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हिमंता का ओबामा पर हमला,असम में इस्लामोफोबिक-अल्पसंख्यक विरोधी सोच को दर्शाता है

Obama ने इंटरव्यू में इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यकों के अधिकार भारत सहित किसी भी लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं.

सूरज गोगोई
न्यूज
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<div class="paragraphs"><p>हिमंत बिस्वा सरमा का ओबामा पर हमला असम में इस्लामोफोबिया को मजबूत करता है</p></div>
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हिमंत बिस्वा सरमा का ओबामा पर हमला असम में इस्लामोफोबिया को मजबूत करता है

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा (Barack Obama) ने हाल ही में अपनी ग्रीस यात्रा के दौरान CNN के साथ एक साक्षात्कार में "देश और विदेश में लोकतंत्र के भविष्य" के बारे में बात की. अन्य बातों के अलावा, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अल्पसंख्यकों के अधिकार भारत सहित किसी भी लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं.

उन्होंने कहा: “…यदि आप भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करते हैं, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत किसी भी समय टूटने लगे. हमने पहले देखा है कि जब इस प्रकार के बड़े आंतरिक संघर्ष होने लगते हैं तो क्या होता है."

ओबामा के इस इंटरव्यू के बाद भारतीय पत्रकार रोहिणी सिंह ने ट्वीट कर तंज कसा था. 

उन्होंने लिखा कि, "क्या भावनाओं को आहत करने के लिए ओबामा के खिलाफ गुवाहाटी में अभी तक FIR दर्ज की गई है? क्या असम पुलिस ओबामा को किसी विमान से उतारने और गिरफ्तार करने के लिए वाशिंगटन जा रही है?"

इसके जवाब में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने ट्वीट किया कि, भारत में ही अभी कई हुसैन ओबामा हैं. हमें वॉशिंगटन जाने की बजाय पहले उन लोगों पर ध्यान देना चाहिए. असम पुलिस अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से ही इन पर कार्रवाई करेगी. 

BJP के शासन में अल्पसंख्यकों की दशा 

हम सभी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में लोकतंत्र का रिकॉर्ड निराशाजनक रहा है. वास्तव में, हिमंता बिस्वा सरमा की टिप्पणी से पता चलता है कि आज के भारत में अल्पसंख्यकों की सामाजिक हैसियत क्या है. जब हम रोहिणी सिंह के तंज और हिमंता बिस्वा सरमा के जवाब को एक साथ देखते हैं तो एक निश्चित तरीके की प्रचलित चर्चा सामने आती है.

इस आदान-प्रदान से जो पहला विषय उभरता है वह यह है कि भारत में मुसलमान किस प्रकार बहुसंख्यकवादियों के निशाने पर हैं. वे शत्रु की तरह हैं. खान-पान, परिवार, संपत्ति, धर्म, शादी, उनके जीवन की हर चीज रडार पर है.. कुछ भी ऐसा नहीं बचा हुआ है जो प्राइवेट हो और उसका हनन नहीं किया जा सके.

जब उनके प्रति ऐसी असहिष्णुता और पूर्वाग्रह इतना मजबूत और आम हो जाता है, तो इस्लामोफोबिया का आधार सिर्फ राज्य या एक पार्टी तक सीमित नहीं रह जाता है. इस तरह की नफरत और अल्पसंख्यकों को कोसना आज की संस्कृति का हिस्सा बन गया है. ऐसी संस्कृति किसी विदेश से नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति से निकली है.

यह भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार भारत में अल्पसंख्यकों का कथित 'ख्याल' रख रही है. 'हुसैन ओबामा' को लगातार मुस्लिम समाज से खोजकर भारतीय राज्य और समाज के लिए भय और खतरे का उदाहरण बनाया जा रहा है. यदि आप असम और असमिया राष्ट्रवाद के इतिहास पर नजर डालें, तो आपको एक अलग संदर्भ मिलेगा कि कैसे इस्लामोफोबिया को धीरे-धीरे समाज में घुसाया गया है. असम साहित्य सभा, ऑल असम स्टूडेंट यूनियन जैसी सिविल सोसाइटी बॉडी भी असम में लगातार प्रवासियों को निशाने पर रखती रही है.

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पहले भी हिमंता सरमा बना चुके हैं निशाना 

हिमंता सरमा की राजनीतिक करतूतों में से एक तो यह है कि वो किसी भी प्रकार के अल्पसंख्यकों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व, संस्कृति और नेताओं पर हमला करके उन्हें कमजोर करते हैं. सरमा "मुझे आपके (मुस्लिमों) वोट की जरूरत नहीं है" जैसी बातें कहने के अलावा, उन्होंने खुले तौर पर यह भी कहा है कि बदरुद्दीन अजमल जैसे नेता मुस्लिम संस्कृति के साथ-साथ असमिया समाज के लिए भी खतरा हैं. उन्हें असमिया समाज का दुश्मन तक बताया.

उन्होंने कहा-  “बदरुद्दीन अजमल असम की राजनीति का सबसे खतरनाक चेहरा हैं. वह कट्टरपंथी संगठन से पैसा ला रहा है." समाज सेवा के नाम पर वह एक ऐसा नेटवर्क बना रहे हैं जो असम की संस्कृति के अनुकूल नहीं है. मुझे लगता है, वो कोई एक शख्स नहीं, बल्कि कुछ लोगों के प्रतीक हैं और वे हमारे दुश्मन हैं.”

