की जानकारी नहीं देने के आरोप में एक्शन ले सकती है." इसके साथ ही उन्होंने कहा कि, "POCSO एक्ट में एक विशेष सेक्शन है जो इस तरह की घटना की जानकारी मिलने पर स्थानीय पुलिस को सूचित करना अनिवार्य करती है."
इसके साथ ही वो कहते हैं कि इसके दो पहलू हैं:
जानकारी (Knowledge)- इसका मतलब कि आपके पास स्पष्ट जानकारी हो कि कोई घटना हुई है.
संशय (Apprehension)- इसका मतलब है कि आपके पास विश्वास करने का कारण होना चाहिए. विश्वास करने का कारण मात्र संदेह या संशय नहीं है. आपके पास वास्तविक कारण, कुछ बुनियादी जानकारी होनी चाहिए, जो आपके संशय को पुख्ता कर सके. इसके साथ ही उसे प्रमाणित भी किया जा सके.
इसके साथ ही वो कहते हैं कि, "इस मामले में जो अलग है वह यह है कि अगर कोई व्यक्ति सड़क पर चल रहा है और वह सर्वाइवर को सड़क पार करते हुए देखता है या फिर सर्वाइवर चंद सेकंड के लिए उसके पास आती है. निश्चित रूप से उस व्यक्ति को घटना की जानकारी (Knowledge) नहीं होगी. हालांकि, उसे सर्वाइवर के साथ हुए अपराध को लेकर संशय (Apprehension) होगा है या नहीं, इस पर थोड़ा विवाद है."
POCSO अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ था, जो साल 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था.
इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन उत्पीड़न के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया या पर्याप्त रूप से दंड का प्रावधान नहीं किया गया है.
यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है. अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार सजा का प्रावधान करता है.
बच्चों के साथ होने वाले ऐसे अपराधों को रोकने के उद्देश्य से बच्चों के यौन शोषण के मामलों में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने की दिशा में साल 2019 में अधिनियम की समीक्षा तथा इसमें संशोधन किया गया था.
भारत सरकार ने POCSO नियम, 2020 को भी अधिसूचित कर दिया है.
दरअसल, 27 सितंबर को सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें कथित रूप से खून से लथपथ नाबालिग लोगों से मदद मांगती हुई दिख रही थी. लेकिन लोगों ने उसकी मदद नहीं की और उसे भगा दिया. घटना सोमवार, 25 सितंबर की सुबह 9:30 बजे की है. सर्रवाइवर लगभग 8 किलोमीटर से ज्यादा चलकर उज्जैन के मुरलीपुरा इलाके में स्थित दंडी आश्रम के सामने पहुंची, जहां पर आश्रम के 21 वर्षीय राहुल शर्मा ने उसकी मदद की थी और पुलिस को इसकी सूचना दी थी.
पुलिस ने सर्वाइवर से पूछताछ के बाद आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और IPC की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत मामला दर्ज किया है.
वहीं आरोपी के पिता ने कहा कि जिसने गलत काम किया है. उसे सजा मिलनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि "अगर उसने गलत काम किया है तो उसे फांसी मिले. अगर उस बच्ची के जगह पर मेरी बच्ची होती तो मैं यही कहता कि दोषी को जल्द से जल्द फांसी दी जाए. पुलिस ऐसे लोगों को पकड़ती क्यों हैं, उसको वहीं शूट कर देना चाहिए. उसे सजा मिलनी चाहिए."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)