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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) की तारीखों के ऐलान में अब सिर्फ एक साल का वक्त बचा है. लेकिन राजनीतिक जोर आजमाइश अभी से शुरू हो गई है. सत्तारूढ़ बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्ष कितना एकजुट होगा, इस पर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन 5 ऐसे युवा नेता हैं जो 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकते हैं.
ये वो नेता हैं जो न सिर्फ अपनी पार्टी का चेहरा हैं बल्कि राष्ट्रीय पटल पर इनकी बड़ी भूमिका है. आखिर कौन हैं वो नेता और 2024 के चुनाव में क्यों उनकी भूमिका इतनी अहम है, आइये आपको समझाते हैं.
उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ी भूमिका होगी. अखिलेश जिस प्रदेश से आते हैं वहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटें हैं. 2014 के चुनाव में NDA को यहां 73 सीट और 2019 में 64 सीट मिली थी जबकि दोनों चुनाव में समाजवादी पार्टी 5 सीट ही जीत पाई थी. इसमें 5 उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव के परिवार के थे.
2024 के चुनाव में अगर विपक्ष को बीजेपी के विजय रथ को रोकना है तो उसमें यूपी की अहम भूमिका होगी. BSP और कांग्रेस का जिस तरीके से जनाधार घट रहा है उसके बाद अकेले समाजवादी पार्टी ही दिख रही है, जो प्रदेश में बीजेपी का मुकाबला कर सकती है. लेकिन अखिलेश यादव के लिए ये राह आसान नहीं है. उनके सामने कई ऐसे चुनौतियां है जिससे उन्हें पार पाना होगा.
समाजवादी पार्टी और यादव कुनबे को आगे भी एकजुट रखना होगा
मुलायम के MY समीकरण को साधे रखने की चुनौती होगी.
युवाओं के साथ पुराने नेताओं को तवज्जो देनी होगी.
मजबूत विपक्ष के तौर पर बीजेपी का डटकर सामना करना होगा.
पारंपरिक सीटों को बचाए रखना होगा.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो, अखिलेश यादव बीजेपी के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे का जातिगत राजनीति के आधार पर किस तरह से मुकाबला करेंगे, ये बहुत अहम होगा. वहीं, अन्य बैकवर्ड क्लास का कितना वोट समाजवादी पार्टी के पाले में आ पाएगा, ये भी बड़ी चुनौती होगी.
उद्धव ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे आदित्य ठाकरे की पहचान युवा नेता के तौर पर होती है. आदित्य जिस प्रदेश से आते हैं वो यूपी के बाद सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाला राज्य है. यहां से 48 सांसद चुनकर संसद जाते हैं. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने यहां पर 23 सीट पर जीत हासिल की थी जबकि महाराष्ट्र में बदली राजनीतिक स्थितियों के बाद अब उद्धव गुट के पास केवल 6 सांसद हैं.
25 साल तक बीजेपी के साथ गठबंधन में रही शिवसेना ने 2019 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अपनी राह अलग कर ली थी और यहीं से पार्टी की मुसीबत शुरू हो गई. वर्तमान समय में आदित्य ठाकरे के पास न शिवसेना का सिंबल है और न ही पार्टी का नाम. एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना का दर्जा मिलने के बाद से आदित्य ठाकरे के सामने तमाम चुनौती हैं. जैसे-
नई पार्टी को मजबूती से महाराष्ट्र में खड़ा करना.
बाला साहब ठाकरे की विरासत को बचाना.
वर्कर्स के मनोबल को बनाए रखना.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो, आदित्य ठाकरे की सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा हासिल करना है, क्योंकि उद्धव गुट अभी शरद पवार के कंधे पर हाथ रखकर चल रहा है और इससे उसे जल्द बाहर आना होगा.
