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दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. लेकिन दाखिले के लिए योग्यता के पैमाने से जुड़े नियमों में बदलाव से विवाद पैदा हो गया है. छात्र-छात्राओं के साथ यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक काउंसिल और एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों ने इस बदलाव का विरोध किया है. एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों ने इन नियमों को मनमाना और गैर जरूरी करार दिया है और वाइस चासंलर योगेश त्यागी को चिट्ठी लिख कर इन्हें बदलने की मांग की है.
इस चिट्ठी में एडमिशन के लिए बनाए गए नियमों की खामियां गिनाई गई हैं. छात्र-छात्राओं में सबसे ज्यादा गुस्सा बीए इकोनॉमिक्स (ऑनर्स) में एडमिशन के नियमों में बदलाव को लेकर है. इस कोर्स में एडमिशन के लिए गणित को बेस्ट फोर सबजेक्ट में शामिल करना अनिवार्य बना दिया गया है.
इस मामले में वीसी को लिखी गई चिट्ठी में दस्तख्त करने वाले एग्जीक्यूटिव काउंसिल के मेंबर राजेश झा ने द क्विंट से कहा
इकोनॉमिक्स (ऑनर्स) में एडमिशन के लिए बेस्ट ऑफ फोर में गणित को अनिवार्य करने के अलावा बीकॉम (ऑनर्स), बीएससी (ऑनर्स) और बीए (प्रोग्राम) की eligibility criteria में चेंज किया गया है. जैसे बीकॉम (ऑनर्स ) के लिए छात्र-छात्राओं के पास मैथ या या बिजनेस मैथ में 50 फीसदी मार्क्स होने चाहिए. कुल मिला कर 60 फीसदी मार्क्स चाहिए. नई शर्तें भी जोड़ी गई हैं.
एकेडेमिक काउंसिल के सदस्य सुधांशु कुमार ने कहा कि इस तरह के फैसले का उल्टा असर गरीब और हाशिये के समुदाय से जुड़े छात्रों से पड़ेगा. पिछले दो साल के दौरान नए वीसी के आने के बाद एससी,एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए रिजर्व्ड 6000 से 7000 सीटें भर नहीं पाई हैं.
झा और कुमार दोनों ने आरोप लगाया कि एकेडेमिक काउंसिल को Eligibility criteria में बदलाव के वक्त विश्वास में नहीं लिया गया. उनका कहना था कि एग्जीक्यूटिव और एकेडेमिक काउंसिल की शुचिता बरकरार रखनी चाहिए थी और किसी भी परिवर्तन से पहले डिबेट और डिस्कशन होना चाहिए था.
एडमिशन के लिए जरूरी शर्तों में बदलाव से पैदा हुए विवाद के बाद ये मामला अब दिल्ली हाई कोर्ट में है. 12 जून को इस मामले में दायर याचिकाओं पर अदालत ने केंद्र और दिल्ली यूनिवर्सिटी दोनों से जवाब मांगा था. अगली सुनवाई 14 जून को होगी.
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