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करीब दो साल के अंतराल के बाद, अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra 2022) एक बार फिर शुरू हो गई है. अमरनाथ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का पहला जत्था 29 जून को जम्मू (Jammu) से घाटी के लिए रवाना हुआ था. इस साल ये तीर्थयात्रा 30 जून से शुरू होकर 11 अगस्त को समाप्त हो रही है. अमरनाथ यात्रा का हिन्दू धर्म में अपना अलग ही महत्व है. अमरनाथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? अमरनाथ गुफा की खोज किसने की? इस बारे में क्या मान्यताएं हैं, आइए आपको बताते हैं
अमरनाथ को प्रमुख हिंदू धामों में से एक माना जाता है. पवित्र गुफा में भगवान शिव का निवास माना जाता है, यहां बनने वाला लिंगम प्राकृतिक रूप से बनता है.
अमरनाथ गुफा यात्रा की खोज के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. दंत कथाओं के मुताबिक, सदियों पहले देवी पार्वती ने शिव से कहा कि उन्हें बताएं कि उन्होंने सिर की माला (मुंड माला) क्यों और कब पहनना शुरू किया.
इस पर शंकर ने उत्तर दिया, "जब भी आप पैदा होती हैं तो मैं अपने मनके में और सिर जोड़ता हूं" पार्वती ने कहा, "मैं बार-बार मरती हूं, लेकिन आप अमर हो. कृपया मुझे इसके पीछे का कारण बताएं. भोले शंकर ने उत्तर दिया कि इसके लिए आपको अमर कथा सुननी होगी."
शिव, पार्वती को कहानी सुनाने के लिए सहमत हो गए. लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि वह किसी ऐसी जगह कहानी सुनाएंगे जहां एकांत हो मतलब कोई और न हो. उन्होंने एकांत स्थान ढूंढ़ने की शुरुआत की, जहां कोई भी प्राणी अमर रहस्य को नहीं सुन सकता था और अंत में अमरनाथ गुफा को चुना. चुपचाप, उन्होंने पहलगाम में अपनी नंदी (जिस बैल की वे सवारी करते थे) को छोड़ दिया. चंदनवाड़ी में, उन्होंने अपने बालों (जटाओं) से चंद्रमा (चंद) को मुक्त किया. शेषनाग झील के किनारे उन्होंने सांपों को छोड़ा.
सब कुछ पीछे छोड़कर भोले शंकर ने पार्वती के साथ पवित्र अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और समाधि ली. यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी जीव अमर कथा को सुनने में सक्षम नहीं है, उन्होंने कालाग्नि की रचना की और उसे पवित्र गुफा में और उसके आसपास के सभी जीवित चीजों को खत्म करने के लिए आग फैलाने का आदेश दिया. इसके बाद उन्होंने पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताना शुरू किया. लेकिन संयोगवश कबूतरों के एक जोड़े ने कहानी सुन ली और वह अमर हो गया.
हालांकि पुराणों में इस पवित्र गुफा के अस्तित्व का उल्लेख किया गया है, लेकिन इस पवित्र गुफा की पुन: खोज के बारे में लोगों द्वारा सुनाई जाने वाली लोकप्रिय कहानी एक चरवाहे बूटा मलिक की है. कहानी इस प्रकार है: एक संत ने बूटा मलिक को कोयले से भरा थैला दिया. अपने घर पहुंचने पर जब उसने बैग खोला, तो उसे हैरानी हुई कि बैग सोने के सिक्कों से भरा था.इससे वह खुशी से झूम उठा. वह संत को धन्यवाद देने के लिए दौड़ा.
लेकिन संत गायब हो गए थे. इसके बजाय, उन्होंने वहां पवित्र गुफा और बर्फ शिव लिंगम पाया. उन्होंने ग्रामीणों को इस खोज की घोषणा की. इसके बाद यह तीर्थयात्रा का पवित्र स्थान बन गया. अमरनाथ बोर्ड बनने से पहले बूटा मलिक के वंशज ही अमरनाथ की यात्रा कराते थे.
किवंदती के मुताबिक, ऋषि भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ की खोज की थी. बहुत समय पहले, यह माना जाता है कि कश्मीर की घाटी पानी से डूबी हुई थी और ऋषि कश्यप ने इसे नदियों और नालों की एक श्रृंखला के माध्यम से बहा दिया. नतीजतन, जब पानी निकल गया, तो भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ में शिव के दर्शन किए.
अमरनाथ गुफा की खोज को लेकर ब्रिटिश और चीनी लेखकों ने भी अलग अलग दावे किए हैं. इन सभी दावों में किस दावे में कितनी सच्चाई है यह तो कहना मुश्किल है. लेकिन फिलहाल यह स्थान हिंदू श्रद्धा का एक बड़ा स्थान है.
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