Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019एक असाधारण स्कूलमेट प्रिय अरुण जेटली को मेरी श्रद्धांजलि

एक असाधारण स्कूलमेट प्रिय अरुण जेटली को मेरी श्रद्धांजलि

स्कूल में अरुण जेटली हर किसी के हीरो थे

राघव बहल
भारत
Updated:
स्कूल में अरुण जेटली हर किसी के हीरो थे
i
स्कूल में अरुण जेटली हर किसी के हीरो थे
(Altered by The Quint)

advertisement

स्कूल में अरुण जेटली हर किसी के हीरो थे. राज निवास मार्ग, दिल्ली के सेंट जेवियर्स में वो मेरे 9 साल सीनियर थे. हम उस वक्त निकर्स पहनने की उम्र में ही थे, जब वो वाद-विवाद में हर प्रतिस्पर्धी को धूल चटा रहे थे. जब हम पैंट पहनने की उम्र में आए और सीनियर स्कूल में गए, तब हमने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में उनके कारनामों के बारे में सुना. जब वो आपातकाल के दौरान गिरफ्तार हुए, हम दबी जुबान में, लेकिन गर्व के साथ कहा करते थे कि वो “हममें से एक” हैं.

मुझे ठीक से याद नहीं कि उन्हें मेरे बारे में कैसे पता चला, या मैं कब पहली बार उनसे मिला. मैं स्कूल स्टूडेंट्स काउंसिल का प्रेसिडेंट बन गया था और जेटली ओल्ड स्टूडेंट्स एसोसिएशन में काफी सक्रिय थे. मेरा अनुमान है कि उन्हें मेरे बारे में तब पता चला होगा जब मैं उनके नक्शेकदम पर चलते हुए सारी वाद-विवाद प्रतियोगिताओं को जीत रहा था, जिन्हें वो अपने समय में जीता करते थे. जल्दी ही हम एक-दूसरे को पहले नाम से जानने-पहचानने लगे थे. वो हमेशा ही मुझसे एक चौड़ी मुस्कान के साथ मिला करते थे.

1980 के दशक के आखिरी में, मैं न्यूजट्रैक का को-एंकर/रिपोर्टर बन गया था, जो इंडिया टुडे की शुरू की गई वीडियो-मैगजीन थी. उन दिनों बोफोर्स घोटाला सबसे बड़ी खबर हुआ करती थी. खासकर न्यूजट्रैक पर क्योंकि दूरदर्शन पर सरकार की बंदिशें थीं.

वीपी सिंह के बोफोर्स विरोधी अभियान में अरुण जेटली एक सक्रिय सहयोगी थे. 1989 में जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री चुने गए थे, अरुण जेटली सबसे कम उम्र के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बने थे और वो बोफोर्स जांच के सीधे प्रभारी भी थे. उन सालों के दौरान, न्यूजट्रैक के पत्रकारों के लिए जेटली एक भरोसेमंद स्रोत थे.

मुझे याद है मैं उनसे कालकाजी के बालाजी इस्टेट में टीवी 18 के बेसमेंट स्टूडियो की सीढ़ियों पर टकरा गया था (ये 90 के दशक के मध्य की बात है, जबतक मैंने न्यूजट्रैक छोड़ दिया था और अपना टेलीविजन न्यूज आउटफिट लॉन्च कर चुका था).

“हलो अरुण, आपको देखकर अच्छा लगा, किस वजह से यहां आए हैं आप?” मैंने पूछा.

उन्होंने कहा“मैं परंजय के साथ रिकॉर्डिंग के लिए आया था” (परंजय गुहा ठाकुरता एबीएन इंडिया पर हमारे शो इंडिया टॉक्स की एंकरिंग कर रहे थे).

मैंने उन्हें अपने दफ्तर में चाय पीने के लिए बुलाया और अरुण राजनीतिक गपशप का कोई मौका कैसे छोड़ सकते थे!

