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सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के 10 फीसदी आरक्षण के फैसले खिलाफ दर्ज जनहित याचिका मंजूर कर ली है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस भेज कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है. केंद्र सरकार ने एक पखवाड़ा पहले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण के फैसला किया था और इसे 1 फरवरी से लागू करने का ऐलान कर दिया था. लेकिन इस बीच, इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में मंजूर कर ली गई.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने गरीब सवर्णों के लिए आए 10% आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की बेंच ने कहा है कि , “हम इस मामले की जांच करेंगे.”
आर्थिक आधार पर आरक्षण के फैसले के खिलाफ दायर की गई याचिका में कोर्ट से इस फैसले पर स्टे मांगा गया था. लेकिन कोर्ट ने फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है और कहा कि मामले की जांच चल रही है.
सुप्रीम कोर्ट में 124वें संविधान संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई हैं. दायर याचिका के मुताबिक आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता. याचिका के मुताबिक विधयेक संविधान के आरक्षण देने के मूल सिद्धांत के खिलाफ है, यह सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 50% के सीमा का भी उल्लंघन करता है. आपको बता दें कि ये विधेयक सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देता है.
दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार ने कैबिनेट मीटिंग में फैसला किया कि देश के गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में दस फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. सरकार ने 8 जनवरी को लोकसभा में संविधान का 124वां संशोधन विधेयक 2019 पेश किया गया. लंबी बहस के बाद ये विधेयक लोकसभा में पास हुआ. अगले दिन राज्यसभा में इस संशोधन विधेयक को पेश किया गया और लंबी बहस के बाद यहां भी पास कर दिया गया. दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद मंजूरी के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा गया, जहां राष्ट्रपति कोविंद ने भी बिल पर हस्ताक्षर कर अपनी मंजूरी दे दी.
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