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लंबे समय तक बीजेपी को मजबूत करने वाले अमित शाह अब देश का गृह मंत्रालय संभालेंगे. हालांकि, इस वक्त जो चुनौतियां सामने हैं, उनके बीच शाह की राह आसान नहीं होगी. गृह मंत्री के तौर पर शाह के सामने सबसे ज्यादा चुनौतियां जम्मू-कश्मीर में होंगी. इनमें से एक शुरुआती चुनौती वहां शांतिपूर्वक विधानसभा चुनाव कराने की होगी.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पिछले साल नवंबर में भंग कर दी गई थी. इसके बाद चुनाव आयोग राज्य में चुनाव कराने के लिए गृह मंत्रालय की हरी झंडी का इंतजार कर रहा है.
गृह मंत्री के तौर अमित शाह के सामने सबसे बड़ी चुनौती जम्मू-कश्मीर में शांति कायम करने की होगी. जुलाई 2016 में जब सुरक्षाबलों ने हिज्ब-उल-मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी को मार गिराया था, तभी से वहां पत्थरबाजी और हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. इस बीच मिलिटेंसी का रुख करने वाले राज्य के युवाओं की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हुई है.
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, साल 2013 में जम्मू-कश्मीर में 16 युवा आतंकियों के साथ जुड़े थे. यह संख्या 2016 में बढ़कर 88 तक जा पहुंची. इसके बाद इस संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है. 2017 में जम्मू-कश्मीर के 126 और 2018 में 191 युवा आतंकी संगठनों से जुड़े. पिछले पांच साल में वहां आतंकवादी हमले भी बढ़े हैं.
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की समस्या भी लगातार बढ़ी है. साल 2016 में 119 आतंकियों ने घुसपैठ की थी. 2018 में यह संख्या बढ़कर 143 तक जा पहुंची. घुसपैठ में बढ़ोतरी के बाद राज्य में एनकाउंटर्स की संख्या भी बढ़ी है. ऐसे में जम्मू-कश्मीर के मोर्चे पर शाह के सामने एक साथ कई बड़ी चुनितायां हैं.
शाह के सामने नॉर्थ ईस्ट में दो बड़ी चुनौतियां होंगी. इनमें से एक चुनौती नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) के मोर्चे पर होगी और दूसरी चुनौती हिंसा की घटनाओं में कमी लाने की होगी.
पिछली सरकार का दावा है कि उसने नॉर्थ ईस्ट में हिंसा की घटनाओं पर लगाम लगाई है, लेकिन नागा पीस अकॉर्ड का पूरा होना अभी भी बाकी है. पिछले कुछ समय में NSCN-IM के सदस्यों और सुरक्षाबलों के बीच कई बार झड़पे हुई हैं.
नॉर्थ ईस्ट में पिछले कुछ समय से NRC के मुद्दे पर विवाद जारी है. NRC की प्रक्रिया में एक भी भारतीय बाहर ना हो, इसकी जिम्मेदारी गृह मंत्रालय पर ही है. इस तरह नॉर्थ ईस्ट में अमित शाह की राह बिल्कुल भी आसान नहीं दिख रही.
देश में नक्सलवाद भी एक गंभीर समस्या है. पिछले कुछ सालों में अलग-अलग जगह कई नक्सली हमले हुए हैं. इनमें से ज्यादातर हमले सुरक्षाबलों को निशाना बनाकर किए गए.
ऊपर दिए गए आंकड़ों से नक्सलवाद की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे में नक्सवाद से निपटना भी अमित शाह के सामने एक बड़ी चुनौती होगी.
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