इसके बाद जल्दी ही, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजेपी की अगुवाई वाली पहली सरकार बनाई. अरुण जेटली उनके कैबिनेट के सबसे होशियार सहयोगियों में थे, जिन्होंने सूचना और प्रसारण से लेकर विनिवेश, कानून और जहाजरानी मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली.

एयर इंडिया की उड़ान में राजनीतिक चर्चा

उनके साथ मेरी अगली मुलाकात यादगार थी. मैं न्यूयॉर्क जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट में बिजनेस क्लास के ऊपरी डेक पर था. केबिन में जेवियर का एक पुराना सहपाठी था. (एक नौजवान, होनहार डॉक्टर) जो मुझसे कुछ साल जूनियर था. मैंने पूछा“हैलो, न्यूयॉर्क क्यों जा रहे हो, ”

उसने कहा,“मैं अरुण जेटली की ऑफिशियल ट्रिप पर डॉक्टर की हैसियत से साथ जाता हूं. उनकी पत्नी उन्हें मेरे बगैर यात्रा नहीं करने देतीं, क्या पता उन्हें तुरंत किसी इलाज की जरूरत पड़ जाए”.

जैसा कि सबको पता था, अरुण जेटली डायबिटीज से गंभीर रूप से ग्रस्त थे और साथ ही वो गरिष्ठ भोजन के शौकीन भी. वो जेवियर में पढ़े लोगों को काफी बढ़ावा देते थे, अपने साथ जाने वाले डॉक्टर को चुनने से भी कहीं ज्यादा. सालों बाद, एक सहपाठी आईएएस अफसर ने मुझसे फोन करके पूछा कि क्या मैं अरुण जेटली से “उसकी सिफारिश कर सकता हूं, क्योंकि वो उस नौकरी के लिए उम्मीदवार है जिसका अंतिम फैसला अरुण को करना है”.

मैंने उसे कहा कि वोसीधा अरुण से बात करे और अपने जेवियर से पढ़े होने की बात कहे”. उसे नौकरी मिल गई! “वाह, तब तो अरुण फर्स्ट क्लास में जरूर होंगे,” मैंने कहा और फिर मैं ऊंघने लगा.

जब मैंने अपनी आंखें खोलीं, अरुण जेटली सामने की कतार से झुके हुए दिख रहे थे. “हैलो, डॉक्टर ने मुझे बताया कि तुम भी फ्लाइट में हो, तो मैं आ गया. मैं फर्स्ट क्लास में ऊब रहा था”, उन्होंने कहा और मेरे पास बैठे यात्री से आग्रह किया कि वो आगे चले जाए. हमने उस दिन एक घंटे तक राजनीतिक गपशप का मजा लिया.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कुछ महीनों बाद, मेरा उनके एक सहयोगी मंत्री से भयानक मनमुटाव हो गया. किसी वजह से, वो सज्जन मेरे विरोध में हो गए थे. मैंने जेटली से सलाह मांगी. हम कानून मंत्रालय में मिले. वहां वो एक ट्वीड जैकेट और भूरी पतलून पहने, कार्यकर्ताओं और सिफारिशी लोगों से घिरे हुए थे और काम में व्यस्त थे. उन्होंने मुझे अपने सामने बैठने कहा और वो एक साथ कई याचिकाकर्ताओं का काम निपटाने में लगे रहे. बीच-बीच में, उन्होंने मेरी दिक्कत सुनी. जब मैंने अपनी बात खत्म कर ली, उन्होंने कहा, “हां, ये आदमी असामान्य रूप से लड़ने में लगा है. मैं तुम्हारी दिक्कत दूर करने के लिए उससे बात करूंगा”.

मैं नहीं जानता कि अरुण ने उस नाराज सहयोगी से कभी बात की या नहीं, लेकिन वो सज्जन मेरे साथ पहले की तरह विरोध में बने रहे.