उन्होंने पूरे 'मियां समुदाय' को 'सांप्रदायिक और कट्टरपंथी' कहकर अपमानित किया है. उनकी टिप्पणियां निम्नलिखित हैं:

  • “उन्होंने खुद को मियां के रूप में पहचानना शुरू कर दिया है. ये तथाकथित मियां लोग बहुत ही सांप्रदायिक और कट्टरपंथी हैं. वे असमिया संस्कृति और असमिया भाषा को विकृत करने की कई गतिविधियों में शामिल हैं. इसलिए मैं उनके वोट से विधायक नहीं बनना चाहता. अगर उन्होंने मुझे वोट दिया तो मैं विधानसभा में नहीं बैठ पाऊंगा.

  • “अजमल मच्छरदानी में मच्छर की तरह है. कानून मच्छरदानी की तरह है और और मच्छर वो व्यक्ति है”  

हिमंता निश्चित रूप से मुसलमानों को दुश्मन या इस्लामोफोबिक कहने वाले असम के पहले व्यक्ति नहीं हैं. 1950 में असम साहित्य सभा के अध्यक्ष के रूप में अंबिकागिरी रायचौधरी ने अपने भाषण में घोषणा की कि कम्युनिस्ट, पाकिस्तानी और बंगाली असमिया के दुश्मन हैं.

संजीब बरुआ ने अपनी किताब ड्यूरेबल डिसऑर्डर में एक फुटनोट में लिखा है जो प्रवासियों की पूरी आबादी को एक खास नजरिए से दिखाता है: “हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में एक दिलचस्प किस्म का विरोधाभास विकसित हो गया है. चूंकि आप्रवासियों का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश से है, हाल के वर्षों में इसका सियासी अंजाम ये हुआ है कि ‘इस्लामी उग्रवाद’ में बढ़ोतरी हो गई है, जो भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को काफी परेशान करता है.”

हिमंता सरमा असमिया राष्ट्रवाद की पहली उपज हैं. असम में उस मुस्लिम विरोधी संस्कृति में पले-बढ़े हैं, जिसका रायचौधरी और बरुआ दोनों हिस्सा हैं. वह केवल उस सामाजिक आधार और नफरत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो पहले से ही मौजूद है.

हिंदुत्व ने मौजूदा अल्पसंख्यक विरोधी भावनाओं को और भड़का दिया है. 

असम में कानून और हिंसा का गलत इस्तेमाल 

एक दूसरा पहलू जिसे इन ट्वीट्स से देखा जा सकता है वह है कानून और हिंसा का. मतभेदों के बावजूद बिना पक्षपात के एक समान व्यवहार करना अपने देश में नागरिकता की पहली शर्त है. इसका वादा सेकुलर और लोकतांत्रिक संविधानिक प्रक्रियाओं में किया गया है. 

हिमंता सरमा अपने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए कानून को हथियार बना रहे हैं. असम में पुलिस के दुरुपयोग की बात काफी सामने आई है. मई 2021 से, स्क्रोल रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि हिमंता सरमा के शासन के तहत असम पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ों में 51 लोगों को मारा है. जिग्नेश मेवाणी, पवन खेड़ा या अजमल जैसे निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ एफआईआर का इस्तेमाल कानून के दुरुपयोग का उदाहरण है. 

बारपेटा सत्र अदालत ने - मेवानी को जमानत देते हुए - असम में कानून और व्यवस्था की स्थिति और पुलिसिया ताकत के दुरुपयोग के बारे में बताया. जज ने पुलिस और सरकार को फटकार लगाई. उन्होंने कहा:

“झूठी एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगनी चाहिए. आरोपी व्यक्तियों की गिरफ्तारी और आरोपी व्यक्तियों का आधी रात में पुलिस हिरासत से भागने की बनावटी कहानी बनाई जाती है और फिर इसे यकीन करने लायक बनाने के लिए और झूठी कहानियां गढ़ी जाती है." 

हिमंता सरमा ऐसी टिप्पणियां करने के आदी हैं जो मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का संकेत देती हैं. जब बेदखली अभियान के दौरान मोइनुल हक की बेरहमी से हत्या कर दी गई, तो उन्होंने कहा कि उन्हें गर्वसूस हो रहा है. हक की हत्या को नेली नरसंहार के पीड़ितों के लिए उन्होंने बदला बता दिया. 

इसलिए, हिमंता सरमा का हुसैन ओबामा जैसी बातें कहना ना केवल उनके अतीत, वर्तमान और उस संस्कृति के अनुरूप है जिसका वो हिस्सा हैं, जबकि उन्होंने इस्लाम का अनुयायी नहीं होने के बावजूद ओबामा को रूढ़िवादी बताया, उनका बयान भारत में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न (और नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के रूप में) का भी बचाव करता है और भारत की बहु-धार्मिक परंपराओं को कमजोर करता है. 

उनके पूर्वाग्रह नैतिकता के मामले में बुरे हैं, लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा के संदर्भ में सही हैं, जिसके लिए वो अब प्रतिबद्ध हैं.

(सूरज गोगोई आरवी यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु में स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड साइंसेज में सहायक प्रोफेसर हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और उनके लेख उनकी संस्था क प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. यह एक ओपीनियन आर्टिकल है और यह विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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