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सिक्किम (Sikkim) में अचानक आई बाढ़ में फंसने के बाद मंगलवार (3 अक्टूबर) देर रात भारतीय सेना के 23 जवान लापता हो गए. पूर्वी कमान के त्रिशक्ति कोर ने एक बयान में कहा कि उत्तरी सिक्किम में ल्होनक झील पर अचानक बादल फटने के कारण लाचेन घाटी में तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आ गई. फिलहाल, रेस्क्यू जारी है और PTI के मुताबिक अभी तक तीन बॉडी रिकवर की गई हैं. लेकिन ये बादल फटता क्यो हैं? बादल फटना क्या होता हैं, इसका जलवायु परिवर्तन से क्या संबंध है? यहां वह सब है जो आपको जानना जरूरी है.
क्या है बादल फटना?
बादल फटना कम समय के भीतर एक छोटे से क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा की घटना है. बादल फटने से अचानक तीव्र वर्षा होती है. बादल फटने की प्रक्रिया तब शुरू होती है, जब गर्म हवा, ठंडी हवा के साथ परस्पर क्रिया करती है.
मौसम विज्ञानियों के अनुसार, 100 मिमी प्रति घंटे के बराबर या उससे अधिक वर्षा की दर को बादल फटने के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जबकि बादल फटने के कई विनाशकारी प्रभाव होते हैं, वे ज्यादातर अचानक बाढ़, भूस्खलन, कीचड़ प्रवाह और भूमि के कटाव के परिणामस्वरूप होते हैं.
बादल फटने की संभावना किन क्षेत्रों में अधिक है?
वैसे तो पहाड़ी इलाकों और पहाड़ इस घटना के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, जबकि मैदानी इलाकों में भी बादल फट सकते हैं. भारत में, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे स्थान और पश्चिमी घाट के क्षेत्र बादल फटने से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, बादल फटने की भविष्यवाणी करना मुश्किल है और हमें उन क्षेत्रों पर घने रडार नेटवर्क की आवश्यकता है जो उनके लिए असुरक्षित हैं.
क्या बादल फटने का संबंध जलवायु परिवर्तन से है?
विशेषज्ञों ने बार-बार बादल फटने की प्रक्रिया में वृद्धि को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा है. डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जुलाई 2021 तक हिमालयी क्षेत्र में कम से कम 26 बार बादल फटने की घटना हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते वैश्विक समुद्री तापमान के कारण महासागर तेजी से गर्म हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप नमी युक्त हवा हिमालयी क्षेत्र में पहुंच रही है, जिसकी वजह से बादल फट रहे हैं.
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