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पिछले हफ्ते, यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) ने 21 यूनिवर्सिटी को फेक बताया. पिछले कुछ सालों में, कई ऐसे संस्थान खुल गए हैं, जो सैकड़ों स्टूडेंट्स फंस गए हैं. इन संस्थानों के जाल में फंसकर स्टूडेंट्स अपना समय और पैसे बर्बाद करते हैं और आखिर में उनके हाथों में मान्यता प्राप्त डिग्री भी नहीं होती.
रेगुलेटरी बॉडी ने पूरे भारत में 21 'स्वयंभू, गैर-मान्यता प्राप्त' यूनिवर्सिटी या संस्थानों की एक लिस्ट जारी की, जो यूजीसी अधिनियम 1956 के उल्लंघन में काम कर रहे हैं. उनमें से ज्यादातर दिल्ली-एनसीआर में स्थित थे, इसके बाद उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा में ऐसे सबसे ज्यादा संस्थान थे.
क्या हैं फेक यूनिवर्सिटी?
यूजीसी की गाइडलाइंस के मुताबिक, केवल राज्य, केंद्रीय/प्रांतीय या डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी ही डिग्री दे सकते हैं. यूजीसी एक्ट के तहत, कोई भी संस्थान यूजीसी की मान्यता के बिना 'यूनिवर्सिटी' शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकता है.
जो यूनिवर्सिटी या संस्थान इस मान्यता के बगैर काम करते हैं, और स्टूडेंट्स को डिग्री देते हैं (जो यूजीसी की नजर में मान्य नहीं है), वो फेक यूनिवर्सिटी कहलाते हैं.
उदाहरण के तौर पर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑल्टरनेटिव मेडिसिन, जो कि यूजीसी की फेक यूनिवर्सिटी की लिस्ट में शामिल है, डिप्लोमा से लेकर पोस्टग्रेजुएट तक के कोर्स ऑफर करती है. इस यूनिवर्सिटी में बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ सर्जरी की लागत 25 हजार रुपये सलाना तक है.
अपनी वेबसाइट पर, ये कहते हैं कि ये 'अरुणाचल प्रदेश सरकार के तहत एक स्वायत्त संगठन' है.
स्टूडेंट्स कैसे इन संस्थानों को सही मान कर इनके जाल में फंस जाते हैं?
रितेश जैन: इनमें से कुछ संस्थान या यूनिवर्सिटी अपनी वेबसाइट पर रेगुलेटरी बॉडी का लोगो थोड़ा बदलकर डालते हैं. वहीं, कुछ मौजूदा यूनिवर्सिटी से मिलते-जुलते ही नाम रखते हैं, जो कोर्स के लिए अप्लाई कर रहे स्टूडेंट्स के लिए भ्रामक हो सकता है.
ऐसा ही एक उदाहरण इस साल देखने को मिला, जब दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूशन ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग को फेक घोषित कर दिया गया. ये नाम काफी जाना-पहचाना लगता है, क्योंकि ये प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से मिलता-जुलता है. इन सभी संस्थानों के कैंपस हैं, क्लासरूम हैं और अच्छी संख्या में स्टूडेंट्स इनमें दाखिल हैं.
स्टूडेंट्स कैसे इस बात का पता लगाएं कि यूनिवर्सिटी असली है या नहीं?
सौरावेश्वर सेन: पहली चीज जो स्टूडेंट्स को देखनी चाहिए वो है यूनिवर्सिटी से मिली मान्यता का अलग से सेक्शन. सभी वेबसाइट्स मान्यता के बारे में जानकारी नहीं देती हैं. हालांकि, देश में सभी बड़े शैक्षणिक संस्थान यूजीसी या ऑल इंडिया काउंसल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) के तहत आते हैं.
कोई भी संस्थान जो 'यूनिवर्सिटी' शब्द का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें यूजीसी के तहते रजिस्टर होना अनिवार्य है. यूजीसी की वेबसाइट पर एक सेक्शन भी है, जहां उसके तहत मान्यता प्राप्त सभी संस्थानों के नाम हैं. स्टूडेंट्स इस लिस्ट में यूनिवर्सिटी का नाम खोज सकते हैं.
अगर वो किसी टेक्निकल, इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट कोर्स के लिए यूनिवर्सिटी देख रहे हैं, तो वो AICTE की वेबसाइट पर देख सकते हैं.
मान्यता होने का दावा करने वाली यूनिवर्सिटी का क्या?
सौरावेश्वर सेन: हो सकता है कि किसी को कोई ऐसा कॉलेज मिले, जो कहे कि वो कलकत्ता यूनिवर्सिटी से संबंधित (affiliated) है. स्टूडेंट कलकत्ता यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर कॉलेज का नाम देख सकते हैं, और कलकत्ता यूनिवर्सिटी को आधिकारिक यूजीसी वेबसाइट (www.ugc.ac.in) पर देख सकते हैं.
स्टूडेंट्स को और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
रितेश जैन: रेगुलेटरी बॉडी की वेबसाइट पर नाम देखने के अलावा, स्टूडेंट्स संस्थान की वेबसाइट पर नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF), नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रीडीटेशन (NBA), या नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रीडीटेशन काउंसिल (NAAC) की रैंकिंग देख सकते हैं. अगर स्टूडेंट को लगता है कि वेबसाइट पर रैंकिंग फेक है, तो वो इनमें से किसी वेबसाइट पर जाकर देख सकते हैं कि संबंधित संस्थान इनकी लिस्ट में है या नहीं.
अगर स्टूडेंट्स अभी भी संतुष्ट नहीं है, तो वो यूजीसी में आरटीआई दाखिल कर सकते हैं.
ऐसी यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स के दाखिले को कैसे कम किया जाए?
ज्योति यादव: एक स्कूल प्रिंसिपल के तौर पर, हम ये सुनिश्चित करते हैं कि जब स्कूलों में काउंसलिंग सेशन हो रहे हैं, तो स्टूडेंट्स को सही फैसला लेने के बारे में बताया जाए. स्टूडेंट्स के ऐसे संस्थानों में अप्लाई करने से पहले, हम उनसे और उनके अभिभावकों से कहते हैं कि वो यूजीसी की वेबसाइट या रैंकिंग देखें.
दाखिला लेने के बाद पता चले कि यूनिवर्सिटी फेक है, ऐसे में स्टूडेंट क्या करे?
सौरावेश्वर सेन: अगर दाखिला लेने के बाद स्टूडेंट को एहसास होता है कि यूनिवर्सिटी फेक है, तो वो कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट (2019) के तहत मामले को कोर्ट में ले जा सकते हैं. इसके लिए स्टूडेंट्स के पास संस्थान या यूनिवर्सटी से कोई ऑफिशियल कम्युनिकेशन होना जरूरी है, ताकि साबित किया जा सके.
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