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अरुंधति रॉय समेत 600 हस्तियों ने लिखा लेटर, कहा- विभाजनकारी है CAB

600 से भी अधिक बड़े हस्तियों ने नागरिकता संशोधन बिल (CAB) को वापस लेने के लिए पीएम मोदी को पत्र लिखा है. 

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नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ प्रदर्शन
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नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ प्रदर्शन
(फोटो: The Quint)

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600 से भी ज्यादा हस्तियों ने नागरिकता संशोधन बिल (CAB) को वापस लेने के लिए पीएम मोदी को पत्र लिखा है. उन्होंने अपील किया है कि सरकार नागरिकता (संशोधन) बिल को वापस लें. जिसमें गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को 'असंवैधानिक' के रूप में शामिल किया जा रहा है.

पीएम से अपील करनेवालों में कलाकार, लेखक और पूर्व न्यायाधीश जैसे शख्सियत शामिल हैं.

अपील पर हस्ताक्षर करनेवालों में लेखक नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी, अरुंधति रॉय, पॉल जाचरिया, अमिताव घोष और शशि देशपांडे जैसे बड़े नाम शामिल हैं. टीएम कृष्णा, अतुल डोडिया, विवान सुंदरम, सुधीर पटवर्धन, गुलमोहम्मद शेख और नीलिमा शेख जैसे कलाकार के साथ ही अपर्णा सेन, नंदिता दास और आनंद पटवर्धन जैसे फिल्मकार भी शामिल हैं.

इसके अलावा इस लिस्ट में रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, रामचंद्र गुहा, गीता कपूर, अकील बिलग्रामी और जोया हसन, हर्ष मंदर, अरुणा रॉय और बेजवाडा विल्सन जैसे कार्यकर्ता शामिल हैं. (सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति एपी शाह, योगेंद्र यादव, जीएन देवी, नंदिनी सुंदर और वजाहत हबीबुल्लाह ने भी पीएम से अपील की है.

नागरिकता (संशोधन) बिल, 2019 भारत की समावेशी, समग्र दृष्टि की धज्जियां उड़ा रहा है, जिससे भारत को स्वतंत्रता संग्राम में मार्गदर्शन मिला था.
625 हस्तियों ने पीएम से अपील की
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हस्ताक्षर किए गए पत्र में आगे कहा गया है, “सांस्कृतिक और शैक्षणिक समुदायों से हम सभी इस नागरिकता (संशोधन) बिल को विभाजनकारी, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक मानते हैं. यह देशव्यापी एनआरसी के साथ पूरे देश में नागरिकों के लिए परेशानी लेकर आएगा. यह भारत के लोकतंत्र को मौलिक रूप से नुकसान पहुंचाएगा.”

इन कारणों की वजह से ही हम सरकार से बिल को वापस लेने और संविधान को धोखा नहीं देने की मांग कर रहे हैं. सभी लोगों से आग्रह करते हैं कि समान और धर्मनिरपेक्ष नागरिकता के लिए संवैधानिक प्रतिबद्धता को सम्मानित किया जाए.
625 हस्तियों ने पीएम से अपील की

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 के अनुसार, 31 दिसंबर 2014 तक भारत में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के सदस्यों को गैरकानूनी अप्रवासी के रूप में नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी.

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