लाइफटाइम जेवियरियन और नकली डॉक्टर्स!

23 दिसंबर 2009 को सेंट जेवियर्स स्कूल ने अपने असाधारण पुराने छात्रों को सम्मानित करने का फैसला किया. मैं अरुण जेटली की ही श्रेणी (यानी सबसे ऊंची) में होने की वजह से खुश था. हमें “लाइफटाइम अचीवमेंट्स” के लिए सम्मानित किया गया था, जबकि दूसरे लोग “असाधारण उपलब्धियों” वाली श्रेणी में थे.

स्वाभाविक रूप से अरुण को उनकी राजनीतिक उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया था, जबकि मुझे एक मीडिया उद्यमी के रूप में काम के लिए. हम दोनों को कपिल सिब्बल से प्रमाण पत्र/मेडल्स मिले, जो उस वक्त स्थानीय सांसद और उस दिन के मुख्य अतिथि थे.

जब अरुण जेटली राजनीतिक सीढ़ी पर ऊपर चढ़ते चले गए और मैं पूंजी बाजार में जायदाद बनाने के रास्ते पर चलता गया, हमारी मुलाकातें घटती गईं और ज्यादा औपचारिक होती गईं. समय बीतते जाने के साथ कभी, स्वाभाविक रूप से, मैंने उन्हें उनके पहले नाम से बुलाना बंद कर दिया. अब वो एक अधिक सम्मानित और औपचारिक “अरुण जी” हो गए थे. लेकिन मैं हमेशा उनके लिए राघव था.

2011 के करीब, मुझे एमिटी यूनिवर्सिटी से फोन आया कि वो मुझे डॉक्टरेट की मानद उपाधि देना चाहते हैं. मैं हमेशा से ऐसी दिखावटी उपाधियों को संदेह (यहां तक की निंदा) की नजर से देखता था. लेकिन जब मुझे पता चला कि अरुण जेटली भी सम्मान पाने वालों की लिस्ट में हैं, तो मैंने प्रस्ताव खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.

मैं इस बात से खुश हो रहा था कि अरुण के शानदार प्रोफाइल का थोड़ा असर मुझ पर भी दिख रहा है. जब हम समारोह वाले दिन मिले, वो हमेशा की तरह आकर्षक और बातूनी दिख रहे थे.

उन्होंने कहा, “अरे, तुम्हारे ईटीवी और रिलायंस करार की खूब चर्चा हो रही है; आओ, यहां कोने में बैठते हैं, और तुम मुझे इसके बारे में बताओ”. और जल्दी ही, जब डॉक्टर आर ए माशेलकर भी आ गए, अरुण ने छूटते ही कहा, “अब आए हैं असली डॉक्टर; राघव और मैं तो नकली हैं, मानद उपाधि ले रहे हैं!” वो काफी मुंहफट हो जाते थे.

हमारी आखिरी मुलाकात

दो साल पहले, मेरी उनसे आखिरी मुलाकात सबसे महत्वपूर्ण थी. हमारे एक पत्रकार पर सरकार ने ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत आरोप दर्ज किए थे. वैसे तो एफआईआर काफी सतही थी, जिन धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे वो गंभीर थे. सामाजिक रूप से जागरूक मेरे सहकर्मी को परेशान करने के लिए पुलिस के पास काफी मौके थे. मैं एक बार फिर सलाह के लिए अरुण जी के पास पहुंचा. वो मुझसे एक शनिवार दोपहर के पहले अपने घर पर बनाए एक पोर्टेबल केबिन में मिले, जो उनका दफ्तर था.

मोदी सरकार में उनका क्या महत्व था, इसे उनके आवास परिसर में लगी कारों की तादाद और बंदूकें ताने खड़े ब्लैक-कैट कमांडोज को देखकर समझा जा सकता था. मैंने करीब एक घंटे तक इंतजार किया जब तक कि उनसे मिलने वाले सारे लोग चले नहीं गए. “साहब ने कहा है कि राघव जी को आखिरी में भेजना, ताकि जल्दबाजी ना रहे”, उनके सहायक ने सफाई दी, जब मैं वेटिंग रूम में इंतजार कर रहा था.

