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1993 के बम धमाकों (Bomb Blast) का मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंडा (Abdul Karim Tunda) को टाडा अदालत ने बरी कर दिया है. राजस्थान में अजमेर की टाडा (TADA - Terrorist & Anti-disruptive Activities Act) की अदालत ने टुंडा को निर्दोष पाया है और धमाके के 31 साल बाद यह फैसला सुनाया है.
क्या है TADA?
टाडा का फुल फॉर्म - आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम. टाडा के तहत जिन पर मामला दर्ज होता है उनकी सुनवाई के लिए देश में केवल तीन ही कोर्ट हैं - मुंबई, अजमेर और श्रीनगर. हालांकि, 1985 में लागू हुए इस कानून को 1995 में ही खत्म कर दिया गया था लेकिन इसके तहत दर्ज हुए मामलों की सुनवाई जारी है.
6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी पर देशभर में पांच ट्रेनों में बम विस्फोट किए गए थे. इस मामले में टुंडा मुख्य आरोपी था. वहीं दो अन्य आरोपी- इरफान और हमीदुद्दीन दोषी पाए गए जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
टुंडा के वकील शफीकतुल्ला सुल्तानी ने कहा, "माननीय अदालत ने अब्दुल करीम टुंडा को सभी आरोपों से बरी कर दिया है. सीबीआई अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ कोई भी मजबूत सबूत पेश करने में विफल रही.
साल 1993 में 5 और 6 दिसंबर की मध्यरात्रि को लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई में एक साथ बम धमाके हुए थे. धमाके में दो लोगों की मौत हुई थी और कम से कम 22 घायल हुए थे. ये धमाके दिल्ली और हावड़ा जाने वाली तीन ट्रेनों, सूरत-बड़ौदा फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस और हैदराबाद-नई दिल्ली एपी एक्सप्रेस में किए गए थे.
टाडा के अलावा, मामले के तीनों आरोपियों पर चार और आरोप लगाए गए थे:
आईपीसी
विस्फोटक पदार्थ अधिनियम
सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान निवारण अधिनियम
भारतीय रेलवे अधिनियम
रिपोर्ट्स के अनुसार, वह पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी)/आईएसआई के साथ करीब से जुड़ा हुआ था. 1980 के दशक की शुरुआत में टुंडा को कथित तौर पर आईएसआई ने आतंकवादी गतिविधियों में शामिल किया था.
पुलिस के मुताबिक, टुंडा बम बनाने में माहिर है और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम कर रहा था. पुलिस के अनुसार, टुंडा ने स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे यूरिया, नाइट्रिक एसिड, पोटेशियम क्लोराइड, नाइट्रोबेंजीन और चीनी के साथ बम तैयार करने और उन्हें भीड़-भाड़ वाली जगहों पर लगाने का प्रशिक्षण दिया था ताकि ज्यादा से ज्यादा जनहानि हो सके.
पुलिस ने पहले दावा किया था कि कट्टरपंथी जेहादी आतंकवादी बनने से पहले अब्दुल करीम टुंडा ने 40 साल की उम्र तक कारपेंटर, स्क्रैप डीलर और कपड़ा व्यापारी के रूप में काम किया था. टुंडा के परिवार में केवल उसका छोटा भाई अब्दुल मलिक (कारपेंटर) ही कथित तौर पर जिंदा है और भारत में रहता है.
कथित तौर पर बम बनाते एक दुर्घटना में उसका एक हाथ विकलांग हो गया था जिसके बाद उसे टुंडा नाम दिया गया था. कथित तौर पर टुंडा 'डॉ बॉम्ब' के नाम से भी मशहूर है.
अब्दुल करीम टुंडा उर्फ अब्दुल कुद्दूस भारत की मोस्ट वांटेड लिस्ट में था और उन 20 आतंकवादियों में से एक था जिसे भारत ने 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी सरकार से सौंपने की मांग की थी. इस लिस्ट में लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद, जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मौलाना मसूद अजहर और दाऊद इब्राहिम सहित अन्य शामिल हैं.
टुंडा कथित तौर पर 5 और 6 दिसंबर, 1993 को हैदराबाद, गुलबर्गा, सूरत और लखनऊ में ट्रेनों में सिलसिलेवार विस्फोटों के कई मामलों में भी वॉन्टेड रहा.
जनवरी 1994 के बाद, टुंडा के बांग्लादेश के ढाका भाग जाने की खबर थी जहां उसने जेहादी तत्वों को बम बनाने की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया था. पुलिस ने दावा किया था कि बाद में वह 1996-1998 में विस्फोट की साजिश रचने के लिए भारत आया था.
1996 के सोनीपत विस्फोट मामले में टुंडा को दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. फिलहाल वह यह सजा काट रहा है.
टुंडा को 2013 में नेपाल के बनवासा-महेंद्रनगर सीमा पर गिरफ्तार किया गया था.
जब उसे गिरफ्तार किया गया तो पुलिस को कथित तौर पर उसके पास से एक पाकिस्तानी पासपोर्ट नंबर एसी 4413161 मिला, जो 23 जनवरी, 2013 को अब्दुल कुद्दूस के नाम पर जारी किया गया था.
कई रिपोर्ट के अनुसार, टुंडा कई बम ब्लास्ट मामलों में शामिल था लेकिन 2016 में दिल्ली की एक अदालत से उसे चार मामलों में क्लीन चिट मिल गई थी.
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