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आशीष मिश्रा की अर्जी खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा- गवाहों को कर सकते हैं प्रभावित

इलाहाबाद HC ने कहा, मीडिया हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों में न्यायापालिका की पवित्रता से आगे निकल रहा है

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>लखीमपुर हिंसा: आशीष मिश्र की जमानत </p></div>
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लखीमपुर हिंसा: आशीष मिश्र की जमानत

(फोटो- क्विंट)

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लखीमपुर खीरी(Lakhimpur Kheri) हिंसा के मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्र(Ashish Mishra) को इलाहाबाद कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने मीडिया को चेतावनी देते हुए कहा कि कोर्ट ने नोट किया है कि आजकल मीडिया गलत सूचना और एजेंडा पर आधारित बहस कर रहा है,जो कि एक तरह से कंगारू कोर्ट चलाने जैसा है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक इलाहाबाद कोर्ट ने मीडिया को घेरते हुए लिखा, मीडिया हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों में न्यायापालिका की पवित्रता से आगे निकल रहा है. जो इंद्राणी मुखर्जी, जेसिका लाल और आरूषि तलवार के मामलों में देखने को मिला है. कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा मीडिया को समाज को समाचार देने के लिए माना जाता है, लेकिन कभी-कभी व्यक्तिगत विचार समाचारों पर हावी हो जाते हैं, और इस प्रकार सच्चाई पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.

कोर्ट ने कहा कि मीडिया ट्रायल के अलावा, मामले की जांच अपने द्वारा करके और कोर्ट द्वारा मामले में संज्ञान लेने से पहले संदिग्ध के खिलाफ माहौल बनाया जाता है, जिसके कारण आरोपी को निर्दोष माना जाना चाहिए था, उसे अपराधी माना जाता है.

'साईबल कुमार गुप्ता और अन्य बनाम वी.बी.के सेन और अन्य' के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब देश के नियमित ट्रिब्यूनल में से किसी एक द्वारा ट्रायल चल रहा हो तो अखबारों द्वारा ट्रायल प्रतिबंधित होना चाहिए.

लखमीपुर मामले में इलाहाबाद कोर्ट ने कहा कि अगर दोनों पक्षों ने थोड़ा संयम बरता होता, तो लखमीपुर हिंसा में उन 8 मौतों के नुकसान को नहीं देखते.

बता दें, इस घटना में पीड़ित की ओर से 5 व्यक्तियों की और आवेदक की ओर से तीन व्यक्तियों की मौत हो गई. वहीं,13 व्यक्ति शिकायतकर्ता की ओर से और 3 व्यक्ति आवेदक की ओर से घायल हुए.

कोर्ट ने इस मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को जमानत देने से इनकार कर दिया है. जमानत के आदेश में कोर्ट ने रेखांकित करते हुए कहा है कि तीन वाहनों की मौके पर उपस्थिति, जिन्होंने आशीष मिश्रा को गाड़ी से बाहर निकलते हुए देखा था. वो थार कार आवेदक के पिता के नाम रजिस्टर्ड थी और उसे मौके से बराबद वाहन में देखा गया था,हांलाकि, आशीष मिश्रा (आवेदक) को इसे चलाते नहीं देखा गया.

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कोर्ट ने आगे कहा कि गवाहों को धमकाए जाने पर दो एफआईआर दर्ज की गई हैं. वर्तमान मामले में क्रॉस-वर्जन आरोपी की मदद नहीं कर सकता. आवेदक की जटिलता को ध्यान में रखते हुए गवाहों के प्रभावित होने की आंशका के कारण आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती है.

हाईकोर्ट ने 10 फरवरी को आशीष मिश्रा को यह देखते हुए जमानत दे दी थी कि इस बात की संभावना हो सकती है कि चालक (थार के) ने खुद को बचाने के लिए वाहन को तेज करने की कोशिश की, जिसके कारण घटना हुई थी.

इसके बाद पीड़ित हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चले गए थे. हालांकि, विशेष जांच दल की निगरानी करने वाले न्यायाधीश द्वारा इस आशय की सिफारिश के बावजूद उत्तर प्रदेश राज्य ने जमानत आदेश को चुनौती नहीं दी.

लखीमपुर खीरी मामले में आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने से पहले मामले के पीड़ितों की सुनवाई से इनकार करने पर निराशा व्यक्त की थी.

कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को जमानत देने में हाईकोर्ट द्वारा दिखाई गई " जल्दी" के बारे में भी आलोचनात्मक टिप्पणी की.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई में भाग लेने के पीड़ितों के अधिकारों को स्वीकार करना चाहिए. लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के करीबी रिश्तेदारों ने हाईकोर्ट के समक्ष मिश्रा द्वारा दायर जमानत याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग की थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा कांड के चार मुख्य आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि अगर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने किसानों को खदेड़ने की धमकी देने वाला कथित बयान नहीं दिया होता तो लखीमपुर खीरी में हिंसक घटना नहीं हुई होती.

जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की टिप्पणी

ऊंचे पदों पर बैठे राजनीतिक व्यक्तियों को समाज में इसके नतीजों को देखते हुए एक सभ्य भाषा अपनाते हुए सार्वजनिक बयान देना चाहिए. उन्हें गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए क्योंकि उन्हें अपनी स्थिति और उच्च पद की गरिमा के अनुरूप आचरण करना आवश्यक है."

कोर्ट ने यह भी पाया कि जब क्षेत्र में सीआरपीसी की धारा 144 लागू की गई तो कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन क्यों किया गया और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने वहां कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आदि के रूप में क्यों आए?

कोर्ट ने कहा कि इस पर विश्वास नहीं होता कि राज्य के उपमुख्यमंत्री की जानकारी में यह नहीं था कि क्षेत्र में धारा 144 सीआरपीसी के प्रावधानों को लागू किया गया है और कोई भी वहां कोई भी सभा करना गलत है.

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