advertisement
आज देश भर में चैत्र नवरात्र बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जा रहा है. नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है.
मार्केण्डय पुराण के अनुसार, पर्वतराज यानी कि शैलराज हिमालय की पुत्री होने की वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. 'शैल' का अर्थ होता है चट्टान और 'पुत्री' का मतलब है बेटी.
मां शैलपुत्री बैल की सवारी करती हैं और इनके दाएं हाथ में में त्रिशूल और बाएं में कमल होता है. इसके अलावा वह अपने माथे पर चांद भी पहनती हैं.
मान्यता है कि आज के दिन माता मां शैलपुत्री की पूजा और उनके मंत्र का 11 बार जाप करने से व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत होता है.
वन्दे वाञ्छिक लाभाय चंद्र अर्धकृत शेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
आज यानी चैत्र नवरात्र के पहले दिन लोग माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है.
घट स्थापना सुबह की जाती है. 9 दिनों तक कलश वहीं रखा जाता है. कलश की स्थापना के लिए आपको चावल, सुपारी, मौली, रोली, केसर, पान, इलायची, लौंग, इत्र, चंदन, चौकी, सिंदूर, लाल वस्त्र, धूप, दीप, फूल, गुलाल, सुगंधित पुष्प, रूई, नारियल आदि चीजों की जरूरत होती है. बेहतर रहेगा अगर आप पहले ही ये सभी सामग्रियां एकत्र कर लें.
कलश पर स्वास्तिक बनाया जाता है और मौली बांधकर उसके नीचे गेहूं या चावल डालकर रखा जाता है. उसके ऊपर लोग नारियल भी रखते हैं.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)