35 वर्षीय अभिषेक बनर्जी TMC के राष्ट्रीय महासचिव हैं. वह जिस प्रदेश से आते हैं वहां लोकसभा की 42 सीट हैं यानी यूपी और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर पर सबसे अधिक सांसद पश्चिम बंगाल से चुनकर जाते हैं. पश्चिम बंगाल में टीएमसी पिछले 12 सालों से सत्ता में हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी का प्रदेश में सफलता का ग्राफ बढ़ता दिख रहा है.
अभिषेक बनर्जी अभी युवा हैं. उनके सामने कई चुनौतियां हैं जिससे उन्हें पार पाना होगा. जैसे-
अभिषेक बनर्जी की TMC में खुलकर स्वीकार्ता नहीं दिखती है. ऐसे में कार्यकर्ताओं के बीच पैठ बनानी होगी, जिससे पार्टी वर्कर्स के बीच संदेश जाए कि ममता बनर्जी के बाद पार्टी में नंबर 2 वही हैं.
पार्टी में गुटबाजी को रोकना होगा.
ममता बनर्जी के साये से निकलकर खुद को स्थापित करना होगा.
BJP के बढ़ते ग्राफ को रोकना होगा.
कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी पार्टी की छवि को साफ बनाए रखना होगा.
TMC के जनाधार को लोकसभा चुनावों में और मजबूत करना होगा.
बिहार के डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बहुत ही कम समय में प्रदेश की राजनीति में अहम किरदार बन गए हैं. 26 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बने तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद के नक्शेकदम पर चलते हुए उनकी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. RJD ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में शानदार प्रदर्शन किया और नंबर वन पार्टी बनी. लेकिन लोकसभा चुनावों में RJD का प्रदर्शन निराशाजनक था.
कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे तेजस्वी यादव को जल्द इससे बाहर निकलना होगा.
RJD के पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोटबैंक के अलावा अन्य वर्गों का वोट पार्टी के पाले में लाना होगा.
बिहार में महागठबंधन को बनाए रखना होगा.
RJD की छवि कथित तौर पर अराजकता फैलाने वाली पार्टी की रही है. तेजस्वी को इस पर लगाम लगाना होगा.
युवाओं और वरिष्ठ नेताओं के बीच समन्वय स्थापित करना होगा. कई वरिष्ठ नेता तेजस्वी यादव पर पुराने नेताओं की अनदेखी का आरोप लगाते रहे हैं.
बिहार में लोकसभा की 40 सीट है, ऐसे में आरजेडी को अधिक सीट पर जीत हासिल करनी होगी.
राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की पहचान कांग्रेस में बगावती नेता के तौर पर रही है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन राजस्थान कांग्रेस के अंदर नेतृत्व को लेकर आंतरिक कलह जारी है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के विवाद से कांग्रेस कार्यकर्ता पशोपेश में हैं, उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें? कांग्रेस ने अभी तक सचिन पायलट की भूमिका तय नहीं की है, ऐसे में सवाल है कि क्या पार्टी उन्हें राजस्थान विधानसभा चुनाव में सीएम फेस बनाएगी?
राजस्थान में लोकसभा की 25 सीट हैं. बीजेपी ने 2014 में क्लीन स्वीप किया तो 2019 में 24 सीट पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस का दोनों चुनाव में खाता तक नहीं खुला था. ऐसे में अगर, सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच का विवाद जल्द नहीं सुलझा तो 2023 और 2024 में भी पहले के नतीजे दोहराये जा सकते हैं.
इन नेताओं पर गौर फरमाएं तो सचिन पायलट को छोड़कर सभी अपनी पार्टी के नंबर एक या दो नेता हैं. उनके ऊपर न सिर्फ पार्टी को बचाने की जिम्मेदारी है बल्कि अपने मूल वोटर्स को रोके रखना भी एक बड़ी चुनौती है. अगर ये नेता अपनी पार्टी के लिए बेहतर प्रदर्शन कर पाए तो यकीकन 2024 चुनाव के बाद की तस्वीर अलग होगी.
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