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सोमवार, 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की एक संवैधानिक पीठ जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को हटाए जाने से जुड़ी याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 को हटाये जाने का केंद्र का फैसला बरकरार रखा. अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम (J&K Reorganisation Act 2019) के तहत सूबे में कई साल से लागू आर्टिकल 370 खत्म कर दिया गया था. इसी के साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया. केंद्र सरकार के इस कदम को चुनौती देते हुए कुछ याचिकाएं दायर की गई थीं, जिस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.
अगस्त 2019: भारतीय संसद के दोनों सदनों से जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 पारित किया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक आदेश जारी करते हुए अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया. इसके बाद जम्मू और कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा हटा दिया गया. जारी किए गए आदेश के बाद अनुच्छेद 370 के भाग-1 को छोड़कर सभी प्रावधान खत्म हो गए. अनुच्छेद 370 के भाग-1 में कहा गया है कि भारत का संविधान जम्मू और कश्मीर राज्य में लागू होगा.
9 अगस्त 2019: भारतीय संसद के द्वारा पारित किए गए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 के मुताबिक जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया. इस दौरान फैसला लिया गया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में एक विधानसभा होगी और लद्दाख में नहीं होगी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पुनर्गठन से केंद्र शासित प्रदेश में पर्यटन, विकास और उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा.
28 अगस्त 2019: पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे और जस्टिस अब्दुल नज़ीर की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने आदेश की संवैधानिकता पर दलीलें सुनना शुरू किया. दो दिनों की बहस के बाद बेंच ने मामले को आगे विचार के लिए संविधान पीठ के पास भेजना जरूरी समझा.
2020- सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच को सौंपने से इनकार किया: शाह फैसल बनाम भारत संघ मामले में, पूर्व चीफ जस्टि एन.वी. रमना की अगुआई में पांच जजों- जस्टिस एस.के. कौल, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने मामले को बड़ी बेंच को सौंपने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि प्रेम नाथ कौल, संपत प्रकाश और मकबूल दमनू के फैसलों के बीच विरोधाभास मौजूद है. उन्होंने तर्क दिया कि प्रेम नाथ कौल ने राष्ट्रपति द्वारा अपनी शक्तियों का प्रयोग करने से पहले संविधान सभा की मंजूरी की जरूर स्थापित की और एक बार संविधान सभा भंग होने के बाद, राष्ट्रपति की शक्तियां भी खत्म हो गईं. संपत प्रकाश और मकबूल दमनू के बाद के फैसलों ने संविधान सभा भंग होने के बाद भी राष्ट्रपति के आदेशों की वैधता को बरकरार रखते हुए सीधे तौर पर प्रेम नाथ के फैसले का खंडन किया.
बेंच ने इन दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रेम नाथ और संपत प्रकाश की परिस्थितियों में बुनियादी अंतर है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि प्रेम नाथ कौल ने संविधान सभा के विघटन के बाद अनुच्छेद 370 की प्रासंगिकता के सवाल को संबोधित नहीं किया, जो इसे बाद के मामलों से अलग बनाता है.
03 जुलाई 2023: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की चुनौती को मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक नई संविधान पीठ को सौंप दिया. चंद्रचूड़ के साथ-साथ जस्टिस एस.के. कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत बेंच का हिस्सा हैं. ये सभी सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जजों में जज हैं.
नई बेंच में पूर्व चीफ जस्टिस एन.वी. रमना और जस्टिस सुभाष रेड्डी की जगह चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना को नियुक्त किया गया.
11 जुलाई 2023: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 11 जुलाई को संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए एक रोडमैप तैयार किया. चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि राष्ट्रपति के आदेश के लगभग चार साल बाद 2 अगस्त, 2023 को मामले पर सुनवाई शुरू होगी.
बेंच ने याचिकाकर्ताओं, उत्तरदाताओं और हस्तक्षेपकर्ताओं को 27 जुलाई तक सभी दस्तावेज, संकलन और लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करने का निर्देश दिया. बेंच ने कहा कि सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर, सुनवाई 2 अगस्त से हर रोज होगी.
05 सितंबर 2023: 16 दिनों से ज्यादा वक्त तक चली सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और फैसले की तारीख 11 दिसंबर तय की गई.
11 दिसंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा...
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2019 में पूर्ववर्ती राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करना एक अस्थायी कदम था.
कोर्ट केंद्र को राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया.
"अनुच्छेद 370 को तब तक अस्थायी माना जाता था, जब तक कि 1951 से 1957 तक अस्तित्व में रही जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने इसे निरस्त करने के बारे में फैसला नहीं ले लिया. चूंकि कोई फैसला नहीं लिया गया, इसलिए यह स्थायी हो गया. इसके बाद, अनुच्छेद 370 में बदलाव के लिए कोई संवैधानिक प्रक्रिया नहीं बची थी और अगर इसमें कोई बदलाव किया जा सकता था तो केवल राजनीतिक प्रक्रिया के जरिए से ही किया जा सकता था."
"क्या संसद संशोधन करने के लिए संविधान सभा की भूमिका निभा सकती थी? संसद खुद को संविधान सभा नहीं बदल सकती थी. यह फैसला राजनीति से प्रेरित था और संविधान के साथ धोखाधड़ी थी."
