भारतीय सेना में वो होने जा रहा है, जो अब तक कभी न हुआ

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है, जो आर्म्ड फोर्सेज में लैंगिक भेदभाव को दूर करने की दिशा में कारगर कदम होगा.

अभय कुमार सिंह
भारत
Updated:
भारतीय सेना में वो होने जा रहे हैं, जो अब तक कभी न हुआ
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भारतीय सेना में वो होने जा रहे हैं, जो अब तक कभी न हुआ
(फोटो: कामरान अख्तर/ क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

21वीं सदी चल रही है, गाहे-बगाहे हर रोज कोई महिला-पुरुष भेदभाव वाली बात आप सुन ही लेते होंगे. गांव-कूंचे से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियां जो खुद को बड़ा प्रोग्रेसिव बताती हैं, वहां भी ये पुरुष-महिला वाला भेदभाव दिख ही जाता है. अब 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है, जो आर्म्ड फोर्सेज में लैंगिक भेदभाव को दूर करने की दिशा में कारगर कदम होगा. अब सेना में काम कर रही सभी महिलाओं को परमानेंट कमीशन दी जाएगी.

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परमानेंट कमीशन- शॉर्ट सर्विस कमीशन

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि तीन महीने के भीतर सारी ऐसी महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन दिया जाये. परमानेंट कमीशन का मतलब है कि महिलाएं रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में काम कर सकती हैं. या फिर अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ सकती हैं. शॉर्ट सर्विस कमीशन में ये महिला अधिकारी सिर्फ 14 साल के लिए ही सेवा दे पाती थीं. वो पेंशन के लिए भी एलिजिबल नहीं हो पाती थीं.

सोच बदलने की जरूरत है: सुप्रीम कोर्ट

अब सोचिए कि जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार की इस दलील को विचलित करने वाला और समता के सिद्धांत के उलट बताया जिसमें कहा गया था कि शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन को देखते हुए कमांड पदों पर नियुक्ति नहीं की जा रही. बेंच ने कहा है आर्म्ड फोर्सेज में लैंगिक भेदभाव खत्म करने के लिये सरकार को अपनी सोच बदलनी होगी. कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को काबिलियत के हिसाब से कमांड पद भी मिले. ये समझ लेना चाहिए कि ये जो आदेश आया है वो 10 डिपार्टमेंट के लिए है, सीधा युद्ध वाले विंग के लिए नहीं है..मतलब कॉम्बैट के लिए नहीं है.

केंद्र सरकारी की दलील क्या थी?

केंद्र सरकार ने ये भी दलील दी थी कि सेना में ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले पुरुषों की बड़ी संख्या है, जो अभी भी यूनिट्स की कमांड में महिला अधिकारियों को स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क पर कहा कि मानसिकता में बदलाव की जरूरत है और अगर इच्छाशक्ति तो सब कर पाना मुमकिन है..मतलब सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मानसिकता बदलने की जरूरत है.

मामले की शुरुआत कैसे हुई?

साल 2010 में हाईकोर्ट ने शॉर्ट सर्विस कमीशनके तहत आने वाली महिला सैन्यकर्मियों को परमानेंट कमीशन देने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ केंद्र सरकार कोर्ट में गया. मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया. फैसले पर कोई रोक नहीं लगी.

बाद में 25 फरवरी 2019 में सरकार ने ये फैसला लिया कि शॉर्ट सर्विस कमीशन में आई महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन दिया जाएगा.इसमें एक पेंच था कि ये फायदा मार्च 2019 के बाद से सेवा में आने वाली महिला अधिकारियों को ही मिलेगा.मतलब कि बहुत सारी वो महिलाएं जो परमानेंट कमीशन के लिए लड़ रही थीं वो ही इस फायदे से वंचित हो गईं. कोर्ट में इसी बात की कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही थी.

कमांड के हक पर महिला अधिकारियों ने क्या कहा?

दूसरी लड़ाई थी कमान्ड की महिलाओं को भी कमान्ड का हक मिले. भारतीय सेना मे सेवारत महिला अधिकारियों ने शारीरिक संरचना के आधार पर उन्हें कमांड का पद देने से दूर रखने की केन्द्र की दलील पर जवाब देते हुये कहा था कि यह नजरिया उलटा ही नहीं बल्कि रिकार्ड और आंकड़ों के भी उलट है. महिला अधिकारियों ने अपने लिखित जवाब में केन्द्र की दलीलों पर कहा था कि वो 27-28 सालों से 10 युद्ध सहायक ब्रांच में सेवायें दे रहीं हैं और उन्हें गोलाबारी के बीच भी अपने दृढ़ निश्चय और साहस का परिचय दिया है. बता दें कि इस समय सेना में 1,653 महिला अधिकारी है जो सेना में कुल अधिकारियों का 3.89 फीसदी है.

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Published: 17 Feb 2020,10:49 PM IST

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