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'बिहारी लोग IAS बनता है..'
'बिहारी लोग इतना पढ़ता है इतना पढ़ता है कि क्या बताएं कितना पढ़ता है..'
'एक बिहारी सब पर भारी'
ये सब डायलॉग आपने भी सुना होगा. लेकिन अब क्या ही बताएं, बिहारी किसी तरह पढ़ता तो है और IAS भी बन जाता है लेकिन बिहार के कॉलेज न पढ़ाते हैं और न पढ़ने देते हैं और न खुद बढ़ते हैं.
अभी हाल ही केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने नेशनल इंस्टीट्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क यानि NIRF की रिपोर्ट जारी की है.
शून्य की खोज करने वाले बिहार के आर्यभट्ट ने कहां सोचा होगा कि बिहारी उनके शून्य को इतना सीरियसली ले लेंगे कि शिक्षा व्यवस्था को ही शून्य बना देंगे. सवाल है कि क्यों बिहार की शिक्षा व्यवस्था बार-बार फेल हो रही है? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय हर साल शैक्षणिक जगत से जुड़ी रिपोर्ट सार्वजनिक करती है. इसे NIRF कहा जाता है. NIRF की रैंकिंग और बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल जानने से पहले थोड़ा आपको फ्लैशबैक के सहारे ईस्ट का आक्सफोर्ड कहे जाने वाली पटना यूनिवर्सिटी ले चलते हैं.
पांच साल पहले यानी साल 2017 में पटना विश्वविद्यालय के 100 साल पूरे होने पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. आयोजित समारोह में PM मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी शामिल हुए थे. तब नीतीश कुमार ने पीएम मोदी के सामने मंच से ही पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की मांग की थी.
लेकिन पीएम मोदी ने नीतीश कुमार की मांग को ठुकरा दिया था. पीएम मोदी ने जवाब में कहा था,
मतलब पांच साल बाद न बिहार की कोई यूनिवर्सिटी इस लिस्ट में शामिल हो सकी, न 10 हजार करोड़ के फंड में से कुछ मिल सका. और तो और पटना यूनिवर्सिटी ने तो NIRF के लिए तो अप्लाई तक नहीं किया.
जब हमने पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर गिरीश चौधरी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अलग से पटना के लिए कोई फंड की बात नहीं कही थी, अगर टॉप 20 यूनिवर्सिटी में आएंगे तो मिलेगा फंड. पटना यूनिवर्सिटी के वीसी ने ये भी कहा कि अगली बार NIRF के लिए अप्लाई करेंगे. मतलब जब एग्जाम देंगे ही नहीं तो फेल होने का डर ही नहीं रहेगा.
पढ़ाने और शिक्षक की हालत भी देख लीजिए. वाइस चांसलर गिरीश चौधरी बतातें हैं कि पटना यूनिवर्सिटी में करीब 40 फीसदी फैकल्टी की कमी है. और इस कमी को गेस्ट फैकल्टी के सहारे कम करने की कोशिश की जा रही है.
अब आते हैं, NIRF रैंकिंग पर. इस रैंकिंग में जगह बनाने के लिए कई पारामीटर्स को पार करना होता है. टीचिंग, लर्निंग और रिसोर्सेज-जैसे स्टूडेंट्स की संख्या, फैकल्टी और स्टूडेंट्स का रेशियो, परमानेंट फैकल्टी की पोस्टिंग. रिसर्च एंड प्रोफेशनल प्रैक्टिस, ग्रेजुएशन आउटकम्स, इस तरह के पैरामीटर होते हैं.
लेकिन नालंदा, विक्रमशीला के नाम पर गर्व करने वाले बिहार के कॉलेज फिलहाल एनआईआरएफ की रैंकिंग में गुमनाम हैं.
आप ही सोचिए रैंकिंग में बिहार के कॉलेज कहां से और कैसे आएंगे.
बिहार के मगध यूनिवर्सिटी का हाल सुनिएगा तो अफसोस कीजिएगा. मगध यूनिवर्सिटी के छात्र पिछले एक महीने से धरना दे रहे हैं. 2018 में ग्रैजुएशन में एडमीशन लेने वाले छात्रों को 4 साल बाद भी पार्ट 2 का रिजल्ट नहीं मिल सका.
एक और आइरनी देखिए, जेपी आंदोलन और जय प्रकाश नारायण के नाम पर हर किसी ने अपनी राजनीति चमकाई, लेकिन उनके नाम पर छपरा में बने जय प्रकाश नारायण यूनिवर्सिटी के छात्रों का भविष्य अंधेरे में है. जय प्रकाश के नाम वाले यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ने वाले नेहरु का सेशन लेट है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जेपी ने भी कहां सोचा होगा कि आजादी के इतने साल बाद भी आम शिक्षा तक लोगों को सही से नहीं मिलेगी.
जब हमने मगध यूनिवर्सिटी के एग्जाम कंट्रोलर जी पी गडकर से सेशन में देरी को लेकर बात की तो वो कहने लगे कि जिन प्राइवेट एजेंसियों के जरिए रिजल्ट का काम लिया गया था उन्हें गड़बड़ी की वजह से हटा दिया गया है. फिलहाल कोई एजेंसी नहीं है जो रिजल्ट तैयार करे. मतलब छात्रों का भविष्य प्राइवेट एजेंसियों के सहारे टिका है.
ललित नारायन मिथिला यूनिवर्सिटी के वीसी आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी पटना के भी वाइस चांसलर हैं. वहीं बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर बिहार यूनिवर्सिटी मुजफ्फरपुर के वाइस चांसलर हनुमान प्रसाद पांडे को तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का भी प्रभार दिया गया है.
ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) की 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 17 स्टेट यूनिवर्सिटी हैं, सेंट्रल, डीम्ड, प्राइवेट जैसी युनिवर्सिटी को मिला दें तो ये संख्या 35 हो जाएगी. वहीं बिहार में करीब 874 कॉलेज हैं. बिहार में 18-23 वर्ष की आयु के एक लाख युवाओं पर महज सात कॉलेज हैं.
'बिहार के बच्चे बहुत मेहनती होते हैं', ऐसे डायलॉग को रोमेंटसाइज करने से पहले ये जान लीजिए कि बिहार से लाखों बच्चे बेहतर शिक्षा के लिए पलायन कर रहे हैं. जो पलायन नहीं करते हैं वो कभी पेपर लीक का सामना करते हैं, कभी बीपीएससी जैसे एग्जाम के रिजल्ट का सालों इंतजार करते हैं, तो कभी अग्नीपथ जैसी स्कीम में उलझे रहते हैं. जब बिहार के कॉलेजों में शिक्षक कम होंगे, सेशन लेट होगा, इंफ्रासट्रक्चर बेहतर नहीं होगा तो बेहतर जिंदगी की तलाश में मजबूर होकर दूसरे शहरों में जाना पड़ता है.
शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए साल 2022-23 में बिहार सरकार की तरफ से सबसे ज्यादा 39191.87 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है. लेकिन फिर भी हाल बेहाल है. सवाल है कि पीएम मोदी से लेकर नीतीश कुमार डबल इंजन की सरकार का नारा देते हैं फिर क्यों बिहार के एजुकेशन सिस्टम को रफ्तार नहीं दिया जा रहा? और अगर सिर्फ भाषण और आश्वासन देंगे तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
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