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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर किसी दंपति की स्वतंत्रता और जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात आती है तो ऐसे में महिला का इस्लाम धर्म में परिवर्तन कोई प्रासंगिक कारक नहीं होगा.
एक दंपति की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी की. धमकियों से सुरक्षा की मांग करने पहुंचे इस दंपति को राहत देते हुए कोर्ट ने पुलिस और परिवार के सदस्यों को ये निर्देश दिया कि इस कपल की जिंदगी में हस्तक्षेप न किया जाए.
हालांकि,
जस्टिस सलिल कुमार राय की पीठ ने कहा कि ये नियम तब लागू नहीं हो सकता है जब इस्लाम में धर्मांतरण स्वैच्छिक नहीं हुआ हो बल्कि जबरदस्ती कराया गया हो.-
कोर्ट ने दंपति को जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने के लिए कहा है जो ये सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाएंगे कि याचिकाकर्ता की जिंदगी और आजादी में किसी तरह का हस्तक्षेप न हो.
लता सिंह केस में एक युवती ने अपने पति की सुरक्षा की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. युवती ने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ दूसरी जाति के व्यक्ति से विवाह किया था, उसके पति को उसके भाई ने बंदी बना लिया था और धमकी दी थी. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए कहा था कि इस तरह की हिंसा और उत्पीड़न करने वाले लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए. कोर्ट ने माना था कि याचिकाकर्ता बालिग है. वो किसी से भी शादी करने के लिए स्वतंत्र है और हिंदू विवाह अधिनियम या किसी अन्य कानून के तहत अंतर्जातीय विवाह पर कोई रोक नहीं हैय इसलिए, याचिकाकर्ता और उसके पति या पति के रिश्तेदारों ने कोई अपराध नहीं किया.
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