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बरेली स्थित इंडियन वेटेरिनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट की ताजा रिसर्च में गोमूत्र को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. ताजा गोमूत्र में संभावित रूप से हानिकारक बैक्टीरिया हो सकते हैं जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए खराब हो सकता है. इसके साथ ही रिसर्च में बताया गया है कि गाय से ज्यादा भैंस के मूत्र में जीवाणुनाशक शक्ति है.
क्विंट हिंदी से बातचीत में IVRI बरेली के जानपदिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष और प्रधान वैज्ञानिक भोजराज सिंह ने बताया कि गाय, भैंस और मनुष्यों के मूत्र में जीवाणुनाशक गुण पर रिसर्च किया गया है. उन्होंने बताया कि,
इसके साथ ही गाय, भैंस और मनुष्य के मूत्र में इस बात की भी जांच की गई कि क्या कोई ऐसा जीवाणु तो नहीं है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. गायों के मूत्र में संभावित तौर पर 14 प्रकार के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक जीवाणु मिले.
क्विंट हिंदी से बातचीत में भोजराज सिंह ने साफ किया कि ये एक स्पेसिफिक रिसर्च था. ये इस बात को सिद्ध करने के लिए नहीं है कि कौन सा मूत्र अच्छा है और कौन सा बुरा है. सिर्फ ये सिद्ध करने के लिए था कि किस मूत्र में ज्यादा जीवाणु नाशक गुण हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि,
गाय, भैंस और इंसानों के 73 यूरीन सैंपल की जांच की गई. जिसमें से मवेशियों के 54 और इंसानों के 19 सैंपल थे.
73 यूरीन सैंपल में से 57 सैंपल में एक या अधिक प्रकार के बैक्टीरिया मिले.
19 मानव मूत्र के नमूनों में से 10 (52.63%) नमूनों में बैक्टीरिया थे.
गाय और भैंसों के 54 मूत्र के नमूनों में से 47 (87.04%) में बैक्टीरिया थे.
भोजराज सिंह ने बताया कि रिसर्च में गायों का सैंपल साइज 41 था. सिर्फ 5 गायों का मूत्र ऐसा था जिसमें कोई हानिकारक जीवाणु नहीं मिले. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि,
उन्होंने बताया कि 14 प्रकार के हानिकारक जीवाणु एक ही गाय में नहीं मिले हैं. ये 36 अलग-अलग गायों में पाए गए हैं.
भोजराज सिंह ने साफ किया कि उन्होंने गोमूत्र पीने के फायदे पर रिसर्च नहीं किया है. उन्होंने कहा कि हमने गोमूत्र पीने पर कोई रिसर्च नहीं किया है. वो आगे कहते हैं कि लोगों का मानना है कि चोट लगने पर या फिर किसी घाव पर मूत्र डालने वो ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं है. अगर उस पेशाब में इन्फेक्शन करने वाला जिवाणु होगा तो आपका घाव बढ़ सकता है.
भोजराज सिंह ने सिर्फ स्वस्थ्य गायों के ही मूत्र के इस्तेमाल पर जोर दिया है. बता दें कि IVRI बरेली के जानपदिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष और प्रधान वैज्ञानिक भोजराज सिंह ने तीन पीएचडी स्कॉलर्स के साथ मिलकर ये रिसर्च किया है.
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