तो राघव, क्या हुआ? हमेशा की तरह परेशानी”, उन्होंने सिर झुकाए हुए कहा, जब उनके सहयोगी ने उनकी आंखों में दवा डाली. “मैंने अभी हाल ही में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराया था”, उन्होंने बताया. एक दूसरे सहयोगी ने उनके सामने सफाई से कटे हुए कॉटेज चीज और अंडे के सफेद हिस्सों के टुकड़े रखे, सभी झक्क सफेद थे. “किडनी ऑपरेशन के बाद से मुझे ये प्रोटीन लेना होता है.”

उन्होंने बताया, हालांकि मैंने पूछा नहीं था. और फिर उन्होंने उस सहायक को झिड़का जिसने उनकी आंखों में दवा डाली थी. “तुमने पिछले मुलाकाती को वक्त क्यों दिया. तुम हर ऐरे-गैरे को आकर मुझसे मिलने नहीं दे सकते. किस आधार पर उस बदमाश को वक्त दिया गया था?” वो बरस पड़े. डांट खाने के बाद वो सहायक बेकार की कोई सफाई दे ही रहा था कि जेटली ने उसे अपना हाथ हिलाकर बाहर निकल जाने का इशारा कर दिया.

अब जबकि मैं उनके साथ अकेला था, मैंने अपनी परेशानी धारा प्रवाह सुना दी. उन्होंने थोड़ा चौंकते हुए मेरी तरफ देखा. “वक्त बर्बाद बिलकुल मत करो. एक अच्छा वकील करो और इस एफआईआर को अदालत में चुनौती दो. तुम्हें राहत मिलेगी. ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट्स से जुड़ी चीज इतनी लापरवाही से नहीं की जा सकती”. लेकिन फिर उनका लहजा डांटने वाला हो गया. “लेकिन राघव, तुम लोगों ने किया क्या... सच में, मेरे विचार से तो ये राघव के स्तर का नहीं था”. उन्होंने मुझे अभी-अभी डांटा था, लेकिन साथ ही बड़ी तारीफ भी की थी. मैं नहीं जानता था कि क्या प्रतिक्रिया दूं. मैं बच गया क्योंकि उन्हें फोन आया कि एक विदेशी मेहमान के साथ दोपहर के भोजन पर मुलाकात के लिए उन्हें तुरंत हैदराबाद हाउस के लिए निकलना होगा.

असाधारण अरुण जी के साथ वो मेरी आखिरी मुलाकात थी. आपको उन्हें श्रेय देना होगा. उन्होंने डायबिटीज, बैरियाट्रिक सर्जरी, किडनी ट्रांसप्लांट और उस आखिरी बीमारी से लड़ाई की, जिसने उन्हें हरा दिया. इस दौरान वो डटे रहे, संसद, प्रेस कॉन्फ्रेंस और टेलीविजन पर काम करते रहे, बात- हंसी-मजाक करते रहे और अपनी प्रिय बीजेपी सरकार के रुख की मदद, बचाव और प्रचार-प्रसार करते रहे. उनकी बातें बौद्धिक रूप से अकाट्य थीं और वो काम करने में कभी थकते नहीं थे.

भगवान आपकी आत्मा को शांति दे अरुण जी. मैं ये दावा नहीं कर सकता कि मैं आपका दोस्त था, या सहकर्मी या सहयोगी. मैं हमेशा से जेवियर स्कूल का साथी था जिससे आप मुस्कुराकर मिलते थे. शुक्रिया. स्वर्ग में आपको भगवान का आशीर्वाद मिले.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 24 Aug 2019,03:57 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT