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एक समय स्वयंभू धर्मगुरु आसाराम, जिसे लाखों लोग पूजते थे. उसने अपने इन्हीं भक्तों की भावनाओं का दोहन कर करोड़ों रूपये का गोरखधंधा किया. लेकिन एक नाबालिग से बलात्कार का मामला सामने आने के बाद उसकी प्रतिष्ठा धूल में मिल गई और उसकी सल्तनत ढहनी शुरू हो गई. जोधपुर कोर्ट ने आसाराम को बलात्कार के इसी मामले में दोषी करार दिया है.
अगर आकंड़ों की बात करें तो 1970 के दशक में साबरमती नदी के किनारे एक झोपड़ी से शुरुआत करने से लेकर देश और दुनियाभर में 400 से ज्यादा आश्रम बनाने वाले आसाराम ने चार दशक में 10,000 करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा कर लिया. साल 2013 के बलात्कार मामले में आसाराम की गिरफ्तारी के बाद गुजरात के मोटेरा इलाके में उसके आश्रम से जब्त किए गए दस्तावेजों की जांच से खुलासा हुआ कि आसाराम ने करीब 10,000 करोड़ रुपये की संपत्ति बना ली थी और इसमें उस जमीन की बाजार कीमत शामिल नहीं है, जो उसके पास है.
करीब 40 साल पहले राजस्थान के अजमेर में रेलवे स्टेशन से दरगाह तक तांगा चलाने वाला आसुमल तांगेवाला कैसे बना आसाराम बापू और कैसे उसने हजारों करोड़ रुपये का कारोबार खड़ा किया? ये सवाल सबके मन में कौंध रहा है. तो जानते हैं धर्म का धंधा कर करोड़ों का साम्राज्य खड़ा करने वाले आसाराम की कहानी.
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आसाराम ने अपनी यात्रा कथा वाचक के तौर पर शुरू की थी. अपने धार्मिक प्रवचनों के लिए आसाराम को काफी ख्याति मिली, जिससे उसके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई. बढ़ते अनुयायियों की संख्या में ही आसाराम को कारोबार की राह दिखी. प्रवचन से संबंधित पत्र-पत्रिकाओं, सीडी, पूजा सामग्री, स्वदेशी जैसे तमाम हथकंडे अपनाकर आसाराम ने महज चार दशकों में 10 हजार करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा कर लिया.
गुजरात के साबरमती नदी के किनारे बसे एक झोपड़ीनुमा आश्रम से शुरुआत करने वाले आश्रम ने करीब चालीस सालों में देश दुनियां में चार सौ से ज्यादा आलीशान आश्रम बना लिए.
साल 2013 में रेप केस में गिरफ्तारी के बाद गुजरात के मोटेरा स्थित आश्रम से पुलिस ने कई दस्तावेज जब्त किए थे. जिनके मुताबिक, आसाराम के पास कुल दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति थी. इसके अलावा आसाराम के पास देश के अलग-अलग हिस्सों में कई जमीनें भी थीं.
आसाराम को मानने वालों की अभी भी बड़ी संख्या है. लेकिन रेप और दूसरे अपराधों में नाम सामने आने के बाद आसाराम के आश्रम में काला जादू के आरोप लगे थे.
आसाराम की वेबसाइट पर मौजूद एक डॉक्यूमेंट्री के मुताबिक, आसाराम का जन्म साल 1941 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बेरनी गांव में हुआ था. उस वक्त आसाराम का नाम आसुमल सिरुमलानी था.
साल 1947 में विभाजन के बाद आसुमल अपने पिता के साथ अहमदाबाद आ गया. दस साल की उम्र में ही आसुमल के पिता की मौत हो गई. लिहाजा, आसुमल की पढ़ाई कक्षा चार तक ही हो पाई. बाद में उन्हें पारिवारिक परिस्थितियों की वजह से पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
डॉक्यूमेंट्री में दावा किया गया है कि युवावस्था में छिटपुट नौकरियां करने के बाद आसुमल ‘आध्यात्म की खोज’ में हिमालय की ओर निकल पड़ा, जहां वह अपने गुरू लीलाशाह बापू से मिला. यही वह गुरू थे, जिन्होंने 1964 में उसे ‘आसाराम’ नाम दिया.
इसके बाद आसाराम अहमदाबाद आया और उसने मोटेरा इलाके में साबरमती नदी के किनारे तपस्या शुरू की.
आध्यात्मिक गुरू के रूप में आसाराम का असली सफर साल 1972 में उस वक्त शुरू हुआ, जब उसने नदी के किनारे ‘मोक्ष कुटीर’ स्थापित की. साल - दर - साल ‘संत आसारामजी बापू’ के रूप में उसकी लोकप्रियता बढ़ती गई और उसकी छोटी सी झोपड़ी आश्रम में तब्दील हो गयी.
महज चार दशकों में उसने देश और विदेश में करीब 400 आश्रम खोल लिए. यहां तक कि आज भी मोटेरा आश्रम समर्थकों से भरा पड़ा है जो अब भी यही रट लगाए हुए हैं कि उनके ‘गुरू’ को झूठे आरोपों पर जेल भेजा गया.
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