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इन तमाम खासियतों को एक साथ मिलाने पर जो शानदार शख्सियत बनती है, उसका नाम था अरुण जेटली. 24 अगस्त 2019 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में जेटली ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
देश के नामी-गिरामी वकीलों में शुमार जेटली को बीजेपी में ‘संकटमोचक’ की अघोषित पदवी हासिल थी. अगर पिछली एनडीए सरकार की बात करें तो, जीएसटी जैसे जटिल मसले पर विपक्ष से समर्थन लेना हो या फिर विपक्ष के किसी नेता से कोई ‘बैक डोर’ गोलबंदी करनी हो, जेटली के पास हर मर्ज की दवा रहती थी.
जेटली के आलोचक उन्हें इस बात पर घेरते थे कि पॉलिटिक्स में उनका कोई ‘मास-बेस’ नहीं था. 2014 की मोदी लहर में भी वो अमृतसर से चुनाव हार गए थे.
बीजेपी के नजरिए से जेटली का दूसरा कमजोर पक्ष था संघ परिवार से नजदीकी ना होना. मंत्रालय के गठन से लेकर चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति तक, हर अहम फैसले के वक्त दिल्ली में बीजेपी के अशोक रोड हेडक्वार्टर पर ये फुसफुसाहट रहती थी कि नागपुर से फरमान जेटली जी के खिलाफ आएगा. लेकिन इसके बावजूद बीजेपी की हर नैया के खेवैया वही रहे.
26 मई, 2014 को जब नरेंद्र मोदी की पहली कैबिनेट ने शपथ ली तो जेटली को दो अहम मंत्रालय सौंपे गए- फाइनेंस और डिफेंस. गौर कीजिए कि वो चुनाव हारे हुए नेता थे. इसके बावजूद ‘रायसीना हिल्स’ के चार अहम मंत्रालयों में से दो उन्हें सौंप दिए गए.
अरुण जेटली यूपीए सरकार के वक्त राज्यसभा में विपक्ष के नेता और एनडीए सरकार के वक्त सदन के नेता रहे. किसी भी बिल पर बहस के दौरान संवैधानिक दांव-पेंच पर जेटली के तर्क विपक्ष का मुंह बंद कर देते थे.
देश-दुनिया को तेल के बढ़ते दामों का ग्लोबल कॉन्टेक्सट समझाने, जटिल राफेल डील को आसान शब्दों में बताने, दो दशकों से लटके जीएसटी जैसे विधेयक पास करवाने जैसे कई काम हैं जिनके लिए शायद पार्टी ने कहा होगा- जेटली है तो मुमकिन है. तीन तलाक जैसे संवेदनशील बिल पर भी जेटली की कलाकारी सरकार का हथियार बनी.
पीएम नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली बेहद करीबी रहे. 1990 के दशक में अपने दिल्ली प्रवास के दौरान नरेंद्र मोदी अक्सर जेटली के घर जाते थे. उन दिनों दोनों में गहरी दोस्ती थी. हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में खुद मोदी ने कहा था कि उन्हें दिल्ली के जायके के बारे में जेटली से ही पता चलता था.
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मोदी के पीएम पद तक पहुंचने में जेटली का अहम योगदान रहा. 2002 के गुजरात दंगों के बाद पीएम मोदी (उस वक्त के सीएम, गुजरात) के तमाम कानूनी पचड़ों को (वकील) अरुण जेटली ने निपटाया. 2002 के गुजरात दंगों के बाद जेटली मोदी के पक्ष में अटल बिहारी वाजपेयी के भी खिलाफ खड़े हो गए थे. मीडिया में भी गुजरात दंगों की मरहम-पट्टी जेटली की ‘डॉक्टरी’ का कमाल थी.
हाल के महीनों तक बीजेपी कवर करने वाले पत्रकारों में एक जुमला बड़ा मशहूर था- ‘जेटली जी की क्लास’. पार्टी दफ्तर से लेकर संसद और नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्री के ऑफिस तक, जेटली के कमरे में लगने वाला पत्रकारों का जमावड़ा कई सालों से पॉलिटिक्ल जर्नलिस्ट्स की सूत्र पत्रकारिता का केंद्र रहा. मीडिया, ज्यूडिशयरी और कॉर्पोरेट की तिकड़ी में किसी एक नेता की उतनी पैठ नहीं होगी जितनी अरुण जेटली की. ये बात उन्हें नेता, प्रशासक और वकील के तौर पर बेहद मजबूत शख्सियत बनाती थी. वो महंगे पेन, घड़ियों और कारों के भी शौकीन थे.
पिछले कुछ महीनों में अरुण जेटली के ब्लॉग इतने चर्चित हुए कि उन्हें ‘ब्लाग मिनिस्टर’ कहा जाने लगा. वकालत का तजुर्बा, भाषा की नफासत और तीखी तकरीरों से बुने उनके ब्लॉग ‘मोदी विरोधियों’ के खिलाफ बारूद का काम करते हैं. मार्च, 2019 में उन्होंने ‘एजेंडा 2019’ के नाम से दस ब्लॉग्स की एक सीरीज लिखी, जिसमें उन्होंने सिक्योरिटी, करप्शन, गठबंधन, वंशवाद, इकनॉमी,कृषि, जीएसटी जैसे तमाम मुद्दों पर मोदी सरकार के पक्ष में दलीलें पेश कीं.
पिछले डेढ़ साल से तबियत ने संसद और मंत्रालय में उनकी सक्रियता भले कम कर दी थी, लेकिन सोशल मीडिया पर वो लगातार और ताल ठोंककर पार्टी और सरकार की वकालत करते रहे. जाहिर तौर पर संसद की सियासत से कानून की अदालत तक अरुण जेटली की कमी सबको खलेगी.
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Published: 24 Aug 2019,02:37 PM IST