"जम्मू-कश्मीर का ऐतिहासिक रूप से संघ के साथ एक अनोखा रिश्ता रहा है. जम्मू-कश्मीर और संघ के बीच कोई विलय समझौता नहीं था, बल्कि केवल विलय पत्र (IoA) था. इसलिए संप्रभुता का कोई हस्तांतरण नहीं है और राज्य की स्वायत्तता बनाए रखनी होगी."
"अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बनाने की संसद की ताकत के संबंध में सीमाएं प्रदान कीं. सूची I (संघ सूची) या सूची III (समवर्ती सूची) के किसी विषय पर कानून बनाने के लिए, जो IoA द्वारा कवर नहीं किया गया है, राज्य सरकार की सहमति जरूरी है, जिसका मतलब है मंत्रिपरिषद के जरिए राज्य के लोगों की सहमति."
"जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधानसभा को भंग नहीं कर सकते थे."
"'नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में बदलाव' से संबंधित अनुच्छेद 3 का प्रावधान, राष्ट्रपति के लिए किसी राज्य के पुनर्गठन के लिए विधेयक को विधान मंडल के समक्ष संदर्भित करना जरूरी बनाता है लेकिन पुनर्गठन विधेयक पेश करने से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति नहीं ली गई. किसी राज्य को खत्म करके केंद्रशासित प्रदेश में नहीं बदला जा सकता है. यह सभी सिद्धांतों के खिलाफ है."
"अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोड़ता है. यह केंद्र का मामला नहीं है कि उसने पिछले सात दशकों से काम नहीं किया है. यह दिखाने के लिए कोई उदाहरण नहीं है कि यह फेल रहा और इसलिए यह समझ से परे है कि इसे रातों-रात क्यों खत्म किया गया. केंद्र के सामने सिर्फ एक वजह बीजेपी का 2019 का चुनाव घोषणापत्र था, जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का वादा किया गया था."
केंद्र सरकार ने कहा कि "जिस तरह से राष्ट्रपति ने ऐलान किया, वह संविधान के साथ धोखाधड़ी नहीं थी. सब कुछ प्रक्रिया के तहत किया गया."
"जम्मू-कश्मीर के पूर्ववर्ती राज्य ने विलय के बाद अपनी संप्रभुता को पूरी तरह से भारत संघ को सौंप दिया था."
"25 नवंबर, 1949 को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक हरि सिंह के पुत्र करण सिंह द्वारा जारी उद्घोषणा में कहा गया था कि भारत सरकार अधिनियम- 1935 (जो तब तक जम्मू-कश्मीर और भारत के प्रभुत्व के बीच संवैधानिक संबंधों को नियंत्रित करता था) निरस्त कर दिया जाएगा."
"भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए गठित संविधान सभा के खिलाफ, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा एक पूर्ण संविधान सभा नहीं थी क्योंकि उस वक्त तक संप्रभुता का विलय पहले ही हो चुका था. दो संविधान नहीं हो सकते. इससे यह बात साफ होती है कि अनुच्छेद 370(3) में "संविधान सभा" शब्द को केवल 'विधानसभा' के रूप में पढ़ा जा सकता है."
"जम्मू-कश्मीर के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा अस्थायी है, लेकिन राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कोई विशेष समयसीमा नहीं दी जा सकती. ऐसा उन अजीबोगरीब परिस्थितियों की वजह से है, जिनसे राज्य दशकों से लगातार अशांति से गुजर रहा है."
"अगर अनुच्छेद 370, 1957 के बाद स्थायी हो गया, तो फिर इसे संविधान के भाग XXI में क्यों रखा गया जो "अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधानों" से संबंधित है? अगर यह स्थायी हो गया, तो क्या इसका मतलब यह है कि मूल संरचना के अलावा संविधान का एक प्रावधान है, जो संसद की संशोधन शक्ति से भी परे है?"
"अनुच्छेद 370 का उप-खंड 3 एक ऐसी प्रक्रिया की परिकल्पना करता है. जिसके द्वारा इसे रद्द किया जा सकता है. इस तरह यह प्रस्ताव करना बहुत मुश्किल है कि अनुच्छेद 370 का कैरेक्टर इतना स्थायी है कि इसमें कभी भी संशोधन नहीं किया जा सकता है."
"संवैधानिक लोकतंत्र में, स्थापित संस्थानों के जरिए लोगों की राय मांगी जाती है. हमारे जैसे संविधान में जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है."
"क्या यह तथ्य कि संसद, कानून बनाते समय राज्य सूची की किसी विषय को नहीं छू सकती, इस तथ्य से पीछे हटती है कि इन सभी राज्यों ने संप्रभुता भारत के प्रभुत्व को सौंप दी है? कानून बनाने की शक्ति पर रोक संविधान की योजना में निहित है."
"यह तर्क कि 1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व खत्म होने के बाद अनुच्छेद 370 स्थायी हो गया, समय-समय पर संविधान (आवेदन) आदेश जारी करने, तत्कालीन राज्य के संबंध में संविधान को संशोधित करने की प्रथा से गलत साबित होता है."
""क्या हमें राष्ट्र के संरक्षण के हित में, संसद को एक निश्चित अवधि के लिए यह मानने की छूट नहीं देनी चाहिए कि यह विशेष राज्य इस स्पष्ट समझ के साथ, केंद्र शासित प्रदेश के दायरे में चला जाएगा और बाद में एक राज्य का दर्जा दिया जाएगा?"
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