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DU के IP कॉलेज के 5 एड-हॉक प्रोफेसरों की रातोंरात गई नौकरी, पूछा- 'क्या ये सही है?'

DU के एक प्रोफेसर ने कहा कि, "यह अपमानजनक है कि सालों तक पढ़ाने के बाद आपको अज्ञात कारणों से दरकिनार कर दिया जाता है."

वर्षा श्रीराम
शिक्षा
Published:
<div class="paragraphs"><p>DU के IP कॉलेज के 5 एड-हॉक प्रोफेसरों की रातोंरात गई नौकरी, पूछा- 'क्या ये सही है?'</p></div>
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DU के IP कॉलेज के 5 एड-हॉक प्रोफेसरों की रातोंरात गई नौकरी, पूछा- 'क्या ये सही है?'

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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29 सितंबर को, इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज (IPCW) के समाजशास्त्र विभाग के पांच एड-हॉक (अस्थायी) शिक्षकों तब बड़ा झटका लगा, जब विभाग के लिए आठ नए भर्ती किए गए सहायक प्रोफेसरों की सूची में उनके नाम नहीं थे.

नाम न छापने की शर्त पर पिछले तीन साल से काम कर रहे एक एड-हॉक प्रोफेसर ने द क्विंट को बताया कि, "एक या दो नहीं, बल्कि पांचों एड-हॉक शिक्षकों यानी पूरे विभाग के शिक्षकों को रातोंरात नौकरी से हटा दिया गया है. क्या ये सही है?"

यह निर्णय Indraprastha College for Women (IPCW) द्वारा मई 2023 में विभिन्न विभागों में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती के लिए रिक्तियों के विज्ञापन के बाद आया है. पिछले हफ्ते 600 शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों का इंटरव्यू लिया गया था, जिनमें से आठ को चुना गया था.

द क्विंट से बात करते हुए, एड-हॉक शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि नियुक्तियां योग्यता और अनुभव से नहीं बल्कि "सिफारिशों" और "नेटवर्किंग" के जरिए हुई हैं.

हालांकि, IPCW कॉलेज की प्रिंसिपल पूनम कुम्री ने आरोपों से इनकार किया है और द क्विंट को बताया कि भर्ती "विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा एक व्यापक, पारदर्शी प्रक्रिया" के आधार पर की गई थी.

"पूरे विभाग के शिक्षकों को हटाना आम बात नहीं है"

IPCW का समाजशास्त्र विभाग 2017 में शुरू हुआ था और तब से पांच एड-हॉक शिक्षकों द्वारा ही चलाया जा रहा है.

दिल्ली विश्वविद्यालय की एग्जिक्यूटिक काउंसिल रिजॉल्यूशन नंबर 120(8), दिनांक 27 दिसंबर 2007 के अनुसार:

"अगर अचानक बीमारी या मौत, चिकित्सा आधार (मेटर्निटी लीव), अचानक छुट्टी, या किसी अन्य स्थिति से पढ़ाई बाधित होती है तब एक एड-हॉक शिक्षक को नियुक्त किया जा सकता है.”

इस रिजॉल्यूशन के अनुसार, नियुक्ति न्यूनतम एक महीने से अधिकतम चार महीने की अवधि की होनी चाहिए.

कई रिपोर्टों में कहा गया है कि मई 2023 तक, डीयू कॉलेजों में लगभग 4,500 एड-हॉक शिक्षक कार्यरत थे. लेकिन कुछ शिक्षकों ने आरोप लगाया कि स्थायी भर्ती प्रक्रियाओं में देरी ने इस चार महीने के कार्यकाल की अवधि को बढ़ा दिया है - कभी-कभी तो ये अवधि एक दशक से भी अधिक समय तक खिंच जाती है.

“चूंकि यह एक नया विभाग है, यह जानते हुए भी कि हम एक एड-हॉक प्रोफेसर हैं, हमने इस नौकरी के लिए अपना खून, पसीना बहाया." एक एड-हॉक प्रोफेसर ने कहा कि, पिछले छह सालों में हमारे विभाग से कई छात्रों ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं जो सार्वजनिक डोमेन में हैं.

एक अन्य समाजशास्त्र के प्रोफेसर ने द क्विंट को बताया कि हालांकि, "कुछ शिक्षकों के हटने" की आशंका थी, लेकिन उन्होंने ये नहीं सोचा था कि पूरे विभाग के शिक्षकों को ही बदल दिया जाएगा.

उन्होंने कहा कि:

"डीयू कॉलेजों में शिक्षकों को हटाना कोई आम बात नहीं है. हम सभी ये जानते हैं. हमने सोचा था कि हममें से केवल एक या दो को ही हटाया जाएगा. लेकिन एक भी प्रोफेसर को नहीं रखा गया, पूरे विभाग के शिक्षकों को ही हटाना ये पहले कभी नहीं हुआ और ये निराशाजनक है."

एक अन्य एड-हॉक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, शिक्षकों के साथ जो हुआ वो अनुचित है. उन्होंने कहा, "यह अपमानजनक है कि सालों के शिक्षण अनुभव के बाद भी, आपको अज्ञात कारणों से अचानक दरकिनार कर दिया जाए."

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"योग्यता के आधार पर नहीं होती भर्ती"

हटाए गए शिक्षकों ने द क्विंट को बताया कि भर्ती योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि "सिफारिशों" और "नेटवर्किंग" के आधार पर की गई थी.

बातचीत के दौरान IPCW में समाजशास्त्र के एक प्रोफेसर ने कहा कि, "हम सभी पांचों के पास समाजशास्त्र में पीएचडी है और हम जिस पद पर हैं, उसके लिए बेहद योग्य हैं. हालांकि, सभी आठ नवनियुक्त शिक्षकों के पास निम्न स्तर की योग्यताएं हैं. एक प्रोफेसर के पास समाजशास्त्र में डिग्री भी नहीं है. दूसरे ने हाल ही में पिछले साल समाजशास्त्र में अपना एमए पूरा किया है. उन्हें हमारे ऊपर कैसे चुना गया? क्या यह अनुचित नहीं है?"

एक अन्य शिक्षक ने द क्विंट को बताया कि, विभाग के पांचों एड-हॉक शिक्षकों के पास कोई "कनेक्शन" और "नेटवर्क" नहीं था इसलिए उनकी नियुक्ति नहीं हुई.

उन्होंने दावा किया, "चयन हुए उम्मीदवारों में से एक का प्रिंसिपल के साथ करीबी संबंध है, वहीं दूसरा खुले तौर पर दक्षिणपंथी हिंदुत्व विचारधारा का समर्थन करता है. यह स्पष्ट है कि भर्ती किस आधार पर की गई थी."

एक अन्य शिक्षक ने कहा कि, "भले ही कुछ उम्मीदवार हमारे जैसे योग्य या अनुभवी नहीं हैं, फिर भी उन्हें स्थायी पद दिया गया. यह स्थिति दयनीय है और समय के साथ डीयू में शिक्षा की गुणवत्ता पर असर डालेगी."

एड-हॉक शिक्षकों के आरोपों पर IPCW ने क्या प्रतिक्रिया दी?

ईमेल के जरिए अपने जवाब में IPCW की प्रिंसिपल पूनम कुम्री ने द क्विंट को बताया, "मुझे शिक्षकों से कोई प्रश्न या शिकायत नहीं मिली है, और नई भर्तियों के बारे में भी ऐसा ही है. समाजशास्त्र विभाग में काम करने वाले एड-हॉक शिक्षक एक से चार साल के लिए वहां थे, जिन्हें इस नियुक्ति के बारे में पता था."

भर्ती प्रक्रिया के बारे में बोलते हुए प्रिंसिपल ने कहा कि, "साक्षात्कार के माध्यम से स्थायी नियुक्ति एकमात्र वैध प्रक्रिया है. अब तक उन सभी को बेहतर, व्यापक और पारदर्शी प्रक्रिया और विशेषज्ञों के पैनल के माध्यम से नियमित नियुक्तियां मिली हैं."

उन्होंने आगे कहा कि, "एड-हॉक व्यवस्था पर काम करने वाले शिक्षकों को स्थायी नियुक्ति मिलने की गारंटी नहीं है. यदि वे इस धारणा में हैं, तो वे डीयू में प्रचलित स्थायी नियुक्ति को रोकने की कोशिश करने वालों की भ्रामक कहानी के शिकार हैं."

IPCW में समाजशास्त्र के छात्रों ने इसे निराशाजनक बताया

IPCW के मध्य सेमेस्टर में समाजशास्त्र विभाग के "रातोंरात शिक्षकों को हटाए" जाने से कुछ छात्रों में सिलेबस को लेकर डर बैठ गया है जबकि कुछ छात्रों ने कहा कि यह तो आम बात है. वहीं अन्य छात्र अपने शिक्षकों के जाने से खुश नहीं है जिन्होंने उन्हें सालों से पढ़ाया है.

आईपीसीडब्ल्यू में समाजशास्त्र के तीसरे वर्ष के छात्र ने द क्विंट को बताया कि, "हर प्रोफेसर की पढ़ाने की शैली बहुत अनोखी थी, और हम सभी का उनके साथ गहरा संबंध बन गया था. यह अचानक परिवर्तन हम में से कई लोगों के लिए एक झटके के रूप में आया है, और यह न केवल हमारे शैक्षणिक पैमाने पर बल्कि हमारी क्लास के फायदों पर भी प्रभाव डालेगा."

एक अन्य छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि "मुझे नहीं लगता कि कोई व्यक्ति जिसके पास समाजशास्त्र का बैग्राउंड नहीं है, वह हमें अच्छी तरह से पढ़ा पाएगा. अब जब मैंने सुना है कि नए प्रोफेसरों के राजनीतिक जुड़ाव हैं, तो मुझे पता है कि अब क्लासरूम चर्चाएं निष्पक्ष नहीं होंगी."

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