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असम (Assam) की एक 55 वर्षीय महिला हसीना भानु (Haseena Bhanu) को विदेशी होने के आधार पर दो महीने के लिए तेजपुर जेल के डिटेंशन सेंटर में रखा गया.
मार्च में गुवाहाटी हाईकोर्ट (Guwahati High Court) के द्वारा ट्रिब्यूनल कोर्ट के एक फैसले को पलटने के बाद उनको रिहा करने का फैसला सुनाया गया है.
इस मामले में हाईकोर्ट ने दरांग जिले में एक विदेशी न्यायाधिकरण की खिंचाई की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगस्त 2016 में उसी ट्रिब्यूनल ने कहा था कि हसीना भानु वास्तव में एक भारतीय नागरिक हैं, वो विदेशी या प्रवासी नहीं हैं.
लेकिन पिछली बार इस मामले को हैंडल करने वाली श्यामपुर पुलिस स्टेशन की सीमा पुलिस शाखा ने उनको फिर से उसी ट्रिब्यूनल में भेज दिया था. 18 मार्च को ट्रिब्यूनल के द्वारा उनको विदेशी घोषित कर दिया और गिरफ्तार करके डिटेंशन कैंप में डाल दिया गया.
डिटेंशन सेंटर में बंद हसीना भानु ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि डिटेंशन सेंटर के अंदर काफी ज्यादा उत्पीड़न होता है. मेरे अलावा वहां पर कई हिन्दू और मुस्लिम भी थे. उन्होंने कहा कि मुझे यह समझ आया कि मुझे इसलिए टारगेट किया गया क्योंकि मैं एक मुस्लिम हूं.
उन्होंने कहा कि सरकार से मेरा सवाल है कि मुझे इस तरह से क्यों परेशान किया गया?
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक हसीना भानु के पति, अयान अली ने कहा कि उनकी पत्नी की नागरिकता साबित करने की जद्दोजहद मानसिक रूप से थका देने वाली थी.
जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह ने कहा कि हम यह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ट्रिब्यूनल ने किस तरह से मामले की जांच की. उन्होंने कहा कि दूसरी सुनवाई गैर-कानूनी थी, जिसमें हसीना भानु को विदेशी करार दिया गया था. इस आदेश ने संविधान के अनुच्छेद-141 का सीधे तौर पर उल्लंघन किया था.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक हसीना भानु के वकील जाकिर हुसैन ने बताया कि ट्रिब्यूनल को पता था कि याचिका दायर करने वाली महिला वही हैं जिन्हें पहले भारतीय घोषित किया जा चुका है. उन्हें भारतीय होने के बावजूद डिटेंशन सेंटर में डाला